Saturday, July 23, 2016

श्रद्धा या मौज-शौक

आज भाद्रपद शुक्ला एकम् है। शहर के अगले दस दिन रामदेवरा और पूनरासर मेले को समर्पित होंगे। लोक में ऐसे तीर्थ, त्योहार और मेले संस्कृति को जानने-समझने और श्रद्धा, संस्कृति और समाज को समृद्ध करने के बड़े माध्यम रहे हैं।
लेकिन इन वर्षों में कई लोगों के लिए यह मेले मौज-शौक, विलासिता और भोंडे प्रदर्शनों का जरिया बन चुके हैं। कहने को कहा जा सकता है किजाकी रही भावना जैसी....’ लेकिन इतना भर कहने से यह बुराइयां इन श्रद्धा पर्वों में बढ़ती जायेंगी और हमारे तीर्थ, त्योहार और मेले अपने उद्देश्य से दूर होते चले जायेंगे।
मेले के रास्ते में मार्ग सेवा की होड़ के चलते श्रद्धा की बजाय मौज-शौक का माहौल बढ़ने लगा है। मन जब आपका मौज शौक की ओर जाने लगेगा तो श्रद्धा भाव कम होने लगेगा। इस कारण से केवल इन मार्गों में बल्कि मेले के स्थान पर भी अनैतिक गतिविधियां भी बढ़ती ही जा रही हैं।
पिछले वर्ष मार्ग सेवाओं के एक आयोजक ने खुश होकर बताया कि हमने तो नकली देशी घी की दिलखुशाल ही पूरे रास्ते लोगों को असली के नाम से खिलाई और लोगों को पता ही नहीं चला। उन्होंने यह भी बताया कि मार्ग सेवा में लगे अन्य लोगों से हमने इस सम्बन्ध में बात की, उन में से कइयों ने नकली देशी घी उपयोग करने की बात स्वीकारी। अब आप ही बतायें कि जिन्हें आप श्रद्धालुओं की सेवा कह रहे है, यह सेवा है या धोखा। केवल श्रद्धालुओं के साथ बल्कि सेवा के नाम पर खुद से भी धोखा कर रहे होते हैं।
हां, आवश्यक सेवाएं जैसे मेडिकल की है। यह तो जरूरी है। फिर पीने के पानी की सेवा भी जरूरत भर की कर सकते हैं। लेकिन खान-पान की इन सेवाओं ने तो इन मेलों को पिकनिक में तबदील करके रख दिया। अगर खान-पान की मार्ग सेवा बन्द होती है तो मौज-शौक के लिए जाने वालों की तादाद कम होगी और सच्ची श्रद्धा वाले लोग ही अपने स्तर पर व्यवस्था कर इन मेलों में जायेंगे।
इसके अलावा भी एक बड़ा नुकसान पर्यावरण को हो रहा है। प्लास्टिक डिस्पोजेबल जो इन मेलों के रास्तों में बेशुमार बिखरी हुई पाई जाती हैं। यह प्लास्टिक डिस्पोजेबल धीरे-धीरे कई बरसों बाद इस पूरी जमीन को ही बंजर बना देगी।
दूसरा, इन मेलों में पहुँचने वालों की संख्या लाखों में होने लगी है।  वहाँ शौचालय की पर्याप्त व्यवस्था (जो सम्भव भी नहीं है) होने के कारण पूरा इलाका कई दिनों तक स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रतिकूत हो जाता है। इसकी दुर्गंध कई किलोमीटर तक और कई दिनों तक वातावरण में बनी रहती है। जो वहाँ के बाशिन्दों के स्वास्थ्य के लिए किसी भी रूप से ठीक नहीं है।
इन मेलों पर हमें इस दृष्टि से भी विचार करना चाहिए।
वर्ष 1, अंक 8, सोमवार, 29 अगस्त, 2011


No comments: