श्रीगंगानगर जिला राजकीय अस्पताल की नर्सरी (जहां नवजात शिशुओं को रखा जाता है) में शार्ट सर्किट से कल लगी आग में एक नवजात इतना झुलस गया कि उसे इलाज के लिए जयपुर रैफर करना पड़ा। इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में इस तरह की घटनाओं के समाचार आए दिन सुर्खी पाते हैं। इस तरह की घटनाओं के कारणों की पड़ताल करें तो लापरवाही ही सामने आती है। किसी भी काम को दक्षता से न करने की आदत सरकारी कार्य की पहचान बन गई है।
देश आजाद होने के बाद से ही यह बात हमारे चेतन-अवचेतन में घर करती चली गई कि अब हमारी जवाबदेही वैसी नहीं रही जैसी रियासती काल में या अंगरेज हाकमों के समय होती थी। इस तरह की लापरवाही के बाइ-प्रॉडक्ट लालच और आलस्य निर्भयता से बरते जाने लगे हैं और इन्हें पुष्ट करने या कहें आड़ देने-लेने के लिए ही भ्रष्टाचार ने जड़ें जमानी शुरू कीं। सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्रों के काम और जरूरत के सामान की आपूर्ति प्रक्रिया की जांच की जाय तो बड़े चिन्ताकारी आंकड़े और प्रमाणों से रू-बरू होना पड़ता है। लेन-देन के चलते इन कामों में मानक सामग्री का उपयोग, आपूर्ति नहीं होती है और न ही दक्षता से काम होता है। इस तरह के प्रलोभनों के चलते अधिकारी-कर्मचारी दफ्तरों के तय समय में अपनी सीटों पर नहीं मिलेंगे। नौकरी कंफर्म होते ही सरकारी मुलाजिम अफसर हो या बाबू, आम-आवाम के ‘खसम’ के रूप में व्यवहार करने लगते हैं। देश के आजाद होने बाद उन्हें कभी यह एहसास ही नहीं कराया गया कि आप जिस आम-आवाम के साथ ‘खसम’ के रूप में व्यवहार करते हो, असल में उनके चुकाए राजस्व से ही उन्हें तनख्वाह और अन्य सुविधाएं हासिल होती हैं। गुलामी के समय की आम-आवाम की आदतों में बदलाव नहीं आया। सरकारी मुलाजिम को वे बदस्तूर माई-बाप ही मानने लगे और उनके किए-धरे को एहसान। हम यह भूल जाते हैं कि इन्हें तनख्वाह आम-आवाम के कामों को करने की एवज में ही मिलती है।
बिजली से सम्बन्धित दुर्घटना से बात शुरू की जाए तो बिजली से सम्बन्धित कामों के दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते हैं। मानकीय उपकरण की जगह गैर मानकीय उपकरण और कैबल-तार की आपूर्ति सामान्य बात हो गई। झूठे मानकीय सर्टिफिकेट लगाए जाने लगे हैं। फिटिंगों में सुरक्षा मानकों के एमसीबी जैसे उपकरणों में कमतरी की जाती है तो तार और कैबल भी निम्न मानक के लगा दिए जाते हैं। रोड लाइटों में आए दिन होने वाले फॉल्ट और भूमिगत कैबलों के खराब हो जाने के चलते खम्भों में बेतरतीब से तारों को जब-तब और जहां-तहां उलझा देख सकते हैं। बीकानेर के पीबीएम अस्पताल की बात करें तो बेतरतीब तारों के उलझाड़ आप कहीं भी देख सकते हैं। उपकरणों का टेढ़े-मेढ़े लगे होना आम बात है। इन सब के लिए जिम्मेदार अधिकारी क्या अपने घरों में भी इसी तरह से काम होने देते हैं। इस देश को क्यों नहीं वे अपना वृहत घर मानते हैं? गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस मात्र स्मृति दिवस और श्राद्ध जैसे अवसर ही नहीं रह गये हैं?
11
फरवरी, 2014
3 comments:
बिल्कुल सही!!
good story and well written
अच्छी कहानी और अच्छी तरह से लिखा
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