Monday, January 6, 2014

हिचकोले खाता तकनीकी विश्वविद्यालय

लोक में एक नकारात्मक कैबत प्रचलित है--‘रात भर रोया, मर्यो एक ही कोनी, एक मर्यो जको सुबे उठ भाजग्यो।सूबे में सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, बीकानेर के साथ हमेशा उक्त केबत सा ही होता आया है। पिछले बजट में अशोक गहलोत ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय की एवज में कहें याडैमेज कन्ट्रोलके तहत बीकानेर के लिए तकनीकी विश्वविद्यालय की घोषणा तो कर दी लेकिन पूरे वर्ष या कहें चुनावी आचार संहिता लगने से कुछ पहले तक उसे अमली जामा पहनाने की फुरसत नहीं निकाल पाए। अगस्त 2013 में आहूत विधानसभा के आखिरी सत्र के आखिरी दिन इसके लिए विधेयक लाया तो गया लेकिन विपक्षी नेता और भाजपाई दिग्गज गुलाबचन्द कटारिया के एतराज पर वह धरा रह गया। अब भाजपा की नई सरकार ने पिछली सरकार द्वारा पिछले वर्ष की 20 सितम्बर को आनन-फानन में जारी इस तकनीकी विश्वविद्यालय के अध्यादेश के स्थान पर लाए जा रहे विधेयक कोसमीक्षाकी आड़ में रोकने के संकेत दिए हैं।
पिछली सरकार ने विश्वविद्यालय का केवल कुलपति नियुक्त कर दिया था बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया में कृषि विश्वविद्यालय परिसर में कुछ कमरे देकर इसे औपचारिक रूप से चलाने की व्यवस्था भी कर दी। लेकिन इस बीच नई सरकारनिवाले के मुंह तक पहुंचने से पहले हीहाथ झालने की कवायद में दिख रही है। तकनीकी विश्वविद्यालय बीकानेर के लिए जरूरत से ज्यादा जनाकांक्षा का मुद्दा बन रहा है। लेकिन हमारे शहर के तब और अब के दोनों भाजपाई विधायकों को तब भी कुछ करते नहीं देखा गया जब उनके नेता ने विधानसभा में इस विश्वविद्यालय से सम्बन्धित विधेयक का विरोध किया था। अब जब इस विधेयक को नई विधानसभा द्वारा पारित करवाने की औपचारिकता पूरी होनी है और इसे फिर रोका जा रहा है तब भी दोनों विधायकों, डॉ. गोपाल जोशी और सिद्धीकुमारी का चुप रहना क्या इसे उस लोक अखाणें से समझना जरूरी नहीं है जिसमें कहा जाता है कि या तो इनकीनाड़ें मरी हुईहै याइनकी नाड़ दबी हुईहै।
बीकानेर में लम्बे समय से यह धारणा आम है कि इस क्षेत्र के साथ हमेशा ही सौतेला व्यवहार होता आया है सचमुच में नई विधानसभा के आहूत सत्र में इस विधेयक को नहीं रखा जाता है तो उक्त धारणा पुष्ट ही होगी। इस सौतेलेपन को अभिशाप मान लेने की पुष्टि इसलिए भी संभव है कि ऐसा व्यवहार इस क्षेत्र के साथ दोनों ही पार्टियों की सरकारों के समय में होता आया है। इससे पहले वसुंधरा की पिछली सरकार के आखिरी वर्ष में शहरी रेल फाटकों के आदर्श समाधान एलिवेटेड रोड की योजना को दस-बीस स्वार्थी व्यापारियों के विरोध का बहाना बना कर उसके घोषित बजट को अन्यत्र ले जाया गया था।
इस सबकी जिम्मेदारी ऊपरी तौर पर हमारे तथाकथित जनप्रतिनिधियों की बनती है लेकिन अन्तत: इसके जिम्मेदार शहर के मतदाता ही माने जाएंगे जो अब तक ऐसे लुंज-पुंज व्यक्तित्वों को चुन कर भेजते रहे हैं जिनको या तो इस शहर से प्यार नहीं होता या उनके पास इसके विकास की कोई दृष्टि नहीं होती। जब तक ऐसों को अपना खैर-ख्वाह हम बनाते रहेंगे तब तक राजनीतिक सौतेले व्यवहार को भुगतने को भी तैयार रहना होगा।

06 जनवरी, 2014

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