Thursday, September 10, 2015

शहर क्यों जिताता है सांसद, विधायक और महापौर

बात शहर बीकानेर के विकास और नागरिकों की रोजमर्रा की सामान्य जरूरतों के सन्दर्भ से करें तो यह बताना भी जरूरी है कि शहर ने वर्तमान राज-सत्ता की कड़ी से कड़ी को जोड़ने में अपनी पूर्ण भागीदारी निभाई है। नगर निगम में बोर्ड भाजपा का, महापौर भी, नगर विकास न्यास के जनप्रतिनिधि बनेंगे भाजपा के ही, नहीं भी आएं तो अध्यक्ष, जिला कलक्टर उसी राज के प्रतिनिधि हैं, प्रदेश में जिसे भाजपा चला रही है। शहर के दोनों विधायक भाजपा के और सांसद भाजपा के हैं ही। सांसद और दोनों विधायकों को दूसरी बार चुनकर भेजा गया है। ऐसे में शासक पार्टी के पास यह बहाना तो हरगिज नहीं कि बीच में मतदाता ने कोई कमजोर कड़ी रख छोड़ी है।
दिसम्बर दूर नहीं, सूबे की भाजपा सरकार के दो वर्ष पूरे हो जाएंगे। केन्द्र में डेढ़ वर्ष और स्थानीय निगम की सरकार का भी वर्ष से ऊपर हो ही जाना है। शासन संभालने के सातवें महीने ही, जून 2014 में, जब सूबे की सरकार सरकार आपके द्वारसे खुद बीकानेर आ धमकी तो उम्मीदें हिलोरें मारने लगी। जाते-जाते मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कह गईंˆरेल फाटकों का समाधान जल्दी ही करवा दिया जाएगा, सूरसागर का सौन्दर्य देखते ही बनेगा, अन्दरूनी शहर के लिए सिवरेज योजना पर काम शुरू हो जायेगा। कोटगेट और सांखला रेल फाटकों और आधे-अधूरे रवीन्द्र रंगमंच पर तब के मुख्य सचिव राजीव महर्षि खुद पहुंचे तो लगा कि बात बन गई और अब जल्द ही रंगमंच पूरा होगा और रेल फाटकों की समस्या भी हल हो जायेगी। हवाई सेवा के लिए टर्मिनल का उद्घाटन उसी दौरान हुआ और आश्‍वासन मिला कि नियमित उड़ानें शीघ्र शुरू हो जायेंगी।
लेकिन हुआ क्या, मुख्यमंत्री राजधानी लौट गईं, तब से अब तक प्रदेश जिसके भी भरोसे चल रहा है, वह प्रदेश का खैरख्वाह नहीं हो सकता। जब प्रदेश का ही सब-कुछ रुका पड़ा हो वैसे में किसी शहर विशेष की तो कहें क्या। गिनाने को उन सभी परिवेदनाओं पर क्रियान्विति हो रही है जो सरकार आपके द्वारपर दी गईं। न केवल क्रियान्विति बल्कि इसके होने की समीक्षा बैठकें संभाग के सभी कलक्टर जब-तब करते हैं, और सरकारी प्रेसनोट के माध्यम से मुस्तैदी की मुनादी भी कराते हैं।
बात शहर की भाषा में करें तो इस सबसे बटा क्या। जैसाकि ऊपर बताया कि वार्ड पार्षदों से लेकर महापौर, विधायक और सांसद तक दिखाने को कड़ियों से कड़ियां जोड़े बैठे हैं, पर सन्देह है कि उनका जोड़ पुख्ता है नहीं। खुद भाजपा के पार्षद अपने ही बोर्ड के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करते हैं तो भ्रम और भी भारी होने लगता हैˆबोर्ड कांग्रेस का है या भाजपा का! महापौर नारायण चौपड़ा में संप्रग-दो के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह दिखने लगते हैं। बीकानेर पश्‍चिम के विधायक गोपाल जोशी कुछ करना भी चाहते हैं तो क्या करें ऊपर पावर हाउस खुद अपना फ्यूज उड़ा बैठा है। दूसरा, उन्हें लगता है कि उनकी कही को टेर देने को पूर्व की विधायक सिद्धीकुमारी जुगलबंदी के लिए ही उपलब्ध नहीं रहती। ताल संगत के लिए सांसद अर्जुनराम मेघवाल की जरूरत हो तो वे किसी प्रतिनिधि से ताल मिलाने की मंशा नहीं रखते।
इस परिदृश्य को देखते लग यही रहा है कि हमेशा की तरह बीकानेर के साथ ठगी होना फिर साबित होगा। शहर बिना हवाई जहाज के काम चला लेगा, बिना नई रेलगाड़ियों के भी गाड़ी धिक जाएगी। सूरसागर को भी जैसे-तैसे सार लेगा। रवीन्द्र रंगमंच भी संभवत: अपने शिलान्यास की रजत जयन्ती पर शुरू हो लेगा। लेकिन शहर जिन कठिन समस्याओं से जूझ रहा है उनमें सबसे बड़ी तो कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की है और दूसरी जरूरत शहर की सिवरेज प्रणाली को दुबारा डालने और जहां जरूरत है उसे दुरुस्त रखने की है। इन दो कामों को करवाने का दबाव यहां के महापौर, विधायकगण और सांसद सरकार पर नहीं बनाते हैं तो शहरवासियों को इस पर विचार करना चाहिए कि इन्हें फिर जिताने का मतलब ही क्या। यह भी कि ये अपने सांसद अर्जुनराम मेघवाल श्रेष्ठ सांसद होने का प्रायोजन जब तब आखिर किस क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में करवाते हैं? क्योंकि बीकानेर लोकसभा क्षेत्र के लिए उनका कुछ किया विशेष ना तो पिछले कार्यकाल का नजर आता है और इस कार्यकाल में कुछ करने-कराने का उन्होंने अभी कुछ विचारा हो, लगता नहीं है। नहीं तो सांसद एक भी ऐसा प्रयास बताए जब बीकानेर की किसी बड़ी समस्या के लिए उन्होंने कुछ किया-करवाया हो। बात रही सिद्धीकुमारी की तो वे चुनाव लड़ती ही अपनी विरासत की पुष्टि के लिए है, पुष्टि जनता विजयी बनाकर कर ही रही है।

10 सितम्बर, 2015

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