Monday, January 20, 2014

चौकस दिखते चालके कुछ कर भी पाएंगे !

सूबे में नई सरकार आने के बाद बड़े प्रशासनिक फेरबदल में जिला पुलिस अधीक्षक या कहें एसपी के पद पर सन्तोष तुकाराम चालके ने जिले की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी सम्हाली है। क्षेत्र में निर्विघ्नता के आकांक्षी ऐसे पदों पर नये आए हर अधिकारी से उम्मीदें पालते हैं, पद सम्हालने पर ऐसे पदाधिकारियों से मीडिया द्वारा लिए बयानों से निर्विघ्नाकांक्षियों की उम्मीदें हरी भी होती हैं पर थोड़े दिनों बाद ही वह मुरझाने लगती हैं। चोरी-चकारी, धौंसगिरी, यातायात को अस्तव्यस्त करने में लगे लोग आदि-आदि ठिठक कर नये आए अधिकारी की मंशा भांपते हैं और प्रतिकूलताओं की आशंकाएं अपने लिए निर्मूल लगते ही उक्त सब फिर सक्रिय हो लेते हैं और सावचेत निर्विघ्नाकांक्षी कानून और व्यवस्थाओं में शिथिलता का एहसास कर विघ्न से बचने की जुगत में लग जाते हैं। हर नये एसपी के आने के बाद कमोबेश ऐसा होता है और बद से बदतर होती जीवनशैली फिर से ढर्रे में ढलती दिखने लगती है।
विधानसभा चुनावों से पहले पिछली सरकार ने उन एसपी को हटा दिया था जिनकी उपस्थिति का एहसास ही विघ्नकर्ताओं में नहीं देखा गया। शहर में रिकार्ड चोरियां, चेन तोड़ने और लूट की घटनाएं हुईं। चुनाव पूर्व आए नये एसपी की सम्भवत: विशेष हिदायत से लूट और चोरी पर तो कुछ अंकुश देखा गया पर शेष सभी करतूतें यथा अस्तव्यस्त यातायात, जिप्सम के अवैध खनन में कुछ सावचेती और शेष सभी अवैध कारोबार बदस्तूर जारी रहे।
सरकार बदली तो कुछ तो बदलाव प्रदर्शन के लिए, कुछ सत्ताधारी पार्टी की स्थानीय शिकायतों पर तो कुछ सरकार में प्रभावी नेताओं और अधिकारियों की इच्छापूर्ति के लिए पुलिस अधिकारियों को इधर-उधर किया गया है। कलक्टरों को फेंटने की कुछ खास कवायद अभी हुई नहीं है। पुलिस महकमे को फेंटने की उक्त प्रक्रिया में ही बीकानेर को एसपी के रूप में सन्तोष तुकाराम चालके मिले हैं। इन्होंने अपना मिजाज कुछ अलग दिखाने की चेष्टा की है, पद ग्रहण करने के बाद कहा कि बजाय कहने के वह कुछ करके दिखाना चाहते हैं। ड्यूटी पर तैनात अधीनस्थों को सैल्यूट मारने की छूट देकर ऐसा ही सन्देश देने की कोशिश भी की है। स्थानीय नेताओं के दबाव में अपनी मंशाओं को सिरे तक ले जा पाएंगे कहना मुश्किल है।
शहर में पिछले बीस वर्षों से यातायात व्यवस्था बद से बदतर होती गर्त में चली गई है। यहां तक कि बीकानेर यातायात शाखा को राज्य पुलिस सेवा अधिकारी मिलने के बावजूद उसका कोई दबदबा नहीं देखा गया। हमारे नेता जिन्हें तथाकथित नेता कहना ही ज्यादा उचित होगा, वे सभी इस आशंका से ग्रसित रहते हैं कि शहर का यातायात सहज हुआ तो वे खुद असहज हो जाएंगे। सो कोई अधिकारी कुछ करना भी चाहे तो ये नेता पसरते देर नहीं लगाते।
शेष सभी अनियमितताएं यथा क्रिकेट का सट्टा, अवैध जिप्सम का धंधा, पीओपी फैक्टरियों में अवैध ईंधन का उपयोग जिसके चलते चाहे क्षेत्र की संपदा खेजड़ी सहित बचे-खुचे स्थानीय पेड़ ही क्यों ना समाप्त हो जाए, मिलावट और बड़े पैमाने पर बनता और बेचा जाता नकली देशी घी आदि-आदि कबाड़े होते रहने देना क्या जरूरी इसलिए है, अन्यथा इनकी उगाही से सत्ताधारी पार्टियों के पदाधिकारियों के खर्चे और दफ्तर जो चलते हैं?

20 जनवरी, 2014

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