Tuesday, December 4, 2012

नेता न सही प्रशासन तो शहर की सोचे


राज्य सरकार का महत्त्वाकांक्षी अभियानप्रशासन शहरों के संगपरवान पर है। कच्ची बस्तियों का नियमन होना है तो खांचों का आवंटन होना और कब्जेशुदा भूखण्डों के पट्टे बनने हैं। पट्टे बन भी रहे हैं, सत्ताधारी पार्टी के नेता उन्हें देते हुए अपना फोटो भी खिंचवा रहे हैं। कल प्रशासन का कैम्प परकोटे के भीतरी इलाके में था, पट्टों की और खांचा भूमि आवंटन की आस कई लोग लगाये बैठे हैं, कुछ की पार पड़ेगी, कुछ रह जायेंगे और कुछ इन्हीं तारीखों में अपना काम बाद में भी निकाल ले जायेंगे।
लेकिन देखने वाली बात यह है कि परकोटे के भीतरी इलाके में भी खांचा भूमि या कब्जेशुदा भूखण्डों की गुंजाइश अब भी बची है क्या! पूरा शहर बेतरतीब बसा हुआ है, चलते-चलते गलियां या तो चौड़ी हो जाती हैं या संकरी या काफी अंदर जाने पर पता लगता है कि यह गली तो बन्द है। कुछ गलियां तो ऐसी हैं कि कोई आपदा जाये या दुर्घटना हो जाय तो वहां तक राहत के साधन पहुंचाना दूभर क्या नामुमकिन-सा होगा, इन पतली-संकरी गलियों के कई मकानों तक हवा और धूप भी पर्याप्त नहीं पहुंच पाती है।
इन सब के बावजूद हर नया बनने वाला मकान आस-पास का खांचा अपने में समा लेता है। ऐसी गुंजाइश नहीं हो तो फुट-डेढ़ फुट वह गली-सड़क की ओर बढ़ जाता है, बिना यह सोचे कि आगे की आठ फुट की गली सात की रह जायेगी। कोई जगह कहीं खुली है तो उसे खुली क्यों नहीं पड़ा रहना दिया जाता? खुली जगहों के अपने कई सुख होते हैं। सरकार यदि शहर से लगाव रखती है तो कम से कम बीकानेर के सन्दर्भ में उसे ऐसा आदेश तुरत निकाल देना चाहिए कि परकोटे की भीतर तो किसी खांचे का आवंटन होगा और किसी कब्जे का पट्टा बनेगा।
अभियान पर चुटकी....
प्रशासन शहरों के संगपर चुटकी लेकर बात करें तो पूछ सकते हैं कि शहर के निमित्त यह प्रशासन अन्यथा किनके संग रहता है। क्या वह नेताओं, भूमाफियाओं, दबंगों और लेन-देन वालों के संग रहता है? इन सभी को इस अभियान से किनारे किया हुआ है या अभियान की बहती गंगा में इनकी भी कई फाइलें गति को प्राप्त हो जायेंगी! कुछ तो यह भी कहते हैं कि यह अभियान चलाए ही इनके लिए जाते हैं, लोक दिखावे के चक्कर में किसी जरूरतमंद का भला हो जाये तो खैर मनाये वह!
बीकानेर में जिस दिन से अभियान शुरू हुआ है तब से भाजपाई इसे काउन्टर करने में लगे हैं। शुरू में उन्होंने कुछ बदमजगी करने की कोशिश की तो कुछ उत्साही कांग्रेसी उनके काउन्टर को काउन्टर करने गये। परकोटे के भीतर कल के शिविर के सामने भाजपाई बाकायदा सम कर बैठे, टैण्ट लगाया, दरियां लगाई, साउण्ड सिस्टम और पोडियम भी ले आये, पार्टी के छोटे-बड़े और हल्लर-फल्लर सभी को बुला लाये। लेकिन हुआ क्या सभी कुछ धरे के धरे रह गये। कांग्रेसियों ने उनके अस्तित्व को ही चुनौती दे दी कि उन्हें विरोधियों की भी जरूरत नहीं, यह भूमिका भी खुद निभा लेंगे। बखूबी निभाई भी। भाजपाइयों से दो चट्टी ज्यादा निभाई। भाजपाई तो अब तक जबानी जमा-खर्च ही करते रहे या कोसते रहे। कांग्रेसियों ने तो पाटिये ही उलटे कर दिये। यह सब देख भाजपाई चकरघिन्नी हो गये। ये कांग्रेसी, विरोध करने का, पाटिये उलटे करने अर्थात् हत्था-तत्ता करने तक का हक विरोधियों के पास नहीं रहने देना चाहते!
4 दिसम्बर, 2012

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