Thursday, May 19, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-3

 बीकानेर की चार शताब्दियों के इस संक्षिप्त उल्लेख के साथ 19वीं शताब्दी में लेते हैं। बीकानेर का वर्तमान स्वरूप मोटा-मोट इसी शताब्दी में बना है। अंग्रेजों की अधीनता के बाद उनका प्रतिनिधि यहां रहने लगा। केवल राजकाज बल्कि विकास और लोक कल्याणकारी कार्यों में पूरा हस्तक्षेप होता यही नहीं इंग्लैण्ड से आयी योजनाओं को स्थानीय शासक को निर्देश या दबाव बनाकर उन्हें अमली जामा पहनावाते। गंगानगर क्षेत्र की गंगनहर (1921-27 .) और बीकानेर के पीबीएम अस्पताल जैसे कार्य उल्लेखनीय हैं।

रेल सेवाओं की पहले चरण की शुरुआत 1891 . मेंजब गंगासिंह मात्र 11 वर्ष के थे, तभी हो गयी थी। बालिग होकर राज संभाला तब तक जोधपुर रियासत के चीलों से बीकानेर तक का काम पूरा हो चुका था। मतलब रेल सेवा का श्रेय ब्रिटिश सरकार और अंग्रेजों के रीजेंट को दिया जाना चाहिए। इसके बाद बीकानेर से बटिण्डा और बीकानेर से चूरू तक का काम हुआ। अन्तिम चरण में बीकानेर दिल्ली से तब जुड़ा जब 1941 . में सादुलपुर-रिवाड़ी खण्ड में रेल यातायात शुरू हुआ।

अंग्रेजों की अधीनता के बाद देशी रियासतों में विकास की दो बड़ी अनुकूलताएं बनीपहली : मुगलों के समय रियासतों को केन्द्रीय सत्ता को राजस्व का बड़ा हिस्सा देना पड़ता थावहीं अंग्रेजों के समय पूरा राजस्व रियासतों के पास रहता था। लेकिन नीतिगत निर्णयों (पॉलिसी मैटर) का अधिकार अंग्रेजी राज ने अपने पास ले लिया। अकाल (तब हर 5-7 वर्षों में अकाल पड़ता था) हो या सामान्य काल, अर्जित राजस्व का बड़ा हिस्सा लोक कल्याणकारी कामों में लगना चाहिए। इसके लिए अंग्रेज शासन केवल योजनाएं बनाकर देते बल्कि उन्हें समयबद्ध और भ्रष्टाचार रहित पूर्ण करवाने के लिए गिनरानी भी करते। 1899 . (संवत् 1956) में छप्पने के काल में जब बीकानेर रियासत को अकाल राहत कार्य करवाने के निर्देश दिये गए तो रियासती अधिकारियों ने शहर परकोटे (फसील) में नये शहर को शामिल करने के लिए परकोटे का निर्माण करवाया। पुराना परकोटा नत्थूसर गेट के पास स्थित रघुनाथ सागर कुएं से घूम कर जगमणदास कुएं तक आकर वर्तमान कसाइयों की बारी तक था, पुराना जस्सूसर गेट इसी परकोटे के बीच था। नया परकोटा कसाईबारी से पाबूबारी की ओर घूमकर नये जस्सूसर गेट होते हुए ईदगाह बारी की ओर घूम कर नत्थूसर गेट वाले परकोटे से जा मिलता है।

किसी केन्द्रीय सत्ता के अधीन होने के बाद ऐसे परकोटों की जरूरत इसीलिए नहीं रहती कि बाहरी आक्रमणों से रियासतों की सुरक्षा की जिम्मेदारी केन्द्रीय सत्ता की होती थी। इसीलिए बजाय परकोटे का विस्तार करने के अकाल राहत में आम जरूरत का कोई दूसरा काम करवाया जाता। अंग्रेजों के संभवत: ये बात समझ में गयी कि ऐसे कामों की योजनाओं के लिए रियासतों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। बाद में पड़े अकालों में इसीलिए गंगनहर जैसी योजना अंग्रेज-राज ने केवल बना कर दी बल्कि 1921 से 1927 . के बीच उसे समय पर पूरा भी करवाया। इसी तरह पीबीएम अस्पताल की पूरी योजना इंग्लैण्ड के वास्तुकारों से बनवाकर मंगवाई गयी जिसे 1934 से 1937 . के बीच पूरा करवाया गया।

