Wednesday, June 15, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक–7

 गोईल मात्र 21 वर्ष की उम्र में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में शिरकत करने गये और लौटकर सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू के कहे अनुसार प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का आह्वान कर दिया। पहले बताया ही जा चुका है कि बीकानेर षड्यंत्र केस में स्वतंत्रता सेनानियों की पैरवी का कोई वकील साहस नहीं कर पा रहा था, तब बाबू मुक्ताप्रसाद के सहयोगी बनने से रघुवर दयाल झिझके नहीं। जब बाबू रघुवर दयाल ने षड्यंत्र केस के 'मुल्जिमान' की तरफ से वकालतनामा पेश किया तभी से वे महाराजा गंगासिंह को रड़कने लगे थे।

बीकानेर प्रजामण्डल और उनके सेनानियों के साथ गंगासिंह के बरताव से पूरी रियासत में सन्नाटा छाया हुआ था। तभी 1938 . में बाबू रघुवरदयाल को दाऊदयाल आचार्य जैसा सहयोगी मिल गया। पांच वर्ष के प्रवास के बाद दक्षिण हैदराबाद से लौटा यह वकील युवक खादी पहनता और अपने मित्रों के साथ राजनीतिक चर्चा करने को तत्पर रहता, लेकिन युवक उनके पास फटकने से झिझकते थे। काम के सिलसिले में बाबू रघुवरदयाल से मुलाकात हुई तो उन्होंने बीकानेर में छाये इस आतंक के बारे में बात की। राजनीति में आचार्य की रुचि देखकर गोयल ने आन्दोलन संबंधी सभी बातें विस्तार से बताईं और कहा कि इस समस्या का असली हल आजादी ही है। 1937 . में बाबू मुक्ताप्रसाद और अन्यों के निर्वासन के बाद 1942 . तक कोई भी खुली सुगबुगाहट नहीं कर पाया। दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने पर 1941 . के अन्त में गंगासिंह लौटे और एक फरमान जारी किया :

'हमारी प्रजा को पहले से ही आजादी से बोलने और पब्लिक मीटिंग करने का हक हासिल है, जिनके बिना प्रजा का राज के काम में शामिल होना व्यर्थ हो जाता है। हमारे विचार में हरेक सभ्य गवर्नमेंट की प्रजा को हक है कि राज्य की शान्ति में विघ्न डालते हुए कानून और तहजीब की हद में रहते हुए पब्लिक मामलों में आजादी पर गौर करे और हम इस हक को इसी रूप में बनाये रखना बहुत जरूरी समझते हैं।'

गंगादास कौशिक की उपस्थिति में अपने कार्यालय में आये दाऊदयाल आचार्य को उक्त फरमान बाबू रघुवरदयाल गोईल ने पढ़कर सुनाया। झूठ में लिपटी इस छूट को अनुकूल मानकर कौशिक और आचार्य संगठन बनाकर गतिविधियां शुरू करने को उत्साहित हो गये। गोईल ने गंभीर होकर कहा, 'हाथी की तरह हमारे महाराजा के खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं।' इस फरमान पर लंबी बातचीत की और असल परिस्थितियों से वाकिफीयत के बावजूद तीनों नये संगठन की प्रक्रिया में लग गये और गांधी मार्ग को अपनाते हुए तीनों ने अपने लिए अलग-अलग काम तय किये और लग गये।

गोईल द्वारा स्थापित खादी भण्डार हर तरह की गतिविधियों का केन्द्र हो गया। भण्डार के व्यवस्थापक देवीदत्त पंत राष्ट्रीय पर्वों पर आयोजन करने के उत्सुक रहते जबकि इस खादी भण्डार को खोलने की इजाजत अनेक सख्त शर्तों के साथ मिली थी। आयोजन होने लगे तो आयोजन करने के आदेश भी मिलने लगे। अनेक निर्भय युवक जुडऩे भी लगे जिनमें नाथूराम खडग़ावत, सत्यनारायण पारीक, सोहनलाल कोचर, कन्हैयालाल गोस्वामी, ठाकुरप्रसाद जोशी और श्रीलाल नथमल जोशी जैसों के नाम गिनाए जा सकते हैं। बीकानेर के सेनानियों ने अन्य रियासतों की आजादी के कार्यकर्ताओं तथा कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं से संपर्क बराबर रखा। बाहर आयोजित कार्यशालाओं में भी स्थानीय युवक जाने लगे। 

धीरे-धीरे शंकर महाराज, गुट्टड़ महाराज, धनजी माली और रावतमल पारीक जैसे लोग भी जुड़ गये। इस तरह 'बीकानेर राज्य प्रजा परिषद्' का विधिवत् गठन हो गया। गठन के लिए आयोजित बैठक में गोईल के अलावा, ख्यालीसिंह गोदारा, सत्यनारायण पारीक, घेवरचन्द बरोठिया, श्रीराम आचार्य, रावतमल पारीक, किशनगोपाल उर्फ गुट्टड़ महाराज, गंगादास कौशिक, रामलाल जोशी, रामनारायण आचार्य, दाऊदयाल आचार्य, सत्यनारायण अग्रवाल तथा भीक्षालाल बोहरा शामिल थे। (स्रोत : राज्य अभिलेखागार में सुरक्षित पर्चा-उपस्थिति

जब खादी पहनना और महात्मा गांधी की जय बोलना राजद्रोह में आता था तब कोटगेट के अन्दर सादुल स्कूल के पास स्थित सरावगी बिल्डिंग में 'स्वदेशी भण्डार' की स्थापना की, जहां खादी के साथ अखबारों का विक्रय भी किया जाने लगा। भंडार में सत्यनारायण पारीक, श्रीगोपाल दम्माणी, हिटलर दम्माणी और सत्यनारायण अग्रवाल आदि नियमित बैठकें करने लगे। गंगादास गाड़े के साथ गली-गली घूमकर खादी अन्य सामान बेचते। 1940-41 . में डीआईजी ने स्वदेशी भण्डार से गांधी डायरियां जब्त इसलिए कर ली क्योंकि उसमें प्रकाशित एक गीत को उन्होंने आपत्तिजनक माना। 

गोईल निर्वासन के बाद जयपुर में रहकर राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रहे। जयपुर में भी गोईल बीकानेर रियासत के गुप्तचरों की निगरानी में थे। गोईल की अनुपस्थिति में बीकानेर में उनके परिवार की देखभाल दाऊदयाल आचार्य करते। बीकानेर में छाई सून से आजादी के सभी दीवाने परेशान थे। घूम फिर कर आने-जाने वाली चिट्ठियां ही गोईल के सम्पर्क का साधन थी। गोईल के सहयोग के लिए दाऊदयाल आचार्य जयपुर गुए हुए थे। लेकिन पिता के श्राद्ध के लिए दाऊजी को लौटना पड़ा, लौटते वक्त दाऊजी को गुप्तचरी का अहसास था। नागौर में रेलगाड़ी से इस वहम में उतर गये कि गाड़ी बदल लूंगा तो पकड़ा नहीं जाऊंगा, उसी दौरान नागौर घूम भी आये और दूसरी गाड़ी पकड़ बीकानेर पहुंचे। उन्हें क्या पता कि बीकानेर का गुप्तचर जयपुर से ही उनके साथ चल रहा है। गाड़ी बीकानेर के आउटर सिग्रल पर रुकी तो सभी की तरह खिड़की से उन्होंने भी मुंह निकाला। पुलिस को देख माथा ठनक गया। इतने में अपने ही डिब्बे से एक को पुलिस को इशारा करते देख लिया। दाऊजी पर कोई आरोप तो था नहीं। बिना किसी मामले के पहले उन्हें गिराई (लाइन पुलिस) में रखा, ज्यादा दिन होने पर बन्द गाड़ी में जेल भेजकर काल कोठरी में बन्द कर दिया। खाने में इल्लियां-टिड्डे वाले आटे की रोटियां परोसी गयी, दाऊदयाल ने हार कर घर के खाने की दरख्वास्त की जो मंजूर हो गयी। क्रमशः

दीपचंद सांखला

16 जून, 2022


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