Saturday, April 25, 2015

चौखूटी पुलिया की सर्विस रोड, जिला कलक्टर और शहर की बात


'विनायक' ने गुरुवार के अपने अंक के पहले पृष्ठ पर चौखूंटी पुलिया के नीचे की दुर्दशा का छायाचित्र देते हुए इर्द-गिर्द के लोगों की व्यथा को साझा किया था। वहां के बाशिन्दों ने कल बताया कि हमारी समस्याओं पर जिला कलक्टर यह कहकर किनारा कर लेती हैं कि मैं किसी का घर उजाडऩा नहीं चाहती। चूंकि उक्त संवाद के साक्षी नहीं है सो नहीं कह सकते ऐसा कहा-सुना गया होगा। फिर भी मानते हैं किसी भी संवेदनशील मन की पहली प्रतिक्रिया ऐसी हो सकती है।
लेकिन, यदि ऐसा हुआ है तो कोई प्रशासनिक अधिकारी उक्त प्रतिक्रिया पर ठिठके तो भले ही, उन्हें ठिठककर अटकना नहीं चाहिए। चौखूंटी पुलिया प्रकरण के हवाले से ही बात करें तो उसके दोनों तरफ सर्विस रोड बननी ही है इसे अनन्तकाल तक इस बिना पर रोका नहीं जा सकेगा कि इससे कुछ आशियाने उजड़ेंगे या कुछ मकानों के चेहरे उतर जाएंगे। ऐसे कार्य प्रशासनिक अधिकारियों को शल्य चिकित्सक की भावना रख अंजाम देने चाहिए, वह छुरी भी आराम पहुंचाने के लिए चलाता है। ठीक ऐसे ही चौखूंटी पुलिया की सर्विस रोड का काम किसी संवेदनशील अधिकारी की देख रेख में होगा तो वहां के बाशिन्दों को लाभ ही होगा अन्यथा परेशानी नाक तक आने पर प्रशासन कैसे उसे अंजाम देगा यह किसी से नहीं छुपा। बजाय इसके यदि कोई संवेदनशील अधिकारी इसे करवाए तो हो सकता है पीडि़तों को उचित मुआवजा मिले बल्कि प्रभावितों का पुनर्वास भी आनन-फानन में नहीं हो। संवेदनशील प्रशासनिक मन की जरूरत इस दूसरे पायदान पर ज्यादा होती है। यह भी कि ऐसे ही अवसरों पर 'मानवीय प्रशासन' और 'प्रशासनिक मशीनरी' में अन्तर का आभास होता है।
जिला कलक्टर आरती डोगरा गांव आधारित योजनाओं और कामों में ज्यादा सचेष्ट हैं और ऐसी ही प्राथमिकताओं की जरूरत है। लेकिन शहरी जरूरतों पर भी तवज्जो जरूरी है, ऐसी कई योजनाएं पिछले दो-ढाई वर्षों से ज्यों की त्यों पड़ी है।
गंगाशहर रोड पर जैन पब्लिक स्कूल से मोहता सराय तक के लिंकरोड का काम नगर विकास न्यास के अध्यक्ष रहे मकसूद अहमद पता नहीं किस दड़बे में घुसा गये कि पहुंच से ही बाहर हो गया। इसी तरह भुट्टों के चौराहे से लालगढ़ रेलवे स्टेशन को जोडऩे वाले रास्ते का दुरुस्तीकरण का काम शुरू करवाने की इच्छाशक्ति मकसूद अहमद नहीं दिखा पाये। ऐसे ही अवसर होते हैं जब व्यक्ति का पता चलता है कि वह व्यापक जन समुदाय के हित की सोच रखता है या संकीर्ण सोच के दबाव में जाता है। उन्हें पद त्याग किए भी डेढ़ वर्ष हो रहा है और ये योजनाएं अब भी उसी दड़बे में फंसी है जहां मकसूद अहमद छोड़ गये थे। ऐसे काम दृढ़ प्रशासनिक इच्छाशक्ति वाले कर सकते हैं, कोई राजनीति या सामुदायिक दबाव आए भी तो उनका चतुराई से निराकरण किया जा सकता है।
शहर के कई छिटपुट और काम भी हैं जिन्हें न्यास या निगम के माध्यम से पूर्ण करवाना जरूरी है
रेलवे प्रेक्षागृह से रेलवे स्टेशन के पिछले गेट तक की सड़क को दुरुस्त करवाना।
मुख्य डाकघर से चौखूंटी पुलिया तक के मार्ग को आवागमन योग्य बनाना।
सोहन कोठी के आगे के तिराहे को डिवाइडर बनाकर सुचारु करना।
रानी बाजार पुलिया के दोनों ओर की सम्पर्क सड़कों को डिवाइडर बना कर व्यवस्थित करवाना भी बहुत जरूरी है। इस पर से गुजरने वाला प्रत्येक वाहन चालक बिना तनाव के गुजर ही नहीं पाता। इस पुलिया के पीबीएम की तरफ के मार्ग पर डिवाइडर का सुझाव 'विनायक' ने अपने 23 अगस्त 2011 के अंक में सचित्र प्रकाशित किया था। न्यास चाहे तो उसे जरूरी परिवर्तनों के साथ आधार बना सकता है।
यहीं मेडिकल कॉलेज मार्ग पर आंखों के अस्पताल के आगे आजादी से पहले बनी सिंगल रोड की पुलिया है, इसकी दीवारों से रात के अंधेरे में अक्सर दुर्घटनाएं इसलिए होने लगी हैं कि यह सड़क तो फोरलेन बन गई और पुलिया अभी वही है। इसका समाधान नागनेचीजी वाले पुलिए जितना मुश्किल इसलिए नहीं है कि इस बरसाती नाले पर पुल बनाने के बजाय चौड़े पाइप डालकर ही काम चलाया जा सकता है।
ऐसे छोटे-छोटे कामों को करने-करवाने में किसी बड़ी स्वीकृति की जरूरत नहीं है। इन्हें तय करने भर से किया जा सकता है।
बीकानेर शहर के जनप्रतिनिधि ऐसी दृष्टिवाले होते तो शहर को यूं मुंह बाए खड़े नहीं रहना पड़ता। इस बात को अतिशयोक्ति मानने से पहले जोधपुर के जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली की पड़ताल कर लें। वे ऐसे नहीं हों तो उन्हें दुबारा-तिबारा वोट नहीं मिलते। हमारे यहां के भोले मतदाता कुछ नहीं करने वालों को ही जिताते रहते हैं।
25 अप्रेल, 2015

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