Wednesday, June 1, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-5

 महाराजा गंगासिंह ने ब्रिटिश शासन की योजनाओं और उनके निर्देशानुसार जहां जन हितेषी अनेक काम किये, वहीं आमजन से तथा विशेषत: किसानों से प्राप्त राजस्व का दुरुपयोग भी खूब किया। जूनागढ़ के होते हुए अपनी विलासिता के लिए लालगढ़ पैलेस (1902 से 1926 .), उसके पीछे जनाना आमोद-प्रमोद हेतु बसन्त विहार, विजय भवन, मनोरंजन के लिए पत्नी वल्लभ कंवर नाम से वल्लभ गार्डन, गजनेर पैलेस आदि के निर्माण गैर जरूरी थे। इतना ही नहीं, जब लालगढ़ पैलेस बन रहा था, तभी जूनागढ़ के पूर्वी हिस्से को कचहरी की ओर बढ़ाकर उसमें दरबार हॉल वाले हिस्से का निर्माण करवाया। 

इनमें से दो भवन ही आजादी बाद राजस्थान सरकार को सौंपे गयेविजय भवन जिस में पशु विज्ञान विश्वविद्यालय संचालित है और दूसरे एसेम्बली भवन में राजस्थान का प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग संचालित है। 

आजादी के लिए देशभर में आयी जागरूकता से बीकानेर रियासत भी अछूती कैसे रहतीबीकानेर, चूरू और हनुमानगढ़ क्षेत्र में आजादी के आंदोलन के लिए अनेक सक्रिय हुए जिनका दमन गंगासिंह और सादुलसिंह ने निरंकुशता से करवाया, ताकि ब्रिटिश क्राउन खुश रहे। यद्यपि आजादी की आहट सभी रजवाड़े अच्छे से महसूस करने लगे थे। स्वतंत्रता सेनानी सत्यनारायण पारीक के शब्दों में कहें तो ''महाराजा गंगासिंह के विकास के कार्यों की ओट में कुछ लोगों ने उनकी राजनीतिक रीति-नीति और जुल्म ज्यादतियों को अनदेखी करने की प्रवृत्ति अपनाई।'' प्रो. नाथूराम खड़गावत के शब्दों में कहें तो ''बीकानेर राज्य में महाराजा गंगासिंह का शासनकाल निरंकुश सत्ता और दमन का प्रतीक कहा जाता है। उनके लम्बे शासनकाल में जनमत निर्मित ही नहीं हो सका, सार्वजनिक संस्थाएं पनप नहीं पायीं, राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना तो दूर-सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं तक को पनपने का अवसर नहीं दिया गया। निरंकुश शासन के उस कठोर नियंत्रण की छाया में सार्वजनिक संस्थाएं अपने ही आंसुओं में डूब गयीं।''

बीकानेर रियासत में आजादी के बीज बोने वाले चूरू के स्वामी गोपालदास के बारे में गोविन्द अग्रवाल लिखते हैं, ''रियासत में महाराजा गंगासिंह के बारे उक्ति प्रचलित थी कि 'उनकी सांस से घास जलती है।' ऐसे क्रूर शासन की घोर अंधेरी रात में स्वामी गोपालदास ही थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की नींव डालने के लिए एक नन्हे से दीपक को जलाकर, आंशिक तौर पर ही सही, उस घोर अंधकार को चीरने का श्रीगणेश किया।''

'भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बीकानेर का योगदान' नामक अपनी पुस्तक में स्वतंत्रता सेनानी दाऊदयाल आचार्य बताते हैं ''ब्रिटिश भारत में 1905 . में बंग-भंग के फलस्वरूप स्वदेशी का जो तूफानी आन्दोलन चला, उसी काल में स्वामीजी गोपालदास ने चूरू में 1907 में 'सर्वहितकारी सभा' की स्थापना की जो आगे चलकर अपने कार्यों की विशिष्टता के कारण चूरू की कांग्रेस कहलाई।'

आचार्य बताते हैं कि स्वामी ने इस संस्था के माध्यम से सामाजिक कार्यों से शुरुआत की जिसमें सैकड़ों गांवों में कुएं और कुण्ड बनवाए, टूटे-फूटे जलाशयों का जीर्णोद्धार करवाया, लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खुलवाया, विधवाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था की, अछूतों के लिए 'कबीर पाठशाला' खोली। गोवंश के लिए अनेक तरह के काम किये। ऐसे कामों में बहुत लोग जुड़े जिनमें सेठ-साहूकार भी थे। जो भी जुड़ता स्वामी गोपालदास उनमें आजादी का बीज बो देते।

1929-30 . की लाहौर कांग्रेस में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पहली बार उठायी गई और इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू ने आह्वान किया—26 जनवरी को प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। चूरू में इस दिन 'धर्म-स्तूप' नामक एक इमारत पर झंडा फहराया गया। प्रशासन में तहलका मच गया, सख्त कार्रवाई के आदेश हुए। स्वामी गोपालदास जिस मन्दिर के पूजारी थे उसे जप्त कर लिया गया।

1932 ईस्वी में स्वामी गोपालदास, उनके मुख्य सहयोगी वर्तमान हनुमानगढ़ जिले के भादरा के सेठ खूबराम सर्राफ, वकील सत्यनारायण सर्राफ, चन्दनमल बहड़ और सोहनलाल शर्मा सहित उनके कई अनुचरों के खिलाफ मुकदमें दर्ज कर अन्यायपूर्ण हरकतें की गईं जिसके खिलाफ अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के क्षेत्रीय मंत्री जयनारायण व्यास (राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री) के सक्रिय होने तथा अखबारों में छपने से महाराजा गंगासिंह की देशव्यापी बदनामी हुई। इतना ही नहीं, बीकानेर रियासत की कारस्तानियों पर 'बीकानेर : एक दिग्दर्शन' नाम से 18 पृष्ठों की एक पुस्तिका लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन के प्रत्येक प्रतिभागी तक पहुंचाई गयी। सम्मेलन के अध्यक्ष लार्ड सेंकी ने कवर पर 'बीकानेर महाराजा को इसका जवाब देना चाहिए' लिख महाराजा गंगासिंह को थमा दी।

इस पर आग बबूला हुए गंगासिंह ने पंजाब से आने वाले गेहूं पर भारी जकात लगा दी, जिसका भारी विरोध हुआ। जनवरी, 1930 में अनेक सेनानियों को गिरफ्तार कर बीकानेर लाकर अलग रखा और यातनाएं दीं। उनके परिजनों को परेशान किया गया। बीकानेर के बाबू मुक्ताप्रसाद और बाबू रघुवरदयाल गोईल ने चूरू के इन सेनानियों की पैरवी निर्भय होकर की।

फलौदी के युवक गंगादास कौशिक बीकानेर आकर बस गये, जो कोलकाता में रहते स्वदेशी आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग ले चुके थे। ड्राइवरी जानते थे सो वाहनों के लिए सरकारी ठेकेदार अमरूदीन के यहां नौकरी कर उस जज बृजकिशोर चतुर्वेदी के लिए गाड़ी चलाने लगे जो चूरू के सेनानियों के मुकदमों की सुनवाई जेल के अन्दर कर रहे थे। जेल अदालत लगी। गंगादास कौशिक जज का भरोसा जीत उनकी निजी सेवा के बहाने उनके साथ जेल के अन्दर तक जाने लगे और इसी बहाने जोधपुर से बीकानेर आये जयनारायण व्यास के बायें हाथ शिवदयाल दवे को हर खबर पहुंचाते रहे। उक्त उल्लिखित सर्राफ द्वय, बहड़ और शर्मा को 6 से 3 वर्ष की सजाएं सुनाई गईं। क्रमशः

दीपचंद सांखला

2 जून, 2022

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