Thursday, February 6, 2020

बीकानेर कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या : पाती डॉ. बीडी कल्ला के नाम

माननीय कल्लाजी,
सूबे की सरकार में आपकी हैसियत दूसरे नम्बर की है, यद्यपि हम बीकानेरी तो इसी से खुश हो लेते हैं। फिर भी आप अपनी इस हैसियत से शहर का कुछ विशेष भला कर पायें तो वह लम्बे समय तक उल्लेखनीय रहेगा।
आप मानेंगे या नहीं, इस शहर की सबसे बड़ी समस्या हाल-फिलहाल कोटगेट क्षेत्र के यातायात की है। इस तरह की समस्याओं के समाधान ना केन्द्र की सूची में है और ना ही समवर्ती सूची में, लेकिन इसे केन्द्र सूची का मसला मान आप निरवाले हमेशा होते रहे हैं। इसकी पुष्टि हाल ही के केन्द्र सरकार के बजट पर आयी आपकी प्रतिक्रिया से भी होती है। आपने अपनी बजट प्रतिक्रिया में बीकानेर रेल बायपास का प्रावधान ना होने की आलोचना करके ऐसा ही सन्देश दिया है।
सूबे के शासन में नम्बर दो की हैसियत पाये आपको सवा वर्ष होने को है, इस समस्या के समाधान के लिए आप और आपका प्रशासन जिस तरह की कवायद कर रहा है, उससे लग रहा है कि इसी कवायद में पांच वर्ष निकल जाने हैं। कोई भी काम सिरे तभी चढ़ता है जब उसे अच्छे से समझें और फिर लक्ष्य तय करें। समस्या न रेलवे लाइन है और ना ही रेल फाटक, ऐसी समस्याएं देश में लगातार विकसित होते सभी शहरों में मिल जायेगी। मनन करेंगे तो पायेंगे कि देश की ही नहीं, प्रदेशों की अधिकांश राजधानियों तक में शासन-प्रशासन ने इसे यातायात की समस्या माना और तद्नुसार अण्डरब्रिज, ओवरब्रिज और एलिवेटेड रोड बनाकर समाधान कर लिया। किसी शहर में यह नहीं देखा गया कि रेल लाइन को ही हटाने के लिए आन्दोलन किया गया हो या तीस वर्षों तक उसे भुगता हो। हम बीकानेरी कौन से ऐसे अति विशिष्ट हैं कि हमारे शहर की यातायात समस्या के समाधान के लिए रेलवे अपनी मिल्कीयत की जमीन छोड़, शहर से गुजरने वाली रेलगाडिय़ों के रनिंग-टाइम में आधे से डेढ़ घंटे तक का समय अतिरिक्त वहन करेगी। अंडरब्रिज, ओवरब्रिज और एलिवेटेड रोड जैसे संभावित तीनों समाधानों के आलोक में पहले भी कई बार विचार किया है, इन्हें एक बार फिर से साझा कर देता हूं।
इस समस्या को सबसे पहले उठाने और 1991 में लम्बा आन्दोलन चलाने वाली 'जनसंघर्ष समिति' तत्कालीन कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार के रेलमंत्री सीके जाफर शरीफ और भाजपानीत सरकार में प्रदेश के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत द्वारा 23 जनवरी 1992 को दिए जुमले पर आज भी कुण्डली मारे बैठी हुई है। बिना यह समझे कि तब उन शासकों का मंतव्य लालगढ़-बीकानेर के रेल लाइन टुकड़े का शान्ति से गेज परिवर्तन करवाना भर था। इसलिए बायपास के तौर पर शहरियों को चूसते रहने के लिए खुद शहरियों का ही अंगूठा वे मुंह में दे गये। कुछ मौजिज और नादान शहरी इस समस्या के लगातार विकराल होने से लहूलुहान होते अपने अंगूठे को आज भी चूसने से बाज नहीं आ रहे हैं। 
