Thursday, September 15, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-19

 उधर मूलचन्द पारीक के गिरफ्तार होने की नौबत आयी तब तक वे फरार होकर गुवाहाटी और कलकत्ता पहुंच गये। और अपने देश के काम में लग गये। कलकत्ता में प्रजा परिषद् की इकाई को पुनर्गठित किया। डर के मारे पदाधिकारी बिदक जाते लेकिन परिषद् का फिर गठन करते। शिवकुमार भुवालका पहले दिन सभापति बने। दूसरे दिन बिदक गये। तब दूसरे दिन भुवालका की जगह ओमप्रकाश अग्रवाल को सभापति बनाया। सादुलसिंह को पत्र लिखवाए। दूधवाखारा में उद्वेलन बढ़ते देख हनुमानसिंह के बाद उनके सहयोगियों को नामजद किया गया, जिनमें नोहर के मालचन्द हिसारिया, भादरा के हरिसिंह वकील, गंगानगर के ज्ञानीराम वकील, रतनगढ़ के मास्टर रूपराम झांसल के कुंजबिहारी लाल पर नजरें सख्त रखने की हिदायत दी गयी। हनुमान, गणपत, नरसाराम, सरदारा, पेमा और बेगा के लिए नजरबंदी के आदेश दिये गये। 

राज ने दूधवाखारा आंदोलन को पूरी तरह कुचलने की ठान ली। दूधवाखारा से गुजरने वाली सभी गाडिय़ों के ठहराव खत्म कर दिये गये। 20 मार्च 1946 की रात को पुलिस और फौज ने संयुक्त कार्यवाही करते हुए दूधवाखारा को घेर लिया। धारा 144 लगा दी गई। हनुमानसिंह की गतिविधियों पर राजपत्र जारी किया गया जो पूरी तरह झूठा था।

क्षेत्र में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए रतनगढ़ में होली के अवसर पर बांधी गयी 'तणी' चोरी-छिपे खुद पुलिसवालों ने तोड़ दी, ताकि हिन्दुओं में उत्तेजना फैले और सांप्रदायिक दंगा हो जाए और दूधवाखारा आंदोलन शांत हो जाए। तनाव बना भी लेकिन लोगों ने धैर्य रखा। यह करतूत पुलिस की ही है, यह बात चौड़े होते ही नाजिम बनेसिंह बीच-बचाव में आये और दोषी पुलिस वालों से माफी मंगवा बात को खत्म करवा दिया। 

महाराजा अपनी प्रशंसा में कथित श्वेतपत्र जारी करने लगे। प्रजा परिषद् के संस्थापकों में से एक चौधरी ख्यालीसिंह जैसे महत्त्वाकांक्षी को राज ने अपनी ओर मिलाया और परिषद् टूटने के नाम पर जाट सभा बनवाई लेकिन बेअसर रही। ख्यालीसिंह जैसे-तैसे प्रजा परिषद् में वापस घुस गये और गंगानगर प्रजा परिषद् में अध्यक्ष बन गये।

30 मार्च 1946 को स्वामी कर्मानंद के कालरी आश्रम को घेर लिया और स्वामी को गिरफ्तार कर लिया। चौ. हनुमानसिंह, चौ. नरसाराम के बाद स्वामी कर्मानन्द की गिरफ्तारी से किसानों में रोष बढ़ता गया। 31 मार्च को जाट समुदाय के ही नौरंग पटवारी के साथ ज्यादती की गयी। इन सबसे चूरू इलाके का जाट समुदाय उद्वेलित होकर खड़ा हो गया।

