Thursday, October 6, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-22

 सरकार रोज नये पैंतरे लाती और हर बार मुंह की खाती। इस बार दुस्साहस किया स्वामी कर्मानन्द को बरगलाने का। सादुलसिंह ने एक बड़े अफसर को भेज कर कहलवाया कि आप बनिये (रघुवरदयाल गोईल) का साथ छोड़ दें तो जाटों के लिए आप जैसा कहेंगे वैसा करने को सरकार तैयार है। लेकिन स्वामी ने चतुराई से रणनीतिक उत्तर देकर उस अधिकारी को लौटा दिया। यह वाकिया प्रजा परिषद् के अलवर कार्यालय का था, जहां दाऊदयाल भी उपस्थित थे। उन्होंने यह पूरा संवाद छिप कर सुन लिया था। 

रघुवरदयाल गोईल की जेल में भूख-हड़ताल को 10 दिन हो गये थे। उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था। उसी दिन स्वामी कर्मानन्द ने रियासत के प्रधानमंत्री के नाम तार दिया जिसमें संतुलित चेतावनी के साथ आगाह किया गया कि श्री गोईल को कुछ हुआ तो हम कैसे भी बलिदान से पीछे नहीं हटेंगे। तार मिलने के पांचवें दिन 13 जुलाई को सरकार ने गोईल की सभी बातें मान ली और गोईल वैद्य मघाराम को राजनीतिक कैदी का दर्जा दे दिया। गोईल ने भी भूख-हड़ताल समाप्त कर दी।

22 जुलाई, 1946 . को प्रजा परिषद् का स्थापना दिवस था, तिरंगे पर सरकार के रुख और दमन की मंशा के बावजूद स्वामी कर्मानन्द ने तय कर लिया कि इस बार का स्थापना दिवस राजगढ़ में बड़े स्तर पर मनाया जायेगा। सभी जगह पर सूचना भेज दी गई। लोगों में भारी उत्साह था। दूसरी ओर सरकार ने भी कमर कस रखी थी। 19 जुलाई को ही रियासत में धारा 144 लागू कर दी गई। रियासत के रेवेन्यू कमिश्नर आईजीपी के साथ 21 जुलाई को ही फौज और पुलिस के भारी जाब्ते सहित राजगढ़ में डटे। आसपास के लोगबाग भी 21 जुलाई से ही राजगढ़ पहुंचने लगे। कस्बे में भारी तनाव, अनेक तरह की आशंकाएं।

यहां जैसा कि खुद दाऊदयाल आचार्य बताते हैं कि उनका धैर्य और सूझबूझ काम आया। वे स्वामी कर्मानन्द को 21 जुलाई की रात इसके लिए तैयार करने में कामयाब रहे कि आयोजन खुले मैदान में करके चारदीवारी वाले किसी बाड़े में किया जाए, ताकि धारा 144 का भी उल्लंघन हो और आयोजन भी शान्ति से निबट जाये। लोगों से कहलवा दिया कि चार-चार के समूह से बड़े समूह में आये। उक्त आदेशों को लोगों ने माना भी। सेठ टीकमचन्द की धर्मशाला में आयोजन करना तय किया जिसकी चारदीवारी में बड़ा मैदान भी था। अधिवेशन की अध्यक्षता करने कांग्रेस ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष हकीम खलीलुल रहमान आए। अनेक नेताओं के साथ हकीमजी और एक नये नेता मास्टर गौरीशंकर आचार्य का भी ओजस्वी भाषण हुआ। प्रशासन ने भी संयम बरता और राजगढ़ का आयोजन शान्तिपूर्वक निबट गया।

लेकिन गोईल की भूख-हड़ताल के बावजूद जेलों में बन्द अन्य सेनानियों का दमन जारी था। चौ. हनुमानसिंह को 23 जून से भूख-हड़ताल करनी पड़ी। इसी दौरान जेल में बन्द हीरालाल शर्मा भी भारी दमन के शिकार हो रहे थे।

इसी बीच सरकार ने अचानक यू टर्न लेते हुए 27 जुलाई 1946 . को सभी राजनीति बन्दियों को छोड़ दिया। यों लगा कि ऐसा केन्द्रीय स्तर पर हो रहे परिवर्तनों के चलते हो रहा है, लेकिन ऐसा था नहीं। सरकार के इस निर्णय का सभी ओर से स्वागत हुआ। छोड़े जाने वालों में रघुवरदयाल गोईल, चौधरी हनुमानसिंह, चौ. कुंभाराम, वैद्य मघाराम, गणपतसिंह, किशनलाल गुट्टड़, और रामनारायण बधुड़ा थे। लेकिन एक हीरालाल शर्मा को नहीं छोड़ा गया।

सरकार ने रस्म-अदायगी के तौर पर ही सही, उत्तरदायी शासन की घोषणा तो कर दी लेकिन अन्दरखाने 'फूट डालो और राज करोÓ षड्यंत्र में लगी रही। रस्म अदायगी के तौर मंत्रिमंडल का गठन किया गया जिसमें चौ. ख्यालीसिंह को लोकप्रिय मिनिस्टर के तौर पर ग्राम सुधार मंत्री बनाया तो बनिया वर्ग को खुश करने के लिए संतोषचन्द बरडिय़ा को स्वायत्त शासन मंत्री का पद दे दिया। इन्हीं के माध्यम से प्रजा परिषद् के समान्तर 'बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् सेवक संघ' जैसे संगठन पूरी रियासत में बनवा दिये। और तिरंगे के समान्तर केसरिया और कसूमलइन दो रंगों का रियासत का झंडा सादुलसिंह ने तैयार करवाया और अपने कठपुतली संगठनों के माध्यम से उसे प्रचारित करना शुरू करवा दिया। (मतलब बीकानेर रियासत का झंडा जुलाई 1946 . के बाद ही बना है।)

भारत छोड़ो आन्दोलन दिवस 9 अगस्त 1942 के बाद से देशभर में बलिदान दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा था। बीकानेर रियासत के स्वतंत्रता सेनानियों ने यह दिवस गंगानगर में मनाना तय किया। जिसमें 1942 . के सेनानियों के बलिदान के साथ बीकानेर रियासत के शहीद बीरबल को भी याद किया गया। दो दिन का यह सम्मेलन शानदार और शान्तिपूर्वक निबटा जिसको संबोधित करने के लिए पटियाला से सरदार हरचरणसिंह और चौटाला से चौधरी देवीलाल (बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री और देश के उप प्रधानमंत्री बने) आये। सम्मेलन के मंच से मंत्री अमरसिंह ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए सरकार की करतूतों का बड़े चुटिले अंदाज में वर्णन किया और शासन को उघाड़ कर रख दिया। उन्होंने हीरालाल शर्मा को छोड़े जाने का भी उल्लेख किया। गोईल ने सरकार द्वारा रियासत में साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने की उदाहरण देकर आलोचना की। वहीं इसी 9 अगस्त को चूरू में तिरंगाविहीन जुलूस पर लाठियां बरसाई गयीं। इसी दौरान मंत्री चौधरी ख्यालीसिंह जाटों को बांटने के लिए रेल द्वारा पूरी रियासत के दौरे पर निकले लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। कहीं-कहीं तो भारी विरोध का सामना करना पड़ा जिसके कारण दौरे को बीच में ही रद्द कर उन्हें बीकानेर लौट आना पड़ा।

दीपचंद सांखला

6 अक्टूबर, 2022

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