Wednesday, April 16, 2014

बीकानेर के अब तक के सांसद : काम के न काज के-चार

ग्यारहवीं लोकसभा के लिए भाजपा ने महेन्द्रसिंह को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस से तीन बार सांसदी कर चुके मनफूलसिंह भादू ने तब कहा था कि मेरे सामने टाबर को खड़ा कर दिया, कोई लूंठा होता तो लडऩे का मजा आता। भादू के इस अति आत्मविश्वास की फिसकी जाट प्रभावी इस लोकसभा क्षेत्र में देवीसिंह और महेन्द्रसिंह भाटी ने चतुराई और बढिय़ा चुनाव प्रबन्धन से निकाल दी। युवा भाटी का चुनाव जीतना आश्चर्य से कम नहीं था। चुनावों के बाद अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पखवाड़े भर की भाजपा सरकार में महेन्द्रसिंह को कोई पद नहीं मिला। जनता को उम्मीदें थी कि वे इस क्षेत्र के लिए कुछ कर पाएंगे पर लगभग 19 महीने की उनकी सांसदी में तीन प्रधानमंत्रियों की तीन सरकारों के बाद हिचकोले खाती संसद भंग कर दी गई। कह सकते हैं कि भाटी को इसमें कुछ कर दिखाने का अवसर ही नहीं मिला। 1998 में हुए मध्यावधि चुनावों में कांग्रेस ने भारी-भरकम बलराम जाखड़ को बीकानेर से उतार दिया। सामने भाजपा के महेन्द्रसिंह भाटी ही थे, जो चुनाव हार गये। अटलबिहारी के नेतृत्व में राजग की सरकार बनी। लगभग डेढ़ साल में ही एआइएडीएमके की जयललिता ने समर्थन वापस ले लिया। भाटी की तरह जाखड़ भी अपने क्षेत्र के लिए कुछ करवाने की भूंड से लगभग बच निकले।
सितम्बर के 1999 में फिर चुनाव हुए। तेरहवीं लोकसभा के चुनाव के लिए कांग्रेस ने युवा रामेश्वर डूडी को मैदान में उतारा। उधर देवीसिंह भाटी का रुतबा कई कारणों से कम होता चला गया। महेन्द्रसिंह को उम्मीदवारी नहीं मिली। भाजपा ने डॉ. रामप्रताप कासनिया को मैदान में उतारा। दो जाटों की इस जोर आजमाइश में डूडी सफल रहे। सरकार अटलबिहारी के नेतृत्व में राजग की बनी। तेरहवीं लोकसभा और भाजपा सरकार, दोनों ने पांच साल तसल्ली से निकाल दिए। कहने को डूडी काम करवा पाने के लिए खुद की पार्टी की सरकार होने की आड़ ले सकते हैं। पर सच्चाई यह कि डूडी पूरे पांच साल तक हासिल सांसदी के मद से निकल ही नहीं पाए। उन्हें अपने क्षेत्र के लिए करना-करवाना सूझा ही नहीं। कह यह भी सकते हैं कि बीकानेर के हिस्से में आजादी बाद से ऐसा कोई सांसद नहीं आना था, जो सचमुच में जनप्रतिनिधि हो। इसी के चलते 2004 के चुनावों में भाजपा ने सिने अभिनेता धर्मेन्द्र को यहां से उतारा। उनकी काबिलीयत इतनी ही थी कि वे लोकप्रिय अभिनेता और मूलत: पंजाब के जाट थे। सामने कांग्रेस के रामेश्वर डूडी ही थे, हालांकि डूडी ने धर्मेन्द्र को पूरा जोर करवाया और धर्मेन्द्र जैसे जाट के सामने मात्र 57,000 वोटों से ही हारे जो लोकसभा चुनाव के हिसाब से बड़ी हार नहीं थी। धर्मेन्द्र ने पूरे पांच साल सांसदी भोगी पर कोई काम तो बड़ी बात, क्षेत्र की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा। दो-तीन बार आए भी तो वातानुकूलित कार और होटल से बाहर झांका तक नहीं। जब उन्होंने चुनाव लड़ा-तब भी पूरे चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने पूरे समय यहां रहना जरूरी नहीं समझा, जनता को तभी समझ जाना चाहिए था
परिसीमन हुआ, लम्बे-चौड़े बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में से श्रीगंगानगर के पीलीबंगा, सूरतगढ़ और रायसिंहनगर तथा नागौर के जायल को अलग कर श्रीडूँगरगढ़ नए बने खाजूवाला तथा बीकानेर शहर के विभाजन से बने नए निर्वाचन क्षेत्र को शामिल किया गया। लोकसभा क्षेत्र में आई इस कसावट से कुछ सकारात्मक होने की उम्मीदें बनी। क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित घोषित हुआ। 2009 में पन्द्रहवीं लोकसभा के लिए भाजपा ने जहां भारतीय प्रशासनिक सेवा के अर्जुनराम मेघवाल को सेवानिवृत्ति दिला कर मैदान में उतारा वहीं कांग्रेस के पास कोई नया चेहरा नहीं था। लगभग ढुलमुल व्यक्तित्व और भाजपा-कांग्रेस में लगातार आवागमन करते रहने वाले पूर्व विधायक रेंवतराम पंवार को उम्मीदवारी दी गई। क्षेत्र के प्रभावी जाट नेता और पूर्व सांसद रामेश्वर डूडी से पंवार का हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा, कुछ ऐसे ही कारणों के चलते पंवार चुनाव हारे। मेघवाल ने उसी चुनाव में सिर पर पाग का स्वांग धरा, शहर के दिग्गज कांग्रेसी डॉ. कल्ला ने उलाहना दिया कि ये तो वोट के लिए नाटक है। बस फिर क्या अर्जुनराम मेघवाल ने पाग को झक की तरह झाल लिया। 1995 से विग से काम चला रहे अमिताभ बच्चन को कभी किसी ने बिना विग देखा हो तो 2009 के बाद अर्जुनराम मेघवाल को बिना पाग के।
