Thursday, April 30, 2015

देश की समस्याओं का समाधान शहरों में नहीं


सन् 2000 के आसपास की बात है सूबे में सरकार अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की थी। तब गहलोत के सर्वाधिक भरोसेमंद मंत्री सीपी जोशी के साथ अनौपचारिक बातचीत हो रही थी। रोजगार के अवसरों की बात की तो जोशी ने अपने हेकड़ अंदाज में कहा कि सड़कों के माध्यम से गांव यदि शहरों से जुड़ जाएंगे तो रोजगार के अवसर अपने आप विकसित हो जाएंगे। जब उनसे जानना चाहा कि कैसे होगा थोड़ा बताएं तो सही। जवाब थासड़कें बन रही हैं देख लेना। अटलबिहारी सरकार की प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना शुरू हुई, राज्य सरकारों ने भी सड़कें बनाने पर जोर दिया, इन पन्द्रह वर्षों में अधिकांश गांव सड़कों से जुड़ गए हैं। रोजगार की समस्या ज्यों की त्यों छोड़, लगातार बढ़ ही रही है। सीपी जोशी के कहे अनुसार यह सब देख ही रहे हैं।
पिछली सदी के आखिरी दशक से लागू नई आर्थिक नीतियों के अन्तर्गत विकास के शहरी मॉडल को तवज्जो कुछ ज्यादा ही मिलने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने चुनाव अभियान में जो 'चिलके' मारे उनमें सौ स्मार्ट सिटी विकसित करना भी एक था। कल केन्द्र की कैबिनेट ने फैसला लेकर इस परियोजना को मंजूरी दे दी है। पांच सौ अन्य शहर विकसित करने की अटल मिशन योजना को भी मंजूरी इसी के साथ मिल गई। 98 हजार करोड़ रुपये की ये योजनाएं सिरे चढ़ेंगी तो इस देश का कायाकल्प हुआ ही समझोगांवों का यह देश शहरों के देश में परिवर्तित होते देर नहीं लगेगी। लेकिन क्या इस देश को सचमुच ऐसे विकास की जरूरत है या केवल गूंग में ही योजनाओं को सब हांके जा रहे हैं।
किसी बड़े भोज में जिस तरह पितर भोमियों की थाली पहले से अलग कर दी जाती है उसी का निर्वहन करते हुए प्रधानमंत्री ने भी पिछले वर्ष अक्टूबर में आदर्श ग्राम योजना चालू कर दी थी। प्रत्येक सांसद ने एक गांव गोद लेकर लगभग आठ सौ गांवों का 'उद्धार' करने का काम शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री ने तब देश के विधायकों और विधान परिषद के सदस्यों का भी आह्वान किया था कि वे भी एक-एक गांव गोद लेकर उन्हें आदर्श गांव बनाएं। ऐसी कोई सूचना नहीं है कि कितने राज्यों ने अपने विधाई सदस्यों के साथ ऐसी योजना की शुरुआत की है।
मान लेते हैं कि उक्त सब हो जायेगा, तब क्या देश की असल समस्याओं से निजात मिल जायेगी? ऐसी चून में हम ये भूल जाते हैं कि ऐसी योजनाओं से रोजगार के जितने अवसर बनते हैं उनसे ज्यादा को ये आयोजन बेरोजगार करते हैं। क्योंकि इस तरह से आजीविका के परम्परागत साधन नष्टप्राय हो रहे होते हैं। नये भू-अधिग्रहण कानून से आशंकाएं इस से संबंधित ही हैं।
ऐसी सभी योजनाओं में दीमक का काम करने वाले भ्रष्टाचार को मोदी उस कबूतर की तरह नजरअंदाज कर रहे हैं, जो बिल्ली को सामने पाकर इस उम्मीद में आंखें बन्द कर लेता है कि बिल्ली दीखेगी नहीं तो आसन्न संकट से मुक्ति स्वत: मिल जायेगी। लेकिन कबूतर तो भोला पक्षी माना जाता है। मोदी के लिए तो ऐसा नहीं माना जा सकतातब क्या मोदी ऐसा जानबूझकर कर रहे हैं। कहने को कल ही मोदी की कैबिनेट ने भ्रष्टाचार से सम्बन्धित सजा या दण्ड को और बढ़ा दिया है। लेकिन जैसे तैसे भी हैं वर्तमान कानूनों का प्रभाव कहीं देखा नहीं जाता। ऐसे कानूनों के बावजूद भ्रष्टाचार धड़ल्ले से दिन दिन बढ़ ही रहा है। सभी जानते हैं कि इस निर्भयता के असल स्रोत राजनेता ही हैं। मोदी चाहे गंगा की सफाई का स्वांग करवाते हों, लेकिन उनके इस ग्यारह महीनों के शासन में राजनीति और राजनेताओं को भ्रष्टाचार मुक्त करने की नीयत राई-रत्ती भी नहीं दिखी।
रही बात देश की समस्याओं के समाधान की तो इसके लिए सौ स्मार्ट शहरों की जरूरतों है अटल मिशन की। गांवों की आधारभूत जरूरतों को भ्रष्टाचार से मुक्त और चाक चौबन्द करवा दें, समस्याएं अपने आप बोरिया बिस्तर बांधने लगेंगी। गांव वाले अपनी जड़ें छोड़कर पलायन करने को मजबूर नहीं होंगे जब उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के छिट-पुट अवसर वहीं मिलने लगेंगे। बीते सड़सठ वर्षों का हाल तो यह है कि गांवों में अध्यापक जाना चाहता है और ही डॉक्टर। ऐसे में शहरों से मुखातिब होकर ग्रामीण समस्याएं बढ़ाएंगे ही। विकास के जिस रास्ते हम जा रहे हैं उसी रास्ते में हमसफर दुनिया के विकसित और अन्य विकासशील देश भी हैंऐसे में विकास की इस सड़क पर जाम जल्द ही लगना है।
30 अप्रेल, 2015

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