Thursday, June 23, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-8

 उधर चूरू में अलग तरह की हलचल हुई। 8 अगस्त 1942 को बम्बई में गांधी के भारत छोड़ो आन्दोलन के आह्वान पर देशव्यापी गिरफ्तारियां हुईं। इसके विरोध में चूरू हाइ स्कूल के विद्यार्थियों ने 10 11 अगस्तदो दिन की हड़ताल रखी। अपनी रियासत में हुई ऐसी प्रतिक्रिया से गंगासिंह तिलमिला गये। विद्यार्थी नाबालिग थे उन पर कोई कानून लागू नहीं हो सकता था, तो एक अध्यापिका को नौकरी से निकाल दिया। वहीं वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र भी आन्दोलित हुए। बीकानेर रियासत के छात्रों के लिए कुछ सीटें आरक्षित थीं, जिसके अन्तर्गत वहां शिक्षा पा रहे सत्यनारायण हर्ष और सत्यप्रकाश गुप्ता को आन्दोलन में शामिल होने के आरोप में विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया। सत्यप्रकाश गुप्ता वही हैं जिन्होंने आजादी बाद वर्षों तक बीकानेर से 'ललकार' अखबार निकाला। तीसरे थे बीदासर के हीरालाल शर्मा (दायमा) जो कानपुर में सक्रिय थे। दायमा भी निष्कासित होकर गांव लौट आये, लेकिन शान्त नहीं बैठे। पेड़ों पर हस्तलिखित नारे चिपकाते रहे। पकड़े गये और वर्षों जेल में रहे।

इस बीच गोईलजी के जो भी साथी थे उन्हें राज की ओर से समझाया जाने लगा कि तुम इन परदेशियों के चक्कर में आओ। वह मुक्ताप्रसाद गया जो नहीं लौटा तो यह रघुवर दयाल भी नहीं आयेगा। जिन कार्यकर्ताओं के रिश्तेदार राज की नौकरी में ऊंचे पदों पर थे उनसे दबाव बनाये गये। लेकिन कोई टस से मस नहीं हुआ। गंगादास कौशिक घर में नजरबन्द थे तब भी खबरें भेजने में लगे रहे, एक दिन उन्हें भी काल कोठरी में भेज दिया गया।

ऐसी खबरें जयपुर पहुंचने पर गोईलजी में बेचैनी बढ़ गयी और तय कर लिया कि कुछ भी होमैं अपने शहर लौटूंगा। सत्यनारायण पारीक अजमेर गये तो वहां के साथियों ने पारीकजी से कहा कि गोईल को कहें कि उनकी अनुपस्थिति में बीकानेर के आन्दोलन पर बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए लौटने में शीघ्रता करनी चाहिए।

बीकानेर लौटने के लिए गोईल ने पहले तो रियासत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखे। उनका जवाब मिलने पर, 29 जुलाई 1942 . सेे निर्वासित गोईल ने 29 सितम्बर 1942 . को जोधपुर रियासत के आखिरी रेलवे स्टेशन चीलों से बीकानेर रियासत में प्रवेश कर लिया। रेलगाड़ी को नोखा पहुंचने से पूर्व ही रुकवा कर गोईल को गिरफ्तार कर लिया गया। राजद्रोह का मुकदमा चला। 

8 अगस्त 1942 . को भारत छोड़ो के आह्वान वाले बम्बई अधिवेशन में अपने निर्वाचन के दौरान ही बीकानेर के रघुवरदयाल गोईल तथा भादरा के खूबराम सर्राफ, नोहर के मालचंद हिसारिया के भाग लेने को खुला विद्रोह माना गया। ब्रिटिश क्राउन के वफादार गंगासिंह ने इसे अपनी वफादारी में भी कमी माना, इसलिए गोईल और अन्य पर वे खार खाये बैठे थे। 

बम्बई से लौटने पर सर्राफ और हिसारिया के रियासत में प्रवेश करते ही गिरफ्तार कर यातनाएं देनी शुरू कर दी गयी। चूरू में इन गिरफ्तारियों से रोष फैल गया। सरदारशहर हाइस्कूल के विद्यार्थियों ने 2 अक्टूबर 1942 . को गांधी जयंती मनाने की घोषणा की, लेकिन शासन ने मनाने नहीं दी। प्रतिक्रिया-स्वरूप विद्यार्थियों ने दशहरे पर गंगासिंह वर्षगांठ का बहिष्कार किया। इस पर विद्यार्थियों को दंडित किया गया। राधाकिशन गोयल, मोहनलाल ब्राह्मण, मूलचंद सेठिया और दीपचन्द नाहटा नामक विद्यार्थियों को निष्कासित कर दिया गया। विद्यार्थियों द्वारा मुंह खोलने पर इनके उत्प्रेरक अध्यापक गौरीशंकर आचार्य का पता बहुत बाद में जाकर लगा। 

इस बीच अस्वस्थ होकर गंगासिंह जनाना अस्पताल की मुख्य चिकित्सक डॉ. शिवाकामु के साथ मद्रास जा चुके थे। वापस लौटने पर महाराजा गंगासिंह ने अनिश्चितकाल के लिए नजरबन्द खूबराम सर्राफ को तो रिहा कर दिया लेकिन हथकड़ी और बेडिय़ों के साथ कैद सरदारशहर के सेठ नेमीचन्द आंचलिया को बीमारी के बावजूद भी नहीं छोड़ा। गोईल के साथ मेल साबित होने पर शीतलाप्रसाद कायस्थ और उनकी पत्नी को 24 घंटे में रियासत छोड़ने को मजबूर किया गया।

दाऊदयाल आचार्य पर किसी अपराध का इल्जाम नहीं था इसलिए बिना किसी इल्जाम के ही उन्हें काल कोठरी में रखा गया। लेकिन रघुवरदयाल गोईल और गंगादास कौशिक को जेल में लगाई गई अदालत में सजा सुना दी गई। गोईल के लिए एक वर्ष की सख्त कैद एक हजार रुपये जुर्माना और कौशिक के लिए छह महीनों की कैद पांच सौ रुपये जुर्माना। सजा सुनाने के बाद गोईल के घर वाले कपड़े उतरवाकर कैदियों वाले कपड़े पहनाए गए और खूंखार कैदियों जैसे एक पैर में लोहे का कड़ा पहनाने का प्रयास किया। गोईल ने विरोध जताते हुए उसी दिन 13 अक्टूबर 1942 को भोजन का त्याग कर दिया।

काल कोठरी में बन्द गंगादास कौशिक ने पास से गुजरने वाले अन्य कैदियों और प्रहरियों से रिश्ते बना लिए थे। यहां तक कि हैड वार्डन मोतीसिंह से भी, जो किसी बात पर गंगासिंह से नाराज थे। इन्हीं माध्यमों से गोईल की भूख हड़ताल की खबरें देश-दुनिया तक पहुंचने लगीं। जयपुर के हीरालाल शास्त्री, जोधपुर से जयनारायण व्यास, भरतपुर प्रजा परिषद् के रेवतीरमन और अजमेर के शारदा एक्ट के प्रणेता चांदकरण शारदा के वक्तव्य आने लगे। बीकानेर नरेश की दमन नीति की निन्दा होने लगी। क्रमशः

दीपचंद सांखला

23 जून, 2022

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