जोधपुर शहर, जिससे विकास के मामले में बीकानेर सर्वाधिक ईष्र्या रखता है, के बीच से रेल लाइन निकलती है और उन्होंने अब तक सभी रेलवे क्रॉसिंगों पर अण्डरब्रिज-ओवरब्रिज बनवा लिए और हम हैं कि जैसलमेर के रियासती शासकों की तर्ज पर 'खड़ा सिक्का' लेने की जिद पर अड़े हुए हैं? जोधपुर शहर तो सूबे का ऐसा पहला शहर होने जा रहा है जो अपने बढ़ते यातायात की सुविधा के लिए चार किमी की एलिवेटेड बनाकर अपनी व्यस्ततम सड़क की क्षमता दोगुनी कर लेगा।
सन्दर्भ  : 1976 में तैयार मास्टर प्लान
मास्टर प्लान में इस समस्या के समाधान के लिए रेल बायपास का सुझाव तो जरूर दिया है, लेकिन उक्त प्लान में यह साफ सुझाया गया है कि बीकानेर जं. के वर्तमान स्टेशन को पूरी तरह हटाना होगा और इसके एवज में घड़सीसर और मुक्ताप्रसाद नगर में नये रेलवे स्टेशन बनाने होंगे। रेल बायपास हेतु मास्टर प्लान के सुझाव में वर्तमान बीकानेर जं. को हटाने और दो नये स्टेशन बनाने के इन सुझावों को बायपास की पैरवी में मास्टर प्लान का सहारा लेने वाले छिपाते रहे हैं। शहर के बाशिन्दे क्या इन स्टेशनों को बाहर भेजने के लिए तैयार हैं
राज्य सरकार द्वारा रेलवे को भेजे गये एमओयू का प्रारूप
[ सन्दर्भ : मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (निर्माण) उत्तर-पश्चिम रेलवे, जयपुर जोनल कार्यालय द्वारा रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक (वक्र्स) को लिखा पत्र क्रमांक NWR/S&C/W.623/BKN/BYPASS दिनांक 19.01.2005 ]
वर्तमान बीकानेर जं. यहां से हटा दिया जाय तथा लालगढ़ को ही बीकानेर का मुख्य स्टेशन बना दिया जाए। लालगढ़ से कोलायत की ओर जाने वाली रेल लाइन को 11 किमी के रेल बायपास के द्वारा जोधपुर की ओर जाने वाली रेल लाइन से उदयरामसर के  पास मिला दिया जाए। सच्चाई यह है कि उतर-पश्चिम रेलवे के जयपुर जोनल कार्यालय ने अपनी टिप्पणी में बीकानेर रेलवे स्टेशन को हटाने से इनकार कर दिया था।
रेल विभाग का इसमें यह भी कहना था कि राज्य सरकार के उक्त प्रस्ताव में बीकानेर से श्रीडूंगरगढ़ की ओर जाने वाली रेललाइन को इस बायपास से जोडऩे का कोई उल्लेख नहीं है। राज्य सरकार ने अपने एमओयू में यह चाहा था कि श्रीडूंगरगढ़ की ओर से बीकानेर आने वाली लाइन का जो आमान परिवर्तन होना है उसे बीकानेर तक न लाकर उदयरामसर में ही मिला दिया जाए। इस 16 किमी लम्बी रेललाइन का यह जोड़ वन विभाग की भूमि में से गुजरना था। ऐसे में यह बायपास कुल 27 किमी में पूरा होना था जब कि राज्य सरकार का प्रस्ताव मात्र 11 किमी. का ही था। रेलवे ने इससे भी इनकार कर दिया। 
    उक्त एमओयू में राज्य सरकार ने यह भी चाहा था कि लालगढ़ के वर्तमान रेलवे वर्कशॉप को बीकानेर स्थानांतरित कर दिया जाए ताकि बीकानेर-लालगढ़ के मध्य की वर्तमान रेललाइन को हटाये जाने पर मीटर गेज डब्बों के मरम्मत कार्य में बाधा ना आए। जाहिर है राज्य सरकार की मंशा यही रही होगी कि वर्तमान बीकानेर जं. स्टेशन हटाकर रेलवे अपने खर्च पर वर्कशॉप वहां स्थानान्तरित कर ले। क्योंकि रेलवे के पास बीकानेर में इसके अलावा कोई स्थान भी नहीं हैं। रेलवे ने इससे भी इनकार कर दिया।
