बीकानेर के सांसद अर्जुनराम मेघवाल को कल लोकसभा में बोलते सुना। मुद्दा था बिहार को विशेष दर्जा दिये जाने का।
विशेष दर्जा देने की यह मांग केन्द्र से राजस्थान राज्य की भी लम्बित है। अर्जुनराम ने सम्भवतः राजस्थान की पैरवी भी की होगी, नहीं की है तो करेंगे ही।
उम्मीद है जिन कमजोर तर्कों के साथ उन्होंने बिहार की पैरवी की। कम से कम राजस्थान की पैरवी तो उस तरह के तर्कों के साथ नहीं करेंगे। उल्लेखनीय यह भी है बिहार में भाजपा वहाँ सरकार में सहयोगी दल है और हमारे सांसद भाजपा से ही हैं।
किसी भी राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग इसलिए की जाती है कि उस राज्य के विकास कार्यों में तेजी की जरूरत है और उसे पूरा करने के लिए अतिरिक्त धन और संसाधनों की जरूरत होती है। केन्द्र उस राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देकर उसकी जरूरत की अतिरिक्त आर्थिक मदद और अन्य संसाधन दे, पूरा करे।
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अन्ना टीम की महत्त्वपूर्ण सदस्य किरण बेदी ने कल मंच पर जिस तरह का दृश्य उत्पन्न किया वह निराशा और कुंठा की उपज थी, घोर निराशा और कुण्ठा तभी उपजती है जब आप अतार्किक उम्मीदों पर अड़े रहते हैं। टीम अन्ना में तर्कों से बात करने वाले जस्टिस संतोष एम हेगड़े और स्वामी अग्निवेश लगभग अलग-थलग हो गये हैं।
अन्ना खुद निर्मलमन और मासूमियत लिए तो हैं लेकिन किसी भी बड़े आन्दोलन को नेतृत्व देने वाले का वैचारिक आधार पुख्ता होना जरूरी होता है, अन्यथा उसके बिखरने के खतरे बने रहते हैं। महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण इसके उदाहरण हैं, जिनके अपने वैचारिक आधार थे। यदि ऐसा होता तो अन्ना टीम के चेहरों पर निराशा और व्यवहार, बोल-चाल में कुण्ठा नहीं आती। अगर आती भी है तो कम से कम उसे जाहिर नहीं होने देने चाहिए था। आज तीसरे दिन भी सम्पादकीय के आखिर में यह फिर उम्मीद करते हैं कि जब यह अंक आपके हाथों में होगा तब तक हम सब के चेहरे सुकून और सन्तोष से भरे होंगे।
वर्ष 1, अंक 7, शनिवार, 27 अगस्त, 2011
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