20वीं शताब्दी के बीकानेर में हुए विकास का श्रेय महाराजा गंगासिंह को चाहे देते रहे हैं। उसमें यहां के सेठ-साहूकारों का योगदान कम नहीं है। जिनके व्यापार और उद्योग तब कराची (वर्तमान पाकिस्तान में), कोलकाता, मुम्बई आदि तक फैले थे। बीकानेर के सन्दर्भ में महाराजा गंगासिंह के कामों की तुलना एक सेठ रामगोपाल से ही कर के देख लें, जिनका बड़ा काम कराची और छिटपुट मुम्बई और कोलकाता तक फैला हुआ था। रामगोपाल मोहता के पिता गोवर्धनदास मोहता ने अपने दो भाइयों के साथ मिल बीकानेर जंक्शन के सामने विशाल मोहता धर्मशाला का निर्माण 1891 . में ही करवा दिया था जिसके अन्दर कुआं, बावड़ी, मन्दिर भी बनाए गए। बीकानेर का प्रसिद्ध संसोलाव तलाब का निर्माण इनके पूर्वजों द्वारा तथा गोवर्धन सागर बगीची का निर्माण इनके परिवार द्वारा करवाया गया। रामगोपाल मोहता ने 1901 में कोटगेट के अन्दर गुण प्रकाशक सज्जनालय नाम से पुस्तकालय और वाचनालय स्थापित करवाया। मोहता परिवार ने ही 1899 . में प्रसिद्ध संगीताचार्य श्री विष्णु दिगम्बर को बीकानेर आमंत्रित कर पूरे एक माह तक आयोजन किये। जिसकी परिणति में 1903 . में ही बीकानेर को संगीत शिक्षण का संस्थान मिल गया। 

सेठ रामगोपाल मोहता के छोटे भाई मोहता मूलचन्द का निधन असमय हो गया था। उस समय की प्रथानुसार राजा या किसी सेठ के परिजन के मरने पर तीन धड़ा जीमण (भोज) करना अनिवार्य सा था। (तीन धड़े में रियासत के :न्याती ब्राह्मण समाज, पुष्करणा समाज और राजपुरोहित समाज को भोजन करवाना होता था।) रामगोपाल मोहता ने भाई की मृत्यु पर मृत्युभोज करने से मना कर दिया, जिसका भारी विरोध हुआउनकी हवेली पर छिटपुट प्रदर्शन भी हुए। मोहता के प्रस्ताव पर तय यह हुआ कि जितना खर्च तीन धड़े के जीमण में होना था, उतने धन से शहर में लड़कों के लिए एक विद्यालय खोला जायेगा। 1909 . में स्थापित शहर का नामी एम एम स्कूल (मोहता मूलचन्द विद्यालय) उन्हीं की देन हैं। इसी तरह 1925-26 में रामगोपाल मोहता की एकमात्र पुत्री, पत्नी और दोहिते का निधन हुआ, जिनकी याद में शहर के दूसरे सिरे पर भैरवरत्न मातृ पाठशाला का निर्माण करवा कर संचालित किया। मोहता ने अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित मोहता धर्मशाला परिसर में 1917 . में आयुर्वेदिक औषधालय और रसायनशाला स्थापित कर संचालित की। मोहता रसायनशाला की दवाओं की प्रतिष्ठा देशभर में आज भी है। क्रमशः 

दीपचंद सांखला

19 मई, 2022

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