केन्द्र सरकार के खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय ने ठेलों, खोमचों में खाने-पीने का सामान बेचने वालों के लिए सुरक्षा मानक जारी कर दिये हैं। अभी जिस दौर से गुजर रहे हैं उसे हम खान-पान की वस्तुओं की शुद्धता को लेकर भारी आशंकाओं का दौर कह सकते हैं। जब भी चीजों में मिलावट की बात होती है तो स्थानीय बोली में सामान्यतः सीधा-सा जवाब मिलता है, ‘हुसी जिसी देखी जासी’ या ‘खोटा करसी जकौ भुगतसी’ यानी ‘होगा जैसा देखा जायेगा’ या ‘जो गलत करेगा वह भुगतेगा’। समझा जाय तो इन दोनों ही वाक्यों के पीछे बेबसी ही झलकती है क्योंकि खाद्य और पेय पदार्थों में अभी जिस तरह की मिलावट होने लगी है, स्वास्थ्य विभाग उसे आजकल होने वाली अधिकांश जानलेवा बीमारियों का एक कारण मानता है। इसलिए विचारणीय और चिंता का विषय यह है कि ‘खुद भुगतेंगे तभी देखेंगे’ या दूसरों को इन बीमारियों से जूझते देख कुछ सचेत भी होंगे। रही बात ‘जो गलत करेगा वह भुगतेगा’ तो मिलावट करने वाला तो इसके चलते अतिरिक्त कमाई कर रहा है और इसके चलते अपने और अपने परिवार की अतिरिक्त सुख-सुविधाओं के साधन जुटा रहा है, उसके लिए बाकी सब गौण हैं। ज्यादा से ज्यादा वह इस अतिरिक्त कमाई में से एक छोटा हिस्सा दान करके शेष को ‘शुद्ध कमाई’ बना तसल्ली कर लेगा, लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। होता यही है कि जो अशुद्ध खायेगा वही भुगतेगा। खाद्य पदार्थ में मिलावट करने और मिलावटी सामान बेचने वाला कुछ नहीं भुगतता!
रही बात ठेले-खोमचे वालों की तो उनके यहां समस्या मिलावट की कम स्वच्छता की ज्यादा है। क्योंकि देखा गया है कि यह वर्ग स्वच्छता को लेकर न सचेत होता है और न ही इन्हें सचेत करने वाला मिलता है। सचेत करने वाला कोई मिलता भी है तो इनके व्यापार में लगी पूंजी इतनी कम होती है कि यह चाहे तो भी शुद्धता और स्वच्छता के मानक नहीं अपना पाता और अशुद्धता इनकी मजबूरी इसलिए हो जाती है कि वे सामान निर्माण के लिए कच्चा माल सस्ता वाला खरीदते हैं। सामान्यतः माना जाता है कि सस्ता वह ही बेचेगा जो मिलावट करता है। यह सब लिखने का मतलब इनका पक्ष लेना नहीं है, केवल बताना भर है कि ऐसा क्यों होता है और यह बताना भी कि इस तरह की परिस्थितियां
बदलने की जिम्मेदारी पूरे समाज की है।
समाज की सबसे छोटी इन व्यापार इकाइयों (ठेले-खोमचे और थड़ी वाले) की परिस्थितियां बहुत पेचीदा हैं। इन्हें व्यापारिक इकाई कहना अतिशयोक्ति से कम नहीं है, ऐसे सब सिर्फ और सिर्फ अपना और अपने परिवार का पेट पालने की जुगत में ही लगे दीखते हैं। शायद इसीलिए सुरक्षा मानक जारी करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आशंकित थे और इसीलिए उन्होंने सचेत भी किया कि इन्हें नहीं लगे कि यह नई व्यवस्था उन्हें भयभीत करने के लिए आई है। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि इसे लागू करने की प्रक्रिया जटिल न होकर बेहद सरल होनी चाहिए।
14 दिसम्बर, 2012
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