Tuesday, January 29, 2019

बीकानेर : डागा चौक कांग्रेस बनाम मालावत कांग्रेस (19 मार्च, 2012)

मनीषी डॉ. छगन मोहता बीकानेर के शासक रहे सादुलसिंह के सन्दर्भ से एक घटना का जिक्र कई बार करते थे। बीकानेर रियासत के भारत गणराज्य में विलय के समय जो शर्तें रियासत की ओर से रखी जानी थी उनमें इस शर्त का भी जिक्र आता है कि राष्ट्रीय तिरंगे झंडे के साथ यहां बीकानेर रियासत का झंडा भी फहराया जायेगा। जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। लेकिन इस शर्त की सूचना जब शहर में बाका-डाक से फैली तो इस पर तंज करते हुए डॉ. छगन मोहता ने तब तेलीवाड़ा चौक के बाशिन्दों की ओर से ‘तेलीवाड़ा चौक का झण्डा’ शीर्षक से एक पर्चा जारी किया जिसमें उन्होंने अपने कुछ तर्कों के साथ यह बात कही कि तेलीवाड़ा चौक में भी जब राष्ट्रीय झण्डा फहराया जायेगा तब उसके साथ तेलीवाड़ा चौक का झण्डा भी फहराया जाना चाहिए। इस पर्चे की सूचना जब सादुलसिंह तक पहुंची तो वे ना केवल असहज हुए बल्कि उन्होंने इस पर्चे को काउंटर करने की भी कोशिश की। पाठकों की सूचनार्थ यह बता दें कि डॉ. छगन मोहता उस समय तेलीवाड़ा चौक में ही रहा करते थे।
आज इस घटना का स्मरण तब हो आया जब अखबारों में तनवीर मालावत के हवाले से यह बयान आया कि बीकानेर में पूर्व और पश्चिम के अलग-अलग कांग्रेस अध्यक्ष होने चाहिए। हालांकि उक्त घटना से मालावत के बयान का मिलान जबरदस्ती ही कहलाएगा, लेकिन कहीं कोई अंतर्निहित बारीक तार उक्त दोनों के बीच जरूर है। उम्मीद है सुधी पाठक उसे देखने का प्रयास करेंगे। मालावत के बयान का स्रोत पार्टी की ए और बी ब्लॉक की कल की वह मीटिंग है, जो कांग्रेस के जिला प्रभारी ओम राजोरिया की उपस्थिति में रथखाना स्थित पार्टी कार्यालय में हुई जिसे डागा चौक कांग्रेस की तर्ज पर मालावत कांग्रेस का दफ्तर भी कहा जाता है। इस मीटिंग में उपस्थितों की नाराजगी का कारण था कि इस मीटिंग में नवनियुक्त शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत नहीं पहुंचे। उधर यशपाल की सफाई यह है कि उन्हें अचानक लूनकरणसर जाना पड़ गया था जिसकी सूचना उन्होंने पार्टी प्रभारी को दे दी थी। इस राजनीति में सन्तरे की फांकें तो समझ में आती हैं लेकिन अब उस पर छिलके-दर-छिलके भी होने लगे हैं जिन्हें उतारना कम ही लोगों के बस की बात लगती है।
फिर भी यशपाल गहलोत की शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के मौके लिखी गई 10 मार्च की अपनी टिप्पणी के दो अंश आपसे साझा करने का मन है। इतना जल्दी उन्हें उद्धृत करने का कारण पाठकों की स्मृति पर भरोसा न करना ना मानें, इसे हमारे कहे की पुष्टि पर पुनर्कथन मान लें--जिसे अपने पुष्ट होने पर व्यक्ति बारम्बार कहने से भी संकोच नहीं करता :
‘राजनीति की लम्बी पारी अभी तनवीर मालावत को खेलनी है। उन्होंने इस अध्यक्षी मुद्दे पर भानीभाई का समर्थन न करके समस्याएं अपने लिए ही बोई हैं..... लेकिन तनवीर ने जो राजनीतिक अपरिपक्वता दिखाई उसे लम्बे समय तक खुद उन्हें ही भुगतना होगा।’
‘यशपाल युवा हैं, उत्साही हैं.......... ऐसी ही चतुराई उन्हें शहर अध्यक्षी करते दिखानी होगी जिसमें उन्हें डागा चौक के प्रति अपनी विश्वसनीयता भी बनाये रखनी है और डागा चौक के विरोधियों को सकारात्मक ढंग से साधना भी है।
दीपचंद सांखला
19 मार्च, 2012

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