Tuesday, May 10, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-1

बीकानेर की स्थापना को लेकर लोक प्रचलित है कि जोधपुर दरबार में चाचा कांधल भतीजे बीका से कुछ फुसफुसा रहे थे, राव जोधा को बेअदबी लगी। जोधा ने व्यंग्य में पूछ लिया कि चाचा-भतीजा कोई नया राज बसाने की तज्वीज में लगे हैं क्या ? कहते हैं यही बात चाचा-भतीजे को चुभ गई और निकल पड़े। बीकानेर की स्थापना को लेकर लोक प्रचलित इस कथा पर कवि-विचारक नन्दकिशोर आचार्य यह कहने से नहीं चूकते कि कांधल और बीके को बीकानेर बसाने के लिए क्या थार का यह रेगिस्तान ही मिला। गर्मी से असहज और पहाड़प्रिय आचार्य यह कहने से नहीं चूकते कि पास ही अरावली की पहाडिय़ां भी थीं—वहीं शहर बसा लेते।

लेकिन इतिहासकार उक्त अक्खाणे से सहमत नहीं लगते। बीकानेर बसने-बसाने को लेकर उनकी स्थापनाएं भिन्न हैं। 'बीकानेर इतिहास एवं संस्कृति' स्मारिका में प्रो. शिवरतन भूतड़ा 'बीकानेर राज्य का उद्भव' शीर्षक से छपे अपने आलेख में बीकानेर स्थापना का उल्लेख इस तरह करते हैं:

बीकानेर बसने से पूर्व राव जोधा इसी जांगल प्रदेश में जोधपुर बसाने की कई कोशिश कर चुके थे। जोधपुर बसाने से पूर्व राव जोधा को मेवाड़ी सेना ने मण्डोर से जब बेदखल कर दिया तो सुरक्षा हेतु उन्होंने जांगलू के काहुनी गांव में शरण ली। इसी दौरान जांगलू के शासक नापाजी सांखला ने अपनी बहिन नोरंग दे का विवाह राव जोधा से कर दिया। कहते हैं राव बीका नोरंग दे के ही पुत्र थे। राठौड़ों और सांखलों के इस रिश्ते ने जांगल देश में राठौड़ राज्य स्थापना की भावभूमि तैयार कर दी थी। जांगलू में रहते राव जोधा ने अपनी शक्ति को संगठित किया और 1453 ई. में मण्डोर पर पुन: आधिपत्य कर लिया। जोधपुर शहर बसाने की अनुकूलता इस तरह बनी। 

इतिहासकार प्रो. भूतड़ा इसके बाद की घटना को लिखते हुए बताते हैं कि मुस्लिम बिलोचों से पराजित होकर नापा सांखला राव जोधा के पास गये। राव जोधा ने पुत्र बीका और भाई कांधल को जांगल देश में राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से भेज दिया। 1465 ई. में बीका ने बिलोचों को पराजित कर जांगलू अपने मामा को दे दिया। नापा ने इसके बाद बीका की अधीनता स्वीकार कर इस जांगल देश में राठौड़ राज्य स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। 

इस समय तक जैसलमेर के रावल केहर के पुत्र केल्हण पूगल क्षेत्र को जीत कर भाटी राज्य की स्थापना कर चुके थे। बीका जब जांगल-प्रदेश में अपना राज स्थापित करने की जुगत में थे, तब पूगल के शासक राव शेखा थे। जैसलमेर-पूगल जैसे अनउपजाऊ क्षेत्र में राज करना आसान नहीं था तो शासक अपना काम लूट और धाड़ेती से चलाते थे। लूट के मकसद से मुल्तान गये राव शेखा को मुस्लिम सूबेदार ने पकड़ कर कैद कर लिया। राज कायम करने की तजवीज में भटक रहे बीका से राव शेखा की पत्नी ने अपने पति को छुड़ा लाने का अनुरोध किया। मुल्तान पर आक्रमण कर राव बीका ने राव शेखा को मुक्त करवा दिया। क्षेत्र की लोकदेवी करणीजी राव शेखा की धर्मबहिन थी। इस रिश्ते का लाभ राव बीका को मिला। बीका ने जांगल देश में अपने राज्य की स्थापना हेतु आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। करणीजी के कहने पर राव शेखा ने न केवल अपनी पुत्री रंगकुंवरी का विवाह राव बीका से कर दिया बल्कि बीका की अधीनता भी स्वीकार कर ली। 

नये शहर और गांव पानी के स्रोत के पास ही बसाये जाते थे। बीका ने कोडमदेसर तालाब के पास गढ़ बना कर शहर बसाने की योजना बनायी। क्षेत्र के भाटियों को इसकी भनक लग गयी। जैसलमेर के भाटी रावल कलिकर्ण की सहायता से बीका पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में कलिकर्ण मारे गये और बीका ने जीत हासिल की। लेकिन बीका ने भांप लिया कि भाटियों के दामाद होते हुए भी उनके नजदीक राजधानी बसाना सुरक्षित नहीं है। उन्हें ज्ञात था कि पिता राव जोधा ने अपने राज्य के विस्तार के लिए पड़ौस के मोहिलवाटी पर कब्जा करने की नीयत से वहां के शासक अजीतसिंह—जो जोधा के दामाद भी थे—को बुलाकर मार डालने की कोशिश की थी। पता लगने पर अजीतसिंह भाग लिए। लेकिन राठौड़ों ने पीछा कर उसे मार ही दिया। बीका चतुर थे सो भाटियों से दूर रहना ही तय किया। लेकिन ज्यादा दूर जाने की गुंजाइश नहीं थी। आवागमन के द्रुत गति के साधन तब नहीं थे। 15-20 मील की दूरी भी सुरक्षित मानी जाती थी। वर्तमान बीकानेर जिस टीबे पर बसा है वहां पहले से कुछ बसावट थी। भाण्डाशाह जैन मन्दिर की स्थापना बीकानेर की स्थापना से पूर्व की माना जाना इसका प्रमाण है। मामा नापाजी सांखला की सलाह पर संवत् 1545 की वैशाख शुक्ल पक्ष की दूज को राव बीका ने वहीं बीकानेर नगर की विधिवत् स्थापना की।

शहर का नाम रखने पर अलग-अलग मान्यताएं है, जिसमें यह भी कि इस टीबे की भूमि नेर नाम जाट ने इस शर्त पर दी कि शहर के नाम में उसका नाम भी हो। कुछ इसे बीका के पुत्र और उत्तराधिकारी नारोजी से जोड़ते हैं लेकिन कुछ इतिहासकार मानते हैं कि नेर का अर्थ नगर भी है, जैसे भटनेर-जोबनेर आदि—जो बीकानेर बसने से पहले के हैं— इसलिए बीकानेर का मतलब बीकानगर से ही है। इस तरह यह बीकानेर शहर अस्तित्व में आया। जब बीका से पूर्व उनके पिता जोधा को भी इस थार रेगिस्तान में राज्य स्थापना के लिए इतने पापड़ बेलने पड़े तो नन्दकिशोर आचार्य की ठठेबाजी के हिसाब से पूर्व में अच्छे से काबिज हो चुकी अरावली पर्वत शृंखलाओं में नगर बसाने की राव बीका सोच भी कैसे सकते थे। क्रमश:

—दीपचंद सांखला

05 मई, 2022

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