Thursday, May 7, 2015

सलमान पर फैसला

संजयदत्त के प्रति सहानुभूति की लहर सी चल पड़ी है... देश में हजारों-लाखों ऐसे होंगे जिनका कोई निकटस्थ न्यायालय में आपराधिक आरोपों से घिरा होगा या सजा पा रहा होगा। तो क्या उन सभी के लिए इस बिना पर माफी के लिए विचार किया जा सकता है कि उसके किसी प्रिय को, परिजन को, मां को, पिता को, पत्नी या बहिन-भाई को या बेटे-बेटियों को उसकी जरूरत है। क्या इस बिना पर किसी अपराध-विशेष के बाद अपराधी का जीवन संत जैसा हो गया है तो उसे माफ कर दिया जाय? ऐसे कई विचारणीय मुद्दे हैं जिन पर विचार कर के ही ऐसे किसी मसले पर बयान दिए जाने चाहिए। अन्यथा समाज में न्याय और कानून की प्रतिष्ठा कम या समाप्त होते देर नहीं लगेगी।
संजयदत्त वाली घटना के बाद ही सलमान का चिंकारा काण्ड और हिट एण्ड रन कांड हुआ है, गोविन्दा का थप्पड़ कांड हुआ है, सेफअली पर इसी तरह के कई आरोप हैं। कई राजनेताओं पर कई-कई संगीन आरोप न्यायालयों के विचाराधीन हैं। कोई नेता चुनाव जीत जाता है, या उसकी सभा में भारी भीड़ जुटती है तो क्या उसके अपराध माफ कर दिए जाने चाहिएं? अगर ऐसा होने लगेगा तो देश में कानून और व्यवस्था की बची-खुची प्रतिष्ठा भी धूल-धूसरित हो जायेगी।
विनायक/सम्पादकीय 22 मार्च, 2013
यह कुछ उद्धरण तब के सम्पादकीय के हैं जब 21 मार्च, 2013 को अभिनेता संजयदत्त पर लगे आरोप की पुष्टि करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने पांच साल की उनकी सजा बरकरार रखी थी।
मुम्बई के एक सत्र न्यायालय ने कल हिट एण्ड रन मामले में अभिनेता सलमान खान को दोषी मानते हुए पांच साल की सजा सुनाई तो लगा कि संजयदत्त पर लिखे की कुछ प्रासंगिकता यहां भी है। आज बात सलमान के हवाले से ही कर लेते हैं। हां, संजय और सलमान के मामले में बड़ा अन्तर यह है कि संजय ने अपना अपराध सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर लिया था जबकि सलमान अपने पर लगे विभिन्न आरोपों के मामले में या तो चुप हैं या वे उनसे बच निकलने के लिए लगातार वैसा कुछ करते रहे हैं जैसा अन्य समर्थ और समृद्ध करते हैं।
पूर्व-मित्र और अभिनेत्री ऐश्‍वर्या राय को प्रताड़ित करने के मामले में सलमान की चुप्पी को अपराधबोध की परिणति कह सकते हैं। ऐसे मामलों में ऐसी ही शालीनता का तकाजा होता है। लेकिन जोधपुर के काले हरिण शिकार मामले और मुम्बई के हिट एण्ड रन केस के इस मामले में लगता है कि सलमान ने राहत के लिए धमकाने के अलावा सभी हथकण्डे काम में लिए हैं। बावजूद इसके वे सजा से नहीं बच पाये तो इसलिए कि उनकी निजी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी रवीन्द्र पाटिल, वकील आभासिंह, जांचकर्ता अधिकारी राजीव काने, मुकदमा देख रहे पुलिस उपायुक्त सत्यनारायण और सरकारी वकील प्रदीप घरत डिगे नहीं, जो कम मुश्किल नहीं होता। इन सबने अपने धर्म को धारण किए रखा। लेकिन कल सम्बन्धित जजों ने भी अपने धर्म को धारण रखने में चुस्ती कुछ ज्यादा ही दिखलाई अन्यथा आज सलमान सलाखों के पीछे होते।
लेट लतीफ मानी जाने वाली भारत की न्याय व्यवस्था की कल सलमान के मामले में तत्परता न केवल उल्लेखनीय हो गयी बल्कि नजरों में भी आये बिना नहीं रह सकी। सवा बजे आये सत्र न्यायालय के इस फैसले पर पौने पांच बजे तो उच्च न्यायालय ने जमानत भी दे दी। एतराज जमानत के फैसले पर नहीं है। यानी देश की न्यायपालिका अन्य सभी मामलों में ऐसी तत्परता दिखलाने में सक्षम तो है, पर दिखलाती नहीं है। काश, देश के सभी न्यायालय ऐसी तत्परता दिखाने लगें, तो बहुत कुछ बदलाव संभव है।
न्यायालय को अपना काम करना है, करेगा ही। वह सजा को बरकरार रखता है, घटाता-बढ़ाता हैˆसब न्यायाधीशों के न्यायिक विवेक का मसला है। इस सजा के खिलाफ उच्च और उच्चतम न्यायालय तक जाने का सलमान का हक भी कायम है।
इस बीच सलमान के मित्रों, शुभ चिन्तकों ने अपने-अपने हिसाब से प्रतिक्रियाएं दीं। उनमें दबी जबान में एक यह भी है कि चूंकि सलमान सेलिब्रिटि हैं, इसलिए भुगत रहे हैं। अन्यथा इस देश में सब कुछ संभव है। आए दिन की नजीरों से इस बात की पुष्टि भी होती है। इसलिए तो यह भी कहा गया है कि जनता जिनमें अपना प्रेरक देखती है वे यदि सावचेत नहीं रहेंगे तो इस हश्र को भी हासिल हो सकते हैं।
खैर, दंगे चाहे 2002 के गुजरात के हों या मामला फुटपाथ पर सोए लोगों पर टुन्न सलमान का गाड़ी चढ़ाने का, कुत्ते बेचारे बिना वजह बीच में घसीट लिए जाते हैं। इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गायक अभिजीत दोनों को ही अपने कहे पर विचार करना चाहिए कि इसके दोषी कुत्ते हैं या उनकी मानसिकता।

7 मई, 2015

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