Tuesday, May 2, 2017

बीकानेर-दिल्ली रेलमार्ग (31 अक्टूबर, 2011)

खबर है कि बीकानेर-दिल्ली वाया रतनगढ़ रेलमार्ग के आमान परिवर्तन के बाद मिली दोनों गाड़ियां संभवतः कल से संचालित नहीं होगी। रानीखेत एक्सप्रेस के बारे में रेल अधिकारी पहले ही कह चुके हैं कि पर्याप्त यात्री नहीं मिल रहे हैं। मिले भी कैसे, अधिकतर यात्रियों के लिए इसका समय प्रतिकूल जो है। यह गाड़ी रात 10 बजे के बाद दिल्ली पहुंचती है।
कहा जाता है कि भारतीय रेल में यह एक परंपरा रही है कि आमान परिवर्तन के बाद वह सब ट्रेनें बहाल कर दी जाती हैं जो आमान परिवर्तन से पहले उस रास्ते चला करती थी। यदि सचमुच यह परंपरा रही है तो बीकानेर से रतनगढ़ के रास्ते रिवाड़ी-दिल्ली के लिए प्रतिदिन चार ट्रेने थीं। रात्रि में मेल और लिंक एक्सप्रेस तथा दिन में एक्सप्रेस और रिवाड़ी पैसेंजर। यह चारों ही ट्रेनें बहाल होती हैं तो इस मार्ग पर चलने वाले यात्रियों की समस्याओं का लगभग समाधान हो जाता है। वैसे इस ट्रेन के आमान परिवर्तन में सामान्य से चार गुना लगा समय एक रिकार्ड है।
रेल सुविधाओं के मामले में दबे और खुले मुंह अशोक गहलोत को कोसने वाले सभी पार्टियों के नेता यह बताने का साहस दिखाएंगे कि पहले आमान परिवर्तन की देरी पर और अब इस मार्ग पर नियमित ट्रेनें शुरू करवाने के लिए छिट-पुट पत्राचार की रस्म अदायगी के अलावा लॉबिंग के स्तर पर उन्होंने क्या किया है। व्यापार उद्योग मंडल, चेम्बर ऑफ कॉमर्स और रेल सलाहकारों की मांगों और सुझाओं पर रेलबोर्ड ने कभी कोई बड़ी तवज्जमे दी हो, ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं।
 डॉ. बी.डी. कल्ला, अर्जुन मेघवाल, गोपाल जोशी, देवीसिंह भाटी, सिद्धीकुमारी, माणकचंद सुराणा, गोपाल गहलोत और तनवीर मालावत आदि नेता यदि रेल मामलों में सक्रिय नहीं होते हैं तो होगा यह कि हावड़ा-जैसलमेर की साप्ताहिक ट्रेन वाया रतनगढ़, बीकानेर की बजाय जयपुर, जोधपुर से चलने लगेगी और इन सबको अशोक गहलोत को भुंडाने का एक और मौका मिल जायेगा।
माणकचंद सुराणा को छोड़ दें तो ये नेता वैसे भी ट्रेनों में यात्राएं कम ही करने लगे हैं। माणकचंद सुराणा की लगभग सभी यात्राएं बीकानेर-जयपुर के बीच की होती है। इसलिए दिल्ली यात्रियों की तकलीफ वे शायद ही समझें। बी.डी. कल्ला की भी कमोबेश यही स्थिति है। बाकि नेता तो अपनी तेज दौड़ने वाली गाड़ियों से काम चला लेते हैं। शायद इनमें से किसी को भी अपने उस गरीब वोटर की चिंता नहीं है जिसके लिए उसके जीवन की गिनी-चुनी पैसेंजर ट्रेन की यात्राएं बहुत मायने रखती हैं। मेल, एक्सप्रेस और सुपरफास्ट की यात्राओं की हिम्मत तो वे शायद ही जुटा पाते होंगे।

वर्ष 1 अंक 60, सोमवार, 31 अक्टूबर, 2011

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