Thursday, November 28, 2013

चुनावी अटकलें-पांच

राजस्थान के प्रभावशाली और दिग्गज जाट कांग्रेसी रहे नाथूराम मिर्धा जब तक जीए तब तक लोकसभा के एक चुनाव को छोड़कर अजेय रहे। वे तब भी जीते जब 1977 में जनता लहर थी। बावजूद इसके नागौर आज भी राजस्थान के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में आता है। सभी जानते हैं कि मिर्धा चाहते तो नागौर में क्या नहीं करवा सकते थे। पर नागौर जिले के शुभचिन्तक यह कहते संकोच नहीं करते कि बाबे (नाथूराम मिर्धा) को यह लगता था किजै जिले का विकास हो गया तो लोगों के माथै का विकास भी हो जावेगा और ऐसा हो गया तो फिर मुझे पूछेगा कौन?’
लगभग ऐसी ही स्थिति श्रीकोलायत विधानसभा क्षेत्र की है। जिले के सातों क्षेत्रों में आज भी सबसे पिछड़ा इलाका श्रीकोलायत है और 1980 से आज तक इसकी नुमाइंदगी दिग्गज देवीसिंह भाटी कर रहे हैं और सूबे की सरकारों में वे कई बार प्रभावशाली मंत्रालय भी सम्हाल चुके हैं। जिस तरह नाथूराम मिर्धा ने कांग्रेस की पीठ पर सवार होकर राजनीति शुरू की और फिर अपने क्षेत्र में पार्टी और संगठन को अपने गूंजै (पॉकेट) में रखा उससे भी दो कदम आगे देवीसिंह भाटी ने जनता पार्टी-जनतादल पर सवार होकर क्षेत्र की राजनीति शुरू की। अब पार्टी और संगठन को ना केवलठेंगेपर रखते हैं वरन् गाहे-बगाहे पार्टी को आईना दिखाने से भी नहीं चूकते। क्षेत्र में केवल एक कस्बे देशनोक में जरूर भाजपा संगठन दिखाई देता है और थोड़ा बहुत नरेन्द्र मोदी का असर हुआ तो यहीं होगा, बाकी मोदी कोई देवीसिंहभाटी से ऊपर हैं क्या?
श्रीकोलायत से लगातार सात बार चुनाव जीत चुके देवीसिंह भाटी इस बार फिर से भाजपा के सिम्बल पर चुनाव मैदान में हैं। क्षेत्र से रहे समाचारों से लगता है कि देवीसिंह भाटी इस बार दबाव में हैं। वैसे पिछले सात चुनावों के आंकड़े देखें तो भाटी बहुत अच्छे कभी जीते भी नहीं हैं। अपने पहले चुनाव में ही कान्ता खतूरिया से मात्र 1903 वोटों से ही जीत पाए थे। भाटी ऐसे कभी नहीं जीते जैसे सिद्धीकुमारी पिछली बार 37,653 वोटों के भारी अन्तर से बीकानेर (पूर्व) से जीतीं थी। 1990 के चुनाव में देवीसिंह भाटी की अधिकतम अन्तर की जीत दर्ज है। इस चुनाव में तब कांग्रेस के गोपाल जोशी से अधिकतम 22,176 वोटों से जीते थे-वह भी इसलिए कि जोशी के लिए इस क्षेत्र के ग्रामीण इलाके किसी पहेली से कम नहीं थे।
इन आंकड़ों की रोशनी में बात करें तो जो विश्लेषक देवीसिंह भाटी को श्रीकोलायत में अजेय मानते रहे हैं उनकी धारणाओं को धक्का लगता है। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी भंवरसिंह ना केवल मिलनसार युवा हैं बल्कि उन रुघनाथ सिंह भाटी के बेटे भी हैं जो 1998 के चुनावों में सीधे मुकाबले में देवीसिंह भाटी से मात्र 1,609 वोटों से पराजित हुए थे। श्रीकोलायत क्षेत्र में रुघनाथसिंह-भंवरसिंह भाटी (बाप-बेटे) दोनों की छवि साफ-सुथरी मिलनसारिता की रही है और रुघनाथसिंह खुद भी जी-जान से जुटे हैं। चुनावी गणित को गुनने वाले भंवरसिंह के पक्ष में यह तर्क देते भी नहीं थकते हैं कि देवीसिंह भाटी के मुकाबले इन बाप-बेटों के चुनाव प्रबन्धन में जोकमियांअब तक रहती आई हैं उन्हें भंवरसिंह चाहें तो उनके साले पूरी कर सकते हैं।
जिले के दिग्गज जाट नेता रामेश्वर डूडी खुद चुनाव लड़ते हुए भी इस बार बड़प्पन दिखा रहे हैं। वे ना केवल खाजूवाला और बीकानेर को समय दे रहे हैं बल्कि अपने प्रभाव वाले श्रीकोलायत क्षेत्र में भी दौरा कर चुके हैं। अलावा इसके विनायक ने इस शृंखला की पहली कड़ी में इशारा किया था कि नोखा के बिहारीलाल समर्थक बिश्नोई देवीसिंह भाटी से इसलिए नाराज हैं कि भाटी ने नोखा में कन्हैयालाल झंवर के हित में चौधर करके सहीराम को टिकट दिलवा कर नोखा में बिश्नोइयों के राजनीतिक हक-सफे को खत्म करने की नाकाम कोशिश की है। अगर यह नाराजगी श्रीकोलायत क्षेत्र के बिश्नोइयों तक पहुंचती है तो देवीसिंह के लिए भारी पड़ेगी। उक्त सब अटकलबाजियों का कुल जमा लब्बो-लआब यही है कि भंवरसिंह-रघुनाथसिंह एक दिसम्बर की शाम पांच बजे तक जुझार बने रहते हैं और देवीसिंह भाटी अन्तिम दो दिनों में कोईचमत्कारसम्भव नहीं कर पाते हैं तो हो सकता है उनके लिए 14वीं विधानसभा में पहुंचना आसान नहीं होगा।
28 नवम्बर, 2013


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