Friday, February 21, 2014

प्रदेश कांग्रेस की गत

कांग्रेस पार्टी प्रदेश में अब तक की अपनी सबसे बड़ी हार से उबर नहीं पा रही है। सदमा भारी इसलिए भी है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार वह दण्ड भुगत रही जिसकी दोषी वह नहीं है केन्द्र में कांग्रेसनीत सप्रंग की सरकार है, इस केन्द्र सरकार की बट्टे खाते जा रही साख को सम्हालने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की थी जिसे उन्होंने कतई जरूरी नहीं समझा। बल्कि मौनी बाबा की मुद्रा ने कांग्रेस को फिलहाल कहीं का नहीं छोड़ा है। व्यक्तिगत रूप से मनमोहनसिंह ईमानदार हो सकते है, हैं भी, लेकिन राजनीति के व्यवसाय में प्रदर्शन या कहें दिखावे की भूमिका को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। मनमोहनसिंह इस कला में शून्य साबित हुए हैं। इसी के चलते उनकी पार्टी की अच्छी खासी सरकार को विधानसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी।
जिस सदमे की शुरू में बात की उसके कई जिम्मेदारों में अपनी-अपनी चौधर कब्जाए बैठों में शीशराम ओला का देहावसान हो गया और डॉ. सी.पी. जोशी सुन्नपात से अभी निकल नहीं पाए हैं। कांग्रेस सरकार के मुखिया रहे अशोक गहलोत उस सजायाफ्ता कैदी की मुद्रा में नजर आने लगे जो बिन अपराध के सजा भुगत रहा हो।
विधानसभा चुनावों में करारी हार के तुरंत बाद कांग्रेस ने प्रदेशाध्यक्ष को बदल सुलझे युवा सचिन पायलट को कमान सौंप दी। सचिन केन्द्र की सरकार में महत्त्वपूर्ण मंत्रालय भी सम्हाल रहे हैं और प्रदेश में लुंज-पुंज हो चुके पार्टी संगठन को भी। वे भूल रहे हैं कि इस समय प्रदेश कांग्रेस संगठन को ऐसे हॉलटाइमर की जरूरत है जो चौबीसों घण्टे बचे-खुचे कार्यकर्ताओं की जुम्बिश जुटाने में लगा हो। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में पायलट बजाय सक्रिय होने के किसकी राह देख रहे हैं।
पिछली हार के बाद प्रदेश इकाई ने कल जयपुर में प्रदेश की सरकार के खिलाफ पहला प्रदर्शन रखा, उसकी घोर असफलता ने जाहिर कर दिया कि पार्टी के खेवनहार पार्टी की साख को लेकर अभी गंभीर नहीं हुए हैं। ऐसे फ्लॉप शो से पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं में मूच्र्छा बढ़ेगी ही। कांग्रेस की पिछली सरकार ने जिस जयपुर शहर की ओर पांच साल खजाने का मुंह किए रखा वहां की सभी सीटें हारना ताज्जुब से कम बात नहीं थी। अलावा इसके जिस गुर्जर समुदाय से नये प्रदेशाध्यक्ष आते हैं, उस समुदाय की बड़ी बसावट जयपुर के इर्द-गिर्द मानी जाती है। जयपुर के पार्टी कार्यकर्ता या कहें कांग्रेस की सरकारों के रहते लाभान्वितों को कल के प्रदर्शन के लिए सक्रिय कर पाने की वजह समझ में आती है पर खुद सचिन की बिरादरी के लोग चाहते तो गिनने लायक सिर तो कल जुटवा ही देते ताकि सचिन के साफे की कलफ बनी रहती। अगर तैयारी नहीं थी तो उन्हें हजार-पन्द्रह सौ लोगों वाले ऐसे प्रदर्शन को करना ही नहीं था। पार्टी का यही हाल रहा तो प्रदेश में उन्नीस सौ सतहत्तर के लोकसभा चुनावों के परिणामों की पुनरावृत्ति होते देर नहीं लगेगी जब पार्टी कुल पचीस में से मात्र एक सीट ही जीत पायी थी।

21 फरवरी, 2014

2 comments:

maitreyee said...

पूरी तरह से सही!!

Manoj Shah said...

राजस्थान में कांग्रेस की यह हालत गुणवत्ता नेताओं की अनुपलब्धता की वजह से है.