मेघवाल ने पूरे पांच साल बिना कुछ किए धरे केवल सजावटी जनसम्पर्क प्रबन्धन से निकाल लिए। अपनी हर गतिविधि को बढ़ा-चढ़ा कर और सजाकर मीडिया के माध्यम से बखूबी पेश करते रहे। अनुशासित विद्यार्थी की तरह संसद की हाजिरी लगाने के अलावा क्षेत्र के लिए कुछ खास उन्होंने किया-धरा नहीं। अच्छे सांसद के रत्न अवार्ड का प्रबन्ध किस तरह किया जाता है यह ट्रिक मेघवाल समझ गये।
इन चुनावों में अपने किए कामों का फोल्डर मेघवाल ने जारी किया है। उसे देखकर लगता है कि कम से कम इस मामले में उन्होंने अपना गुरु कांग्रेस के डॉ. बी.डी. कल्ला को मान लिया है। कल्ला भी हर चुनाव में ऐसा ही फोल्डर जारी करते रहे हैं जिसमें सामान्य रूटीन में हुए कामों को करवाने का श्रेय खुद लेने से नहीं चूकते। ऐसे भी रुटीन काम जो सभी संभागीय जिला मुख्यालयों में होने थे उन्हें बीकानेर में अन्त में करवाना सरकार की मजबूरी हो जाती है, इस तरह हुए कामों का श्रेय भी कल्लाजी को।
कल्ला की ठीक इसी तर्ज पर निकाले गए अर्जुनराम मेघवाल के पैंफलेट को देखें तो ऐसा ही भान होता है। मेघवाल के फोल्डर में नई रेलगाडिय़ों को शुरू करवाने के अलावा किसी भी काम को उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता। ऐसे सभी काम सामान्य प्रशासनिक काम हैं जो देर-सबेर होने ही होते हैं। नई रेलगाडिय़ों के बारे में भी थोड़ा 'छिद्रान्वेषण' कर लिया जाए तो सांसद की चतुराई समझ में जाएगी। गुवाहाटी-बीकानेर जो जुलाई 2002 से चल रही है, अक्टूबर 2003 से चल रही सिकन्दराबाद-बीकानेर, कोच्चीवली-बीकानेर (जो पहले तिरुवन्तपुर तक चलती थी) 2007 से चल रही है। इन तीनों गाडिय़ों के शुरू होने के समय मेघवाल सांसद ही नहीं थे। इसी तरह हाल ही में शुरू चेन्नई-बीकानेर पुरी-बीकानेर, सितम्बर 2012 से चली कोयम्बटूर-बीकानेर, कोलकाता-बीकानेर, इसी तरह बान्द्रा-बीकानेर (साप्ताहिक), कोटा-हनुमानगढ़ जैसी सभी गाडिय़ां अन्य रेलवे जोनलों-मंडलों की हैं जिन्हें या तो वहां के प्रवासियों की मांग पर वहां के नेताओं ने चलवाया या वहां की रेलवे ने अपनी जरूरतों के हिसाब से। इनमें हमारे सांसद का कोई योगदान हो तो स्पष्ट करना चाहिए।
बीकानेर क्षेत्र जिस उत्तर-पश्चिम रेलवे में आता है वहां से इन पांच सालों में रतनगढ़ मार्ग पर दिल्ली के लिए दो गाडिय़ां तथा हिसार के लिए एक गाड़ी शुरू जरूर हुई है जो उन गाडिय़ों की एवज में थी जो मीटरगेज के समय मेल-लिंक की दो रात्रि गाडिय़ां और दिन की एक एक्सप्रेस चलती थी। हमारे सांसद दिल्ली की उन तीनों एवजी गाडिय़ां को शुरू करवा देते तो मान लेते, इस हिसाब दिल्ली के लिए रतनगढ़ मार्ग से एक गाड़ी अभी बकाया है। यह फोल्डर देखकर इन दिनों टीवी-रेडियो पर रहा 'आयडिया सेलुलर' का यह विज्ञापन जरूर याद जाता है- 'नो उल्लू बनाविंग'
बात कांग्रेस के उम्मीदवार की भी कर लेते हैं। श्रीगंगानगर से अधूरी सांसदी कर चुके शंकर पन्नू ने जनता के सामने तो बीकानेर के सम्बन्ध में अपनी दृष्टि जाहिर की और ही कुछ करवा पाने की इच्छाशक्ति वह दिखा पा रहे हैं। बीकानेर की जनता इन छासठ सालों में सांसदी के मामले में सिर्फ और सिर्फ ठगी जाती रही है, ये लोग जीत केवल इसलिए हासिल करते रहे और करना चाहते हैं कि सांसदी सिर्फ भोग सकें। इस बात से पाठक सहमत हों तो उनसे अनुरोध है कि वोट डालने फिर भी जाएं और लगे कि सभी उम्मीदवार नाकारा हैं तो आपको इन सभी को नकारने का 'नोटा' Nota बटन वोटिंग मशीन में सबसे नीचे दिया गया है, उसका नि:स्संकोच उपयोग करें।
16 अप्रेल, 2014

समाप्त

No comments: