Thursday, September 22, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-20

 जयपुर से निष्कासित होने के बाद अलवर पहुंचे रघुवरदयाल गोईल ने अपना डेरा (ऑफिस और निवास दोनों) एक कमरे में जमाया। आर्थिक संसाधनों की कमी ऐसी कि दवा-दारू तो दूर की बात, पेट-भराई भी मुश्किल से होती। इसी बीच वनस्थली में पढ़ रही उनकी बेटी चन्द्रकला भी वहीं गयी। बाबू रघुवरदयाल के साथ उस कमरे में पहले ही गंगादास कौशिक, दामोदर सिंघल और देशनोक के चंपालाल रांका (रांका आजादी बाद प्रदेश के अग्रणी प्रकाशक रहे) जमे थे। इन सब के अलवा पूरी रियासत के कार्यकर्ता आते ही रहते थे।

चौधरी कुंभाराम की गिरफ्तारी और स्वामी कर्मानन्द की लम्बी भूख-हड़ताल तथा गांवों में फैली जागरूकता के परिणामस्वरूप 9 मई, 1946 को बीकानेर में बड़ा जुलूस निकाला गया, तिरंगा हाथों में लिए युवाओं का यह जुलूस शहर का चक्कर लगाते हुए कोटगेट पहुंचा तो हथियारों से लैस पुलिस ने जुलूस को घेर लिया, लाठी चार्ज किया, तिरंगे छीन लिए। वैद्य मघाराम की बहिन बुरी तरह घायल हुई।

10 मई, 1946 . को राजगढ़ में बड़ा जुलूस निकला। इस शांतिपूर्ण जुलूस पर बिना चेतावनी के पुलिस ने लाठियां बरसानी शुरू कर दी। 25 किसान बुरी तरह घायल हुए। कइयों की हड्डियां टूट गयीं। इस जुल्म के बावजूद जुलूस में भगदड़ नहीं मची। आंदोलनकारी शान्ति से प्रदर्शन करते रहे। इस जुलूस की खास बात थी कि जुलूस में शामिल विद्यार्थी अपने हाथों में तिरंगा लिए जुल्म के सामने बेधड़क डटे रहे। ये बच्चे स्वामी कर्मानन्द के गांव कालरी के दयानन्द विद्यालय के थे। 15-20 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें प्रमुख थे चौ. छेलुराम और मौजीराम। थाने लाकर इन्हें केवल अलग-अलग बन्द किया बल्कि पिटाई भी की गई। इसी दौर में हमीरवास में बर्बरता हुई। चौ. कुंभाराम के गांव फेफाना में बड़ा जुलूस निकला जिसमें तिरंगा लिए स्त्रियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। फेफाना में हुई सभा में पहली बार उत्तरदायी शासन की मांग की गयी।

शासक सादुलसिंह के जुल्म इन सबके बावजूद भी नहीं थमे बल्कि ज्यादा तनाव वाले इलाकों में घुड़सवार पुलिस की टुकडिय़ां भेजी गयीं। सक्रिय कार्यकर्ताओं को हवालात में बन्द कर पिटाई की जाती रही। छूटने पर इलाज के लिए चिकित्सकों के पास जाते तो इलाज करने से चिकित्सक भी इनकार कर देते। डॉक्टर उनको धीरे से कहतेआप तो अपने मिशन में लगे हैं, हमें अपने बच्चों का पेट पालने दें। ज्यादा पीडि़त इलाज के लिए अलवर में गोईल के पास पहुंचने लगे। वहां यथासंभव उनकी सेवा और इलाज करवाया जाता। अलवर पहुंचे घायलों के एक्सरे फोटो और समाचार, देश के अखबारों तक पहुंचने लगे।

ऐसी खबरों से तंग आये रियासत के प्रशासन ने खंडन करना शुरू कर दिया। 5, 6, 7 8 जून 1946 . को .भा. देशी राज्य लोक परिषद् का अधिवेशन दिल्ली में हुआ। बीकानेर के अधिकतर नेता-कार्यकर्ता पहुंच गये। 

असल स्थिति से अवगत होकर अधिवेशन में ही नेहरू ने गोईल से कहा कि आप निर्वासन आज्ञा तोड़ कर 25 जून को बीकानेर पहुंच जाएं और नागरिक अधिकारों और उत्तरदायी शासन के लिए आन्दोलन शुरू करें। 16 जून को बीकानेरियों का एक शिष्ट मण्डलजिसमें गोईल, गंगादास, मेघराज और मूलचन्द पारीक थेबापू से मिला और रियासत की गतिविधियों से अवगत करवाया। बापू ने यह कह कर उन्हें विदा किया कि नेहरू के मार्गदर्शन में काम करते रहें।

बीकानेर लौटे कार्यकर्ताओं का उत्साह परवान पर था। बिना पूर्व स्वीकृति के 21 जून, 1946 . को मेघराज पारीक की अध्यक्षता में शहर में पहली सार्वजनिक सभा हुई। मूलचन्द पारीक, गंगादत्त रंगा, दाऊदयाल आचार्य और रावतमल पारीक ने अपने उद्बोधनों में रियासत में खाद्य पदार्थों की कमी के बारे में विस्तार से बताया। आचार्य का भाषण रिकार्ड एक घण्टे का था जिसमें उन्होंने बीकानेर सेफ्टी ऐक्ट और गुप्त सर्कुलरों की आलोचना की।

जवाहरलाल नेहरू के निर्देशानुसार गोईल को 25 जून को बीकानेर में प्रवेश करना था। गोईल को विदाई कहें या स्वागत के लिए सीमाई ऐलनाबाद (वर्तमान हरियाणा) में भव्य समारोह हुआ जिसमें मा. भोलानाथ भी पहुंचे। तय कार्यक्रमानुसार गोईल ने दूसरे दिन बीकानेर रियासत में प्रवेश किया। रेलगाड़ी के बीकानेर रियासत के पहले गांव भूकरका पहुंचते ही गोईल को गिरफ्तार कर लिया गया। इधर कुछ किसान रेल पटरियों पर लेट गये और कहने लगे कि गाड़ी को चलने नहीं देंगे। लेकिन समझाइश कर गाड़ी को आगे बढऩे दिया गया। गिरफ्तारी में ही गोईल का भाषण हुआ। गोईल की गिरफ्तारी की खबर रियासत में फैल गयी। 26 जून को अनेक जगह विरोध सभाएं हुईं और जुलूस निकले। गोईल के साथ चौ. हनुमानसिंह के भाई गनपतसिंह की भी गिरफ्तारी हुई थी। दोनों पहले उसी रेलगाड़ी से और बाद में बीच में उतारकर मोटर द्वारा बीकानेर जेल भेज दिये गये।

इस गिरफ्तारी के विरोध में 26 जून को बीकानेर के रतनबिहारी पार्क में भी बड़ी सभा हुई, जिसमें हजारों स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया। इस मीटिंग के सभापति पाली के जीवाराम पालीवाल, मा. भोलानाथ, दाऊदयाल आचार्य के भाषण हुए। लेकिन जिनके भाषण की सर्वाधिक चर्चा रही, वे थे कानपुर प्रवासी हीरालाल शर्मा। जिन्होंने फ्रांस की क्रांति का जिक्र करते हुए महाराजा सादुलसिंह को सलाह दी कि वे फ्रांस के राजा से सबक लें। जहां (फ्रांस) जनता ने राजा का कान पकड़ कर सिंहासन से उतार दिया था। इस पर वहां खड़े राजा के गुंडों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। रोशनी के लिए लगाई गयी गैस की हंडियां तोड़ दी, बिजली काट दी, अंधेरे का फायदा उठाकर राजा के गुण्डे औरतों की ओर लपक पड़े लेकिन कार्यकर्ता औरतों को घेर कर खड़े हो गये। उसी रात प्रजा परिषद् के दफ्तर और गोईल के घर पर भी हमला किया गया। क्रमश...

दीपचंद सांखला

22 सितम्बर, 2022

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