Wednesday, December 19, 2012

बलात्कार


गये रविवार की रात दिल्ली की नगरीय बससेवा में एक युवती से सामूहिक बलात्कार किया गया। बलात्कारियों में उसी बस का ड्राइवर, उसका भाई और उनके तीन-चार साथी थे। युवती अकेली नहीं थी, साथ में उसका मित्र भी था। विरोध करने पर दोनों को बुरी तरह पीटा गया और कुछ देर बाद सुनसान देख कर सड़क किनारे दोनों को पटक दिया। घटना की जानकारी होने के बाद से खबरिया चैनलों पर सुर्खियां हैं। संसद चल रही है सो दोनों सदनों में कल पूरे दिन सांसद उद्वेलित और गलगले होते रहे। सोशल नेटवर्क साइटों पर दिन भर ट्वीट, स्टेटस लिखे जाते रहे। वे लोग जो सामान्यतः किसी भी सार्वजनिक घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं उन्होंने भी आपसी बातचीत में बलात्कारियों, पुलिस, प्रशासन और सरकारों को भुण्डा कर और अपनी-अपनी राय देकर इस मुद्दे से लगभग अपने को मुक्त कर लिया। संचार के ये सभी साधन एक साथ बहुतों को उद्वेलित भी करते हैं और जो जितने जल्दी उद्वेलित होते हैं उतने ही जल्दी उससे अपने को बरी भी कर लेते हैं।
खबरिया चैनलों के सूत्रों का भरोसा करें तो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में 2012 में अब तक बलात्कार की 600 से ज्यादा घटनाएं दर्ज हुई हैं। मतलब बलात्कार के औसतन दो मामले प्रतिदिन दर्ज हुए हैं। पूरे देश की इस तरह की घटनाओं के आंकड़े संवेदनशीलों के लिए भयावह और सिहरनकारी हो सकते हैं। आम बातचीत में इस तरह की घटनाओं के बारे में जो जानकारियां मिलती हैं, उसके अनुसार बलात्कार की बहुत-सी पीड़िताएं या तो खुद चुप होकर रह जाती हैं या बदनामी के डर से परिजन उसे चुप करवा देते हैं। इस तरह की शेष घटनाएं आंकड़ों का हिस्सा तो नहीं बनती है लेकिन दर्ज मामलों से कम भी नहीं होती। देश के थानों में अपराधों का ग्राफ नीचे बनाये रखने के लिए वहां के पुलिसकर्मियों और मुंशियों की कोशिश यही रहती है कि पीड़ित या पीड़िता मुकदमा दर्ज ही करवाएं।
कल के हाकों में रुदन सुनने वाला कोई हो तो दिल्ली में ही इस वर्ष बलात्कार की औसतन दो घटनाएं प्रतिदिन दर्ज हुई हैं लेकिन इस तरह की बाकी की घटनाओं की पीड़िताओं की सिसकियों का साथ मीडिया ने दिया और ही संसद भवन में उनकी पीड़ा प्रतिध्वनित हुई।
सोशल साइट में अधिकांश लोग कल दिन भर पुलिस को भ्रष्ट और निकम्मी कहते रहे, देश के कमजोर कानूनों को कोसते रहे, अदालतों की लेटलतीफी को भुंडाते रहे और आरोपियों को नपुंसक कर देने, तुरन्त और सरेआम फांसी पर लटकाने की बात करते रहे या आरोपियों को उन्हें सौंप देने की बातें करते रहे। महिलाओं से अधिक पुरुष गुस्से में देखे गये। लगा कि पूरा पुरुष समाज अपने को आरोपित मान रहा हो!
बहुत कम लोग थे जो इस तरह की घटनाओं के लिए कानून और व्यवस्था के साथ सामाजिक ताने-बाने को भी दोषी ठहराते हों। बलात्कार और इसी तरह की अन्य घटनाएं दरअसल सामाजिक समस्या ज्यादा है। समाज में धर्म, जाति, वर्ण और लिंग की असमानता से उपजी कुण्ठाएं इस तरह की घटनाओं के मूल में ज्यादा होती हैं। जो अपना धर्म ऊंचा मानता है वह दूसरे के धर्म को नीचा मानेगा, जो अपनी जाति को ऊंचा मानता है वह दूसरी सभी जातियों को नीचा और हेय मानेगा। इसी तरह लगभग पूरा पुरुष वर्ग अपने को स्त्रियों से श्रेष्ठ और समझदार मानता है। और दूसरे धर्म की स्त्रियों तथाकथित नीची जातियों की स्त्रियों का दर्जा तो उच्च धर्म, उच्च वर्ग, उच्च जातिवालों की नजर में तीसरा, चौथा, पांचवां हो जाता है इसलिए उन्हें भुगतना भी ज्यादा होता है।
जिसे नीचा माना जाता है वे समूह नीचा कहे जाने से कुण्ठित होते हैं और जो अपने को ऊंचा मानते हैं उन्हें जब अपने से नीचे वालों से किसी भी तरह की चुनौती मिलती है तो उनकी कुण्ठाएं हिंस्ररूप में प्रकट होती है। स्त्री के मामले में समझें तो जो पुरुष कामप्रसंग को जीत-हार की दृष्टि से देखते हैं, उनकी जीतने की लालसा और जीतने पर हार की कुण्ठाएं अकसर स्त्री वर्ग को हेय समझकर, उसकी खिल्ली उड़ाकर, उसे भोग्या बताकर या उस पर गुस्सा करके, उसको पीट कर और उसके साथ बलात्कार में प्रकट होती है।
19 दिसम्बर, 2012

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