आयोजनों पर रोक के बावजूद 7 अप्रेल, 1946 . को नोहर के ललाणा में किसानों ने सभा आयोजित की। तिरंगे पर रोक के बावजूद एक पेड़ पर तिरंगा फहाराया गया। तीन दिन बाद 11 अप्रेल को भादरा से आए पुलिस इंस्पेक्टर ने झंडा खुद उतारा। 12 अप्रेल को हमीरवास में 600 नर-नारियों ने तिरंगे के साथ जुलूस निकाला। इन्हीं से प्रेरित होकर तारानगर के लोगों के साथ जुलूस निकाला। राजपुरा में भी ऐसा हुआ। इसके साथ राज ने पुलिस के माध्यम से लोगों को डराने-धमकाने की कार्यवाहियां जारी रखी। राजपुरा के लोगों ने पुलिस को कोई आश्वास नहीं दिया तो वहां के मुखिया चौधरी गोरधनराम को उसके हाथों को रस्सी से बांधकर ऊंट से दौड़ाया गया। थोड़ी दूर पर गोरधन बेहोश हो गये तो पुलिस ने उन्हें वहीं छोड़ दिया।  कालरी के सेनानी थे चौ. लालचन्द, खेमचन्द, चुन्नीलाल, लेखराम, प्रमुखराम, तो हमीरवास के सेनानी थे चौ. जीवाराम, शोचन्दराम और जगराम।

स्वामी कर्मानन्द की गिरफ्तारी सरकारी दमन के विरोध में नोहर के ललाण में 25 अप्रेल, 1946 . को चौ. कुंभाराम के सभापतित्व में विराट सभा हुई, जिसमें आसपास के 40-45 गांवों के किसान ढोल बजाते पहुंचे। इसी सभा ने आजादी के आंदोलन को चौ. हंसराज नाम का नया नेता दिया। हंसराज देश के लिए पटवारी की नौकरी छोड़ प्रजा परिषद् में शामिल हो गये।

भय पैदा करने के मकसद से रेवेन्यू मिनिस्टर प्रेमसिंह, गृहमंत्री प्रतापसिंह, एसपी, इंस्पेक्टरों सहित पुलिस और फोर्स के 400 जवानों के साथ 26 अप्रेल, 1946 . को बीकानेर रेल से रवाना हुए। रतनगढ़, चूरू, राजगढ़, भादरा, नोहर, श्रीगंगानगर, करणपुर, पदमपुर, रायसिंहनगर इत्यादि सभी छोटे-बड़े कस्बों में जवानों को तैनात करते गये। मंशा तो यही थी कि किसानों की जागृति को कुचल दिया जाये। लेकिन पार पड़ी नहीं। राजगढ़ के हमीर वास में थानेदार ने चौधरी लालचन्द, चौ. नौरंगसिंह, आर्यसमाज के उपदेशक पतराम को थाने बुलाया और यातनाएं दीं। लालसिंह को तो इतना मारा कि उनके कपड़े खून से लथपथ हो गये।

बेहोश होने पर लालचन्द और उनके साथियों को राजगढ़ लाकर अस्पताल में भर्ती करवा दिया।

उधर चौधरी हनुमानसिंह और नरसाराम को अज्ञात स्थान पर ले जाकर यातनाएं दी गयी तथा हनुमान से माफीनमा लिखवाया गया (इसका जिक्र पहले भी किया है) स्वामी कर्मानंद को गजनेर और कोलायत के बीच जंगल के अन्दर एक निर्जन मकान में नजरबन्द किया गया। बाहर छूट गये चौधरी कुंभाराम रियासत के तूफानी दौरे कर सरकार के जुल्मों की कहानी सभी जगह बताते, लेकिन 1 मई, 1946 . को कुंभाराम को भी संगरिया मंडी से गिरफ्तार कर बीकानेर जेल भेज दिया गया। नजरबंदी में स्वामी कर्मानन्द को यातनाओं और प्रलोभनों से तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वे टस-से-मस नहीं हुए, इससे उन पर जुल्म और बढ़ा दिये। स्वामी कर्मानन्द भूख-हड़ताल पर चले गये। ऐसे दमनों की ज्यों-ज्यों खबर फैलती रियासत में त्यों-त्यों जागरूकता बढ़ती। गांवों में अनेक किसान नवयुवक सक्रिय हो गये, जिनमें चौ. अमीचन्द और नवरंग के नाम उल्लेखनीय हैं। अमीचन्द ने तो हैड कांस्टेबल की नौकरी तक छोड़ दी। क्रमश...

दीपचंद सांखला

15 सितम्बर, 2022

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