Friday, December 21, 2012

मोदी की जीत को इस तरह भी समझ सकते हैं


दो प्रदेशों के चुनाव नतीजे गये हैं। गुजरात मेंकहने भर को भाजपा-केनरेन्द्र मोदी फिर मुख्यमंत्री होंगे। और हिमाचल प्रदेश मेंउतर भीखा म्हारी बारीकी तर्ज पर भाजपा उतरने के बाद प्रदेश सत्ता पर कांग्रेस बैठ जायेगी। एक सूबे से सरकार चले जाने के बावजूद नरेन्द्र मोदी की जीत के बहाने मीडिया ने माहौल बनाया कि भाजपा रही है और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हो रहे हैं, जबकि कांग्रेस ने खोया गुजरात में भी नहीं, वहां अपने वोट प्रतिशत के साथ उसने दो विधायक भी बढ़ाएं हैं और हिमाचल प्रदेश में भाजपा से सत्ता छीनी है। मोदी को दो साल पहले ही पता चल गया था कि स्थितियां अनुकूल नहीं हैं, इसलिए उन्होंने कई गुना ऊर्जा और तजवीजों के साथ चुनावों से डेढ़ साल पूर्व बहुत ही सुव्यवस्थित प्रचार अभियान शुरू कर दिया था। यदि वे ऐसा नहीं करते तो चुनाव नतीजों का विश्लेषण यही बताता है कि मोदी का सत्ता में लौटना निश्चित नहीं था। दूसरी ओर कांग्रेस ने लगभग पिछले दो चुनावों की तरह ही चुनाव लड़ने के लिए चुनाव लड़ा। कांग्रेसी मतदाताओं में यह भरोसा नहीं बना पाये कि वे सरकार बना लेंगे। इसी का नतीजा है कि गुजरात के अल्पसंख्यक भीपानी में रहकर मगर से बैर  रखने की मानसिकता में गये। चुनाव पूर्व सर्वे चाहे कुछ भी कहे, छः माह पहले तक माना यही जा रहा था कि मोदी की राह आसान नहीं है। मोदी खुद तो इसे भांप गये लेकिन कांग्रेस भांप कर भी सजग नहीं हो पायी।
गुजरात कांग्रेस को छोड़ दें तो मोदी की जीत से कांग्रेस में बड़ी मायूसी नहीं लगती। लेकिन खुद भाजपा में खलबली जरूर है। कुछेक को छोड़ दें तो भाजपा के सभी केन्द्रीय दिग्गज कल आकळ-बाकळ देखे गये, उनके चेहरों पर वह खुशी नदारद थी जिसे मीडिया के कैमरे ढूंढ़ते फिर रहे थे। इस मायूसी का कारण हिमाचल की हार से कई गुना ज्यादा मोदी की जीत का था। सभी भाजपाई दिग्गज जानते हैं कि मोदी केवलडेमोक्रेटनहीं हैं बल्कि हेकड़ीबाज भी हैं। उन्हें यही भय सता रहा है कि मोदी अपने किसीखड़ाऊको गुजरात में बिठा कर दिल्ली गये तो दूसरी, तीसरी और चौथी-पांचवी श्रेणी के अधिकांश पार्टी कार्यकर्ता सत्ता की उम्मीद और लालसा में मोदी के साथ हो जायेंगे। अधिकांश भाजपाई दिग्गज आशंकित है कि गुजरात चुनाव में भी भाव देने वाले मोदी दिल्ली गये तो उन सभी को हाशिए पर भी जगह देंगे कि नहीं।
यह आशंकाएं यदि मूर्त होती हैं तो देश में लोकतान्त्रिक प्रक्रियाएं कमजोर होंगी। सुचिन्तित लोग पिछली सदी के इकहत्तर से पचहत्तर के बीच के समय को याद करें। इकहत्तर के भारत-पाक युद्ध में अटल बिहारी वाजपेयी ने इन्दिरा गांधी की तुलना दुर्गा से की और युद्ध जीतने के बाद तब के मीडिया (तब केवल प्रिन्ट मीडिया ही था) ने इन्दिरा गांधी को सिर पर बिठा लिया था। युद्ध से पहले के लोकसभा चुनाव को भारी बहुमत से जीतना, पाक से युद्ध में विजय, वाजपेयी की दुर्गा से तुलना और फिर मीडिया द्वारा सिर पर बिठाने का ही नतीजा था कि देश ने सन् 1975 में उन्नीस माह तक आपातकाल को झेला। वह तो इन्दिरा थी जिनके संस्कार तो कम से कम लोकतान्त्रिक थे। और देश केवल उस अन्धेरी गुफा से निकल आया बल्कि इन्दिरा भी सबक लेकर सत्ता में लौट आयीं। केवल आपातकाल को भूल बताया बल्कि कांग्रेसियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख दंगों के लिए बाकायदा माफी मांगी। यह जान-समझ लेना जरूरी है कि मोदी के संस्कार लोकतान्त्रिक नहीं फासिस्ट हैं, हावभाव (बॉडी लेंग्वेज) मेंभयंकरहेकड़ी है।
2002 में सरकारी उदासीनता, प्रशासनिक निष्क्रियता या कहें नकारात्मक सक्रियता के चलते गुजरात प्रदेश में 2000 अल्पसंख्यकों का कत्लेआम हुआ और अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ सैकड़ों बलात्कार हुए। मोदी की खुद की पार्टी के प्रधानमंत्री को राजधर्म निभाने की हिदायत देनी पड़ी। आज दस साल बाद भी मोदी को इसका कोई मलाल नहीं है। यद्यपि कल जीत के मद में जरूर वे कुछ उदार हुए और पहली बार उनकी जबानथोड़ी-सीफिसली सो कहा कि कभी कोई गलती हो गई है तो वे छह करोड़ गुजरातियों से माफी मांगते हैं।
लोकतंत्र में भरोसा, आस्था रखने वालों का धर्म बनता है कि वे सावचेत हो जाएं। खासकर मीडिया, जो मिशनरी व्यवसाय से पूरी तरह व्यवसाय में तबदील हो गया है। इसी मीडिया को सावचेत होने की जरूरत ज्यादा है। क्योंकि उनके व्यवसाय के चलते रहने की पहली शर्त ही लोकतंत्र है। लोकतंत्र नहीं रहेगा तो यह व्यवसाय भी बंद हो जायेगा। मीडिया को कम से कम सामन्ती शब्दावली से परहेज तो करना चाहिए। लोकतंत्र के कहार ही खांधिये (अर्थी को कंधा देने वाले) की भूमिका में आने को उतारू हों तो समझ लें मुश्किल समय है। भाषा की कमाई खाने वाला मीडिया यदि भाषा की ताकत नहीं समझता है तो यह समझ से परे है। क्या वह बिल्ली के आगे आंखें बंद किये कबूतर की भूमिका में हैं, आंखें बन्द कर लेने भर से कबूतर की जान नहीं बचती।
20 दिसम्बर, 2012

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