Saturday, March 1, 2014

सरकारी सम्पत्ति को अपनी समझना कब शुरू करेंगे?

नगर विकास न्यास की कल हुई बैठक में निर्णय किया गया कि आगामी तीन माह में शहर में 67 करोड़ रुपये के काम करवाएं जाएंगे। इसमें मोटी राशि शहर की सड़कों सौन्दर्यवर्धन कार्यों और रखरखाव पर खर्च होगी। इससे चौदह दिन पहले यानी चौदह फरवरी को बीकानेर नगर निगम ने अगले वित्त वर्ष के बजट में शहर पर 117 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया था। न्यास के खर्च की गति यही रही तो आगामी वित्त वर्ष में लगभग सवा दौ सौ करोड़ रुपये उसकी ओर से शहर पर खर्च होंगे। इससे भी ज्यादा की संभावना इसलिए लग रही है कि यदि सूबे की मुखिया अपनी कार्यशैली के अन्तर्गत भरतपुर संभाग की तर्ज पर इस दौरान शासन और कैबिनेट की बैठकें यहीं करने का तय करती हैं तो इस राशि में कई गुना बढ़ोतरी की संभावना है।
यह सारा धन विभिन्न तरीकों और स्रोतों से आमजन से उगाहे राजस्व या कर्ज लेकर खर्च किए जा रहे हैं, इस तरह के कर्जें की राशि का भार प्रदेश और देश के प्रतिव्यक्ति पर माना जायेगा। ऐसे आंकड़ों को जब-तब प्रसारित और प्रचारित भी किया जाता है। ऐसे में आम नागरिक इस बात को लेकर जागरूक क्यों नहीं होता है कि ऐसे बजटों और प्रावधानों की राशि के खर्च होने पर वैसे ही निगरानी रखी जानी चाहिए जैसे कि आप अपने घर पर होने वाले खर्च के समय रखते हैं।
पिछली सदी के नवें दशक में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो इन सरकारी बजटों और खर्चे के प्रावधानों पर लगने वाली राशि में खयानत को अधिकृत तौर पर पहली बार स्वीकार करते हुए बताया कि रुपये में से पचासी पैसा छीजत में चला जाता है? तब से लेकर अब तक यह छीजत बदस्तूर जारी है, चाहे केन्द्र में कांग्रेस नीत संप्रग की सरकारें रही हों या भाजपानीत राजग की। ठीक यही गत राज्य सरकारों की रही है चाहे वहां किसी भी दल की सरकारें क्यों चल रही हों।
उन्नीस सौ सैंतालीस में देश छोड़कर चले गये अंगरेजों को लूट के लिए आज तक भुंडाना और कोसना जारी है। ऐसा क्या इसलिए हो रहा है ताकि अंगरेजों को कोसने की आड़ में इन राजनेताओं, सरकारी मुलाजिमों, ठेकेदारों, दलालों और व्यापारियों के एक समूह को आम आवाम के इस धन का अधिकांश लूटते रहने की छूट मिलती रहे। आजादी के इन छासठ सालों में हमने अपनी सामूहिक सम्पत्ति को सार्वजनिक की आड़ में सरकारी करके इतना पराया मान लिया कि उसकी लूट को ही नजरअन्दाज करने लगे हैं? इस धन को हम इतना मान भी नहीं देते जितना पड़ोसी के घर में होती चोरी का पता लगने पर यथेष्ट प्रतिक्रिया देकर व्यक्त करते हैं। यानी पड़ोसी के घर चोरी होने के खटके पर केवल सक्रिय होते हैं बल्कि यथा सम्भव पुलिस को सूचना देने की कोशिश करते हैं या हाका करके मुहल्ले को जगाने का जतन करने से भी नहीं चूकते।
इन राजनेताओं की सरगनाई में भ्रष्ट सरकारी मुलाजिम, ठेकेदार, बेईमान व्यापारी, दलाल हमें खुलेआम लूट रहे हैं और हम शोर मचाना बरजना तो दूर मुसकते तक नहीं! देश के नागरिक अपने ऐसे अनमनेपन को नहीं छोड़ेंगे तब तक कोई नेता जाए या पार्टी, अमानत में यह खयानत जारी रहेगी। फिर चाहे न्यास 200 करोड़ खर्च करे या निगम 100 करोड़, असल में लगना 15-20 प्रतिशत ही है। हां, इसके लिए पहले खुद को खरा होना होगा अन्यथा किसी की ओर एक अंगुली दिखाएंगे तो चार अंगुलियां अपनी तरफ होंगी।

1 मार्च, 2014

2 comments:

maitreyee said...

बहुत सही

Manoj Shah said...

Very good article.