Thursday, September 3, 2020

अंधभक्ति नहीं : मूर्खता में लगे हैं लोग

 भारत देश की चिन्ता ऐसे बेहद मुश्किल समय में करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य और भी ज्यादा है जब पूर्ण बहुमत से चुनी सरकार पूरी तरह कर्तव्यच्युत हो गयी है। अधिकांश वित्त विशेषज्ञों की राय के विपरीत नवम्बर 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा धक्के से लागू नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को 'बैक गियर' में डाल दिया, वहीं जुलाई 2017 में हड़बड़ी में लागू नयी कर प्रणाली 'जीएसटी' ने उसे और पीछे धकेलना शुरू कर दिया। नतीजतन आधुनिक अर्थव्यवस्था का मापक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की दर लगातार गिरती गयी। जनता को बहलाने के लिए जीडीपी की गणना के नये यूरोपियन फार्मूले को लागू करने के बावजूद गिरावट आंकड़ों में भी नहीं संभली। यह दोनों प्रयोग उस भारत में हुए जिसने 2008 की बड़ी वैश्विक आर्थिक मंदी से अपने को लगभग अप्रभावित रखा था।

वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही की जीडीपी का ऋणात्मक आंकड़ा बेहद चिन्ताजनक है। गुलामी से लुटे-पिटे जिस देश की जीडीपी आजादी के समय और उसके बाद कभी भी ऋणात्मक नहीं रही, उसी भारत की इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की दर -23.9 प्रतिशत आयी है। भारत की वित्तीय स्थिति को इस आंकड़े से उभारनाजहां अच्छे-खासे वित्तीय प्रबंधकों के लिए भी बेहद मुश्किल है तो सरकार पर काबिज अनाडिय़ों की टीम से उम्मीदें कैसी।

छह वर्षों की मोदी सरकार के वित्तीय प्रबन्धकों-सलाहकारों पर नजर डालें तो इस सरकार के अनाड़ी तौर-तरीकों की प्रतिकूल परिस्थितियों से धापकर ना केवल रिजर्व बैंक के दो गवर्नर और कई डिप्टी गवर्नर बीच कार्यकाल से किनारा कर गये, वहीं कई वित्तीय सलाहकारों और योजना आयोग के स्थान पर गठित नीति आयोग के कई सदस्यों तक ने अपने को किनारे करना उचित माना।

प्रतिकूलताएं भारत का पीछा कहां छोडऩे वाली थी, सो बची-खुची कसर विश्वव्यापाी महामारी कोविड-19 ने आकर पूरी कर दी। बल्कि यह कहना ज्यादा तथ्यपूर्ण होगा कि 'नमस्ते ट्रंप' जैसे आयोजन में व्यस्त मोदी सरकार कोरोना वायरस के लिए अनुकूलता बनाने में लगी रही। पहले 'नमस्ते ट्रंप' आयोजन से और फिर मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार को गिराकर भाजपा सरकार बनाने की मोदी-शाह की कवायद देश पर बहुत भारी पड़ी। कोरोना की भारत में दस्तक के बाद जनवरी-फरवरी मार्च के सवा दो माह में 15 लाख लोग विदेशों से आये और पूरे देश में अपने-अपने गंतव्य को पहुंच  गये। सरकार यदि उक्त सवा दो माह में विदेशों से आये लोगों का ध्यान करती तो देश की 139 करोड़ की आबादी वर्तमान दौर से नहीं गुजरती।

महामारियां केवल मनुष्य देह पर ही नहीं आती बल्कि उसकी आर्थिक जरूरतों को भी छिन्न-भिन्न कर देती है। जीडीपी की -23.9 प्रतिशत दर ने इसकी पुष्टि कर दी है। यह तो शुरुआत है। कोविड-19 महामारी में देश की नाव को मंझधार में छोड़ चुकी मोदी सरकार से उम्मीदें करना अपने को भ्रमित करना है, वह भी तब, जब सरकार के मुखिया खुद मोदी ने मोरों को दाने खिलाने का वीडियो जारी कर इस संकटकाल में अपनी निष्क्रियता का संकेत अच्छे से दे दिया हो।

आर्थिक और स्वास्थ्य के मोर्चे पर पूरी तरह नकारा साबित हुई मोदी सरकार अन्तरराष्ट्रीय संबंधों की कूटनीति में भी फेल रही है। जिस पाकिस्तान का भूत दिखाकर ये लोग सत्ता में आए और बने रहे हैं, वह तो जहां था, वहीं और वैसा ही है। 1962 के बाद जो चीन हमसे हमेशा सहमा रहने लगा था, वह ना केवल लगातार कुचरनी कर रहा है बल्कि एक हजार वर्ग किमी की हमारी भूमि पर गत अप्रेल से काबिज है। यह तो तब है जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मोदीजी ने 18 बार हाजरी भरी है और झूले भी झुलाये हैं। मोदी कूटनीति को जिस तरह साध रहे है, उस तरह से तो घर के पड़ोसी भी नहीं साधते। गृहमंत्री अमित शाह की करतूतों से देश की बिगड़ती गृह स्थिति के चलते विदेशों में भारत की साख लगातार कम हो रही है, वह चिन्ता की वजह अलग है। विकास के जो सब्जबाग दिखाकर मोदीजी 2014 में सत्ता में आये थे, उनमें से किसी एक को पूरा या दिखाने लायक कर पाये हों, तो बताएं। सोशल मीडिया पर झूठ ही झूठ चलाकर छह वर्ष निकाल दिये। यह मोदी-शाह की उपलब्धि से ज्यादा जनता की मासूमियत और मूर्खता की बानगी है।

जो लोग गुजरात जैसे प्रांत को ढंग से चला नहीं पाये, उन्हें हमने देश इस बिना पर सौंप दिया कि ये हिन्दू धर्म की रक्षा करेंगे। उस हिन्दू धर्म की, जिस हिन्दू धर्म का बीते हजार वर्षों में तब कुछ नहीं बिगड़ा जब विधर्मी शासक थे या हम अंग्रेजी शासकों के गुलाम थे। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब हम खुद शासक हैं, तब उस हिन्दू धर्म का क्या बिगड़ जायेगा, इतनी सी बात हमारे समझ नहीं रही। झूठ की चकरी चढ़कर गिरोह की तरह राजनीति करने वालों पर भरोसा हम करने लगेंगे तो गर्त में जाने से हमें ईश्वर भी नहीं बचा पायेगा।

दीपचन्द सांखला

03 सितम्बर, 2020

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