Thursday, January 24, 2019

यशपाल गहलोत : मनोनयन के मायने (10 मार्च, 2012)

बीकानेर शहर और देहात कांग्रेस अध्यक्षों की नियुक्ति हो गई है। इस संदर्भ की अपनी पिछली टिप्पणियों में लिखी बातों का तारीखवार स्मरण करवाना चाहता है:
‘बीकानेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष के मनोनयन की गुत्थी सुलझ नहीं रही है। दूध के जले कल्ला बन्धु अब किसी भी तरह की रिस्क नहीं लेना चाहते। एक बार पार्टी से निष्कासन की पीड़ा भोग चुके बीडी कल्ला और उनके अग्रज शहर कांग्रेस अध्यक्ष जनार्दन कल्ला इस पुरजोर जुगत में हैं कि पार्टी का चरित्र डागा चौक कांग्रेस का ही बना रहे। इसीलिए वे इस ताबड़तोड़ कोशिश में हैं कि उनका कोई पारिवारिक या दरबारी यूआइटी का चेयरमैन भले ही ना बने पर शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर उनके परिवार के या किसी विश्वस्त दरबारी का ही मनोनयन हो। इसके लिए जितने मुस्तैद कल्ला बन्धु हैं, उतने सक्रिय दूसरे गुट के नेता शायद अब नहीं हैं।
कल्ला बन्धु अगले विधानसभा चुनावों में बीकानेर शहर की दोनों सीटों के उम्मीदवारों के पैनल बनाने का काम किसी भी स्थिति में किसी और के हाथों में नहीं आने देना चाहते। 1998 के चुनावों से पहले बीडी कल्ला का पार्टी से निष्कासन और 1998 के उम्मीदवारों की सूची में नाम तक न होने की पीड़ा वो कभी भूल नहीं सकते!’ (6 दिसम्बर 2011)
‘न्यास में अध्यक्ष अल्पसंख्यक, महापौर ब्राह्मण के रहते ब्राह्मण बीडी कल्ला की पश्चिम सीट से दावेदारी तभी व्यावहारिक मानी जाएगी जब शहर कांग्रेस अध्यक्ष ओबीसी का या दलित हो।’ (10 फरवरी 2012)
‘शहर अध्यक्षी के लिए मोटा-मोट तीन गुट बने हुए हैं कल्ला गुट, भानीभाई गुट और राजूव्यास-तनवीर मालावत गुट। पहले दो गुटों की ताकत तो अपने दम पर है पर तीसरे गुट की ताकत के तार मोतीलाल बोरा और तनवीर के अपने बनाये रिश्तों के चलते है। हालांकि भानीभाई और तनवीर गुटों के बीच संवाद तो है लेकिन वे दोनों ही अपनों पर अड़े हैं। वह इस शाश्वत वाकिये को भूल जाते हैं कि दो की लड़ाई में तीसरा फायदा उठा ले जाता है। शहर राजनीति में पार्टी की अंदरूनी लड़ाई में फिलहाल इन दोनों गुटों की लड़ाई कल्ला गुट से है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त की कूटनीति पर चलते होना तो यह चाहिए था कि दोनों एक होकर अपना काम निकाल ले जाते। लेकिन कल्ला विरोधी दोनों गुटों में इस राजनीतिक चतुराई की कमी के चलते देखा गया है कि लाख विरोधों के बाद भी कल्ला अपनी चलाने में सफल हो जाते हैं।
जो परिस्थितियां बन रही है उसमें राजू व्यास-तनवीर गुट यदि भानीभाई गुट के लिए त्याग करें तो ऐसा लम्बी पारी में उनके हित में जायेगा और अगर वे अड़े रहते हैं तो कल्ला इतने सक्षम तो हैं ही कि वे अपने ही किसी को इस पद पर ले आयेंगे।’ (5 मार्च 2012)
उपरोक्त अपनी तीनों टिप्पणियों का पुनरोल्लेख यह बताने के लिये किया है कि इस अध्यक्षी प्रकरण में जैसा समझा और अनुमान लगाया वह सच निकला।
यशपाल गहलोत युवा हैं, उत्साही हैं, पिछड़ा वर्ग से हैं और कहते हैं सभी के काम आने वाले भी हैं तभी उन्होंने महिलाओं के लिए सुरक्षित वार्ड नं. 4, जिसमें जस्सूसर गेट क्षेत्र का वह हिस्सा आता है जिसमें भाजपा के तीन दिग्गजों देवीसिंह भाटी, नन्दलाल व्यास और गोपाल गहलोत के आवास है, अपनी पत्नी को कांग्रेसी उम्मीदवार के तौर पर पार्षद बना लाए। ऐसी ही चतुराई उन्हें शहर अध्यक्षी करते दिखानी होगी जिसमें उन्हें डागा चौक के प्रति अपनी विश्वसनीयता भी बनाये रखनी है और डागा चौक के विरोधियों को सकारात्मक ढंग से साधना भी है।
रही बात दूसरे दोनों गुटों के हाथ मलने की तो भानीभाई तो अपनी पारी लगभग खेल चुके हैं। राजनीति की लम्बी पारी अभी तनवीर मालावत को खेलनी है। उन्होंने इस अध्यक्षी मुद्दे पर भानीभाई का समर्थन ना करके समस्याएं अपने लिए ही बोई हैं--राजू व्यास तो केवल मोतीलाल वोरा के दामाद होने के नाते पनपे राजनीतिक शौक को पूरा करने के लिए सक्रिय हुए हैं, वे तो फिर भी कहीं कुछ ले पड़ेंगे। लेकिन तनवीर ने जो राजनीतिक अपरिपक्वता दिखाई उसे लम्बे समय तक खुद उन्हें ही भुगतना होगा।
रही बात देहात कांग्रेस की तो लक्ष्मण कड़वासरा को कायम रख कर आलाकमान ने रामेश्वर डूडी को अवसर दिया है कि वह परिपक्वता दिखायें। वीरेन्द्र बेनीवाल के किशनलाल गोदारा और रामेश्वर डूडी के गुमानाराम जाखड़ दोनों को दर किनार करने से दोनों के बीच शीतयुद्ध की तीव्रता बढ़ने से रोकने का काम कड़वासरा की पुनर्नियुक्ति करेगी ही।
-- दीपचंद सांखला
10 मार्च, 2012

No comments: