Monday, September 7, 2015

भीषण आग और जिम्मेदार महापौर की चुप्पी

शनिवार की शाम शहर के व्यस्ततम क्षेत्रों में से एक गंगाशहर रोड पर आटो पाटर््स की दुकान में आग लगी, समय पर बुझाने का व्यवस्थित जुगाड़ नहीं बना और देखते-देखते आग ने दुकान की ऊपरी मंजिल और पड़ोस की दो दुकानों को भी चपेट में लियानगर निगम, सेना, वायुसेना और सिविल डिफेंस की दमकलें मिलकर लगी रही और उनके निरंतर कई-कई फेरों के बाद रविवार तड़के तक निश्ंिचतता बनी।
अग्निशमन जैसी सेवा की मोटा-मोट जिम्मेदारी नगर निगम की है और निगम का हाल किसी से छिपा नहीं है। निगम के चुने बोर्ड और अधिकारी-कर्मचारियों का अधिकांश समय इसी में जाया होता है कि निगम की लूट में हिस्सेदारी का हिसाब क्या हो और किसका हक कितना बनता है। कहने को पिछले बीस वर्षों से पालिका-निगम चुने हुए लोगों के हाथ में है, लेकिन ढंग-ढाला बजाय सुधरने के लगातार बिगड़ता ही गया है। आयुक्त पद पर इस वर्ष आइएएस लगने के बाद उम्मीद बनी थी कि निगम के प्रशासनिक ढांचे में कुछ सुधार आएगा लेकिन इसकी गुंजाइश फिलहाल नहीं दीख रही है।
निगम का पुराना अग्निशमन केन्द्र पुरानी गजनेर रोड स्थित भैंसाबाड़े में हुआ करता था, पता नहीं क्यों इसे खत्म कर दिया गया। निगम की ओर से अब जो केन्द्र संचालित है वे दोनों शहर के दो किनारों पर हैंएक मुरलीधर व्यास नगर में और दूसरा बीछवाल औद्योगिक क्षेत्र में। परसों लगी आग वाले क्षेत्र तक इन दोनों केन्द्रों से पहुंच कैसे हो, विचार कर ही सिहरन होती है। इसीलिए आग की सूचना के बाद पहली दमकल एक घंटे से भी ज्यादा समय बाद पहुंच सकी, तब तक आग ने अपना विकराल रूप ले लिया। यद्यपि भीषणता का अंदाजा होते ही पुलिस और प्रशासन दोनों मुस्तैद हुए और अन्य उपक्रमों से दमकलों की व्यवस्था करवाई। घटना स्थल पर उपस्थित लोगों ने भी यथासंभव प्रयास किए। अखबारों की खबरों से पता चला है कि तो शहर की जरूरत अनुसार दमकलें हैं और ही पर्याप्त कर्मचारी निगम की जो दमकलें हैं उनमें से कई तो शोभाई मात्र हैं और जो कर्मचारी हैं वे जरूरत अनुसार प्रशिक्षित भी नहीं हैं। ऊपर से कोढ़ में खाज यह कि जरूरत के अनुसार क्षेत्रवार ये केन्द्र हैं ही नहीं।
एक अग्निशमन केन्द्र गंगाशहर रोड पर कहीं होना चाहिए, दूसरा सिविल लाइन क्षेत्र में। गंगाशहर रोड क्षेत्र के अग्निशमन केन्द्र के लिए वहां स्थित सीमान्त क्षेत्र के छात्रावास भवन को प्रशासन निगम के हवाले कर सकता है और सिविल लाइन क्षेत्र में लम्बे-चौड़े पसरे सरकारी बंगलों के बीच जगह बनायी जा सकती है। अलावा इसके कई बंगले ऐसे भी हैं जो जर्जर होकर नाकारा हो चुके हैं जिन्हें अग्निशमन केन्द्र के लिए दिया जा सकता है। यह सब मैनेज करना आसान नहीं तो बहुत मुश्किल भी नहीं। जरूरत महापौर की इच्छाशक्ति की है। लेकिन महापौर नारायण चौपड़ा परार्थ में लगे दिखते हैं। उनकी पूरी कोशिश है कि वे अपने पूर्ववर्ती महापौर भवानीशंकर शर्मा को अच्छा कहलवायें, शहर और इसकी व्यवस्था जाय भाड़ में। निगम की इस दुरवस्था के चलते ही परसों एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी दुकान भाड़ में चली गयी। जो निगम इसके लिए जिम्मेदार है उसके चुने हुए सिरमौर महापौर ने इसे लेकर दु: तो दूर की बात शायद चिन्ता की बुदबुदाहट भी महसूस नहीं की। वे रस्मअदायगी के लिए घटना स्थल पर पहुंचे थे लेकिन वहां इक_ हुए लोगों का रोष वे झेल नहीं पाए और चल दिए। जबकि करोड़ों के इस नुकसान की जवाबदेही निगम की ही बनती है। इन दो दिनों में उम्मीद तो यही थी कि महापौर कहते कि अग्निशमन केन्द्रों और व्यवस्था को जरूरत सम्मत बनाने के लिए कार्ययोजना बनेगी और उसके क्रियान्वयन के लिए भगीरथ प्रयास किए जाएंगे। ये बहुत मुश्किल इसलिए भी नहीं है कि अभी वार्ड से लेकर विधानसभा होते हुए संसद तक कड़ी से कड़ी मजबूती से जुड़ी है। सभी जगह एक ही पार्टी की सरकार है। चुप्पी के मामले में नारायण चौपड़ा शहर के मनमोहनसिंह होना चाहते हैं तो बात अलग है।

7 सितम्बर, 2015

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