Saturday, July 23, 2016

अन्ना को सुर्खियां और शहर में चल रहे पुराने धरने

आज दिन तक प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही मीडिया की सुर्खियों में अन्ना ही है--या कहें कि भ्रष्टाचार विरोध ही है। अन्ना के इस आन्दोलन के दूसरे दौर के अनशन का आज आठवां दिन है। कई व्यक्तित्व संकटमोचक होने की कतार में हैं। देश का यह बड़ा और जरूरी मुद्दा है और आन्दोलन भी नाजुक मुकाम तक पहुंच चुका है।
हमारे शहर में भी कई मुद्दे हैं जिनको संकटमोचक की उडीक है--अरबन बैंक कर्मियों का धरना ही लें। 405 दिन के बाद सहकारिता मंत्री के आश्वासन पर उठा और फिर से शुरू हो गया है। जनप्रतिनिधि होने और हो सकने का दावा करने वाले हमारे तमाम राजनेता इस मुद्दे पर चुप है? क्या इनकी मांगें नाजायज हैं, अगर हैं तो यह पब्लिक को बतायें!
ठीक इसी तरह का दूसरा मुद्दा है। एक सिक्ख परिवार का। 4 मार्च, 2009 से यह परिवार कलेक्ट्री के सामने धरने पर बैठा है। कहा जाता है कि मामला न्यायालय के अधीन है। इसे भी क्या बातचीत से हल नहीं किया जा सकता।
दबी जबान लोग बात भी बनाते हैं, दोनों ही मुद्दों पर या तो इन नेताओं की कहीं नाड़ दबती है या ये बेवजह किसी एक पक्ष को नाराज नहीं करना चाहते।
जो जनप्रतिनिधि होने का दावा करते हैं तो इस नाते पूरा शहर ही उनका कुटुम्ब हुआ--क्या ऐसा कुछ आपके परिवार में घटित हो रहा हो तो आप चैन से बैठ सकेंगे! शहर के सभी राजनेता चाहे वे पूर्व से हों या पश्चिम से या फिर किसी भी पार्टी से हमारा मानना है कि वे मन बना लें तो ये दोनों धरने समाप्त हो सकते हैं। ये दोनों ही समूह हमारे शहर के बाशिंदे हैं, इनको भी चैन से अपना जीवन यापन करने का हक है।

वर्ष 1, अंक 3, मंगलवार, 23 अगस्त, 2011

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