इन दो बड़े कारणों के अलावा अन्य कई छिटपुट सहमति-असहमति की टिप्पणियों के साथ रेलवे के जयपुर जोनल कार्यालय ने उपरोक्त सन्दर्भित पत्र के द्वारा बायपास निर्माण पर जो रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भिजवाई उसके इस वाक्य पर शहरवासी कृपया गौर करें : हमें इस निर्माण कार्य को अपनी पिंकबुक से हटा लेना चाहिए क्योंकि यह कार्य व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता। रेलवे अधिकारी यह भी बताते हैं कि रेलवे ने राज्य सरकार की वह रकम कभी की लौटा दी है। रेलवे द्वारा तब बन्द इस बीकानेर रेल बायपास प्रकरण पर कभी फिर पुनर्विचार किया हो, जानकारी में नहीं।
मास्टर प्लान 1976 के बायपास प्रावधानों तथा राज्य सरकार के एमओयू प्रारूप के उपरोक्त दिये गये तथ्यों पर गौर कर विचारें कि उक्त दोनों प्रस्तावों के प्रावधानों पर बीकानेर की आम जनता सहमत हो सकती है, दोनों में ही वर्तमान बीकानेर स्टेशन को हटाए जाने की बात है। जो यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि रेलवे रेल बायपास के लिए तैयार है, वह भी रेलवे के उक्त पत्र की भाषा से नहीं लगता। इस तरह हमें मान लेना चाहिए कि राज्य सरकार द्वारा जमीन और धन उपलब्ध करवाने के बावजूद रेलवे शहर के बीच से गुजरने वाली लाइन को नहीं हटायेगा, सवारी गाडिय़ा यथावत शहर से चलेंगी। ऐसे में शहर की यातायात समस्या का समाधान कैसे मिलेगा।
रेल अण्डरब्रिज
दूसरा विकल्प अण्डरपास या रेल अण्डरब्रिज बनाने का है जिसे नगर विकास न्यास ने सात वर्ष पहले दिया था। यह आरयूबी सांखला फाटक पर इसलिए नहीं बन सकता कि एक तरफ सट्टा बाजार चौराहा है तो दूसरी ओर कोयला गली, ऊपर से स्टेशन की ओर जाने वाले मार्ग पर चढ़ाई भी ज्यादा है। अत: गुंजाइश कोटगेट रेल फाटक पर निकाली गई। हालांकि सांखला फाटक जितनी समस्या तो यहां नहीं है, लेकिन कम भी नहीं है। जहां एक ओर मिर्च गली है तो दूसरी ओर कैंची गली, वहीं कोटगेट की ओर कुछ चढ़ाई भी है। बीच बाजार में होने के चलते लगभग पचास दुकानें जहां सीधे प्रभावित होंगी वहीं अंदरूनी गलियों वाले इतने ही व्यापारी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। यदि यह आदर्श समाधान हो तो इन प्रभावितों का त्याग हथियाया जा सकता है लेकिन जो असल समस्या बारिश के दिनों में आधे अन्दरूनी शहर का पानी कोटगेट से होते हुए इसी रेल फाटक से गुजरने की है। इस बेशुमार पानी के निकास की व्यवस्था हालांकि असंभव नहीं है, चार-पांच फीट चौड़े पाइप से रानी बाजार पुलिया तक इसे ले जाया जा सकता है लेकिन इस व्यवस्था का रखरखाव नगर निगम या नगर विकास न्यास, दोनों में से जिसे भी करना हो, रख-रखाव की मुस्तैदी इन दोनों महकमों की किसी से छुपी नहीं है। ऊपर से हम शहर वाले सीवर लाइन को जिस तरह कचरा पात्र के रूप में बापरने के आदी हैं वह भी कोढ़ में खाज ही है। निम्न उदाहरणों से अण्डरब्रिज की भयावहता का अन्दाजा लगा सकते हैं--यहां यह भी जानकारी रखना जरूरी है कि आरयूबी यदि दस फीट भी गहरा किया जाता है तो 2 फीट रेल लाइन के गर्डर जोड़कर यह गहराई बारह फीट हो जायेगी। ट्रांसपोर्ट प्लानरों के हिसाब से इसके लिए ढलान-सड़क की एक तरफ की आदर्श लंबाई कम से कम 240 फीट होनी चाहिए। क्योंकि कम सड़कीय ढलान का अनुपात हलके वाहनों के लिए बीस फीट पर एक फीट का होना माना गया है। ऐसे में दोनों तरफ 250 फीट लम्बी सड़क कहां से आयेगी और क्या-क्या प्रभावित होगा देखने वाली बात है।
दूसरा उदाहरण दस बारह वर्ष पहले महात्मा गांधी रोड का है जहां आकाश बिलकुल साफ था लेकिन अचानक बारिश के मौसम की तरह कोटगेट होते हुए भीतरी शहर से पानी का रेला आ गया। बाद में पता चला कि कोई छितराई बदली अन्दरूनी शहर पर अच्छे से बरसी थी। इसीलिए कहा गया है कि प्रकृति आपको संभलने का अवसर नहीं देती। पानी अचानक ऐसे आ जाए और आरयूबी का पाइप कहीं पर डटा हो तो अण्डरब्रिज को भरने में इतनी देर भी नहीं लगेगी कि सघन यातायात को रोककर अन्दर वालों को बाहर भी किया जा सके। चलो किया भी जा सके तो ऐसा करेगा कौन? राजधानियों की व्यवस्थाओं से तुलना करना ज्यादती होगी। वहां शासक खुद बैठते हैं। यहां तो जिनके जिम्मे है वे जरूरत पर दफ्तर में ही नहीं मिलते।
इसे यहीं के उदाहरण से समझ लें। सूरसागर की समस्या के हल में शहर से आने वाले पानी को इसमें जाने से रोकना भी है। कोटगेट होते हुए आने वाले पानी का गंतव्य सूरसागर ही है। सूरसागर की सफाई के साथ इसके दो तरफ पर्याप्त चौड़े पाइप डाल कर पानी निकासी के लिए जगह-जगह जालियां लगाई गई हैं। जालियां इन बारह वर्षों में कभी सही नहीं रही--वहां से गुजरने वाले अतिरिक्त सावधानी नहीं बरतें तो दुर्घटनाएं होती ही हैं। अलावा इसके जिस जरूरत के लिए यह जो डायवर्जन पाइप लाइन डाली गयी, वह इन बारह वर्षों में जरूरत पर कितनी बार दुरुस्त मिली कि बारिश का पानी सर्राटे से उसमें से होकर गुजर गया हो। जब तक पाइप के जाम को निकाला जाता है तब तक बरसाती पानी या तो सूरसागर में गिरता है या फिर रास्ता बनाकर जूनागढ़ की खाई में डालना पड़ता है। समाधान कुछ वैसा ही तो होना चाहिए जैसा हमारा स्वभाव है या जिस तरह की आदतें यहां के सरकारी कारकुनों के काम करने की हो लीं है। 
अभी हाल में यह भी सामने आया कि कोयला गली से मटका गली के बीच अण्डरब्रिज की संभावना तलाशें। अवश्य तलाश लें, संभव हो तो योजना को सिरे चढ़ाना चाहिए। लेकिन रेलवे लाइनों की अधिकता के चलते क्षेत्र की यहां चौड़ाई बहुत ज्यादा है, वहीं गंदे पानी का एक नाला भी है।
एलिवेटेड रोड समाधान : शंकाएं
आरयूआईडीपी द्वारा 2005-06 में बनी एलिवेटेड रोड योजना को भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय के सेवानिवृत्त अभियन्ता अजीतसिंह की देखरेख और बीकानेर के अभियन्ता अशोक खन्ना और हेमन्त नारंग के सहयोग से बनाया गया जिसमें रेलवे के अभियन्ता एनके शर्मा की सलाह-सहयोग भी महत्त्वपूर्ण रहा है। 
आपकी सुविधा के लिए एक बार पुन: उस प्रोजेक्ट की जानकारी साझा कर रहा हूं। लगभग 26 फीट चौड़ाई की यह डबललेन एलिवेटेड रोड महात्मा गांधी रोड स्थित रिखब मेडिकल स्टोर वाले बड़े चौक से चढ़कर फड़बाजार चौराहे से सांखला फाटक की ओर घूमनी है। वहां से नागरी भण्डार तक पहुंचकर दो शाखाओं में विभक्त होकर एक शाखा रेलवे स्टेशन जाने वाले यातायात के लिए मोहता रसायनशाला के आगे उतरेगी तो दूसरी शाखा अन्दरूनी शहर की ओर जाने वालों के लिए फोर्ट स्कूल के पास राजीव मार्ग पर।
एलिवेटेड रोड की इस आरयूआईडीपी योजना में थोड़ा विस्तार देकर इसके स्टेशन की ओर वाले सिरे को रेलवे स्टेशन के मुख्यद्वार पर तथा रानी बाजार की ओर जाने वाले यातायात को पीडब्ल्यूडी डाक बंगले के पीछे की ओर उतारा जा सकता है, उसी के एक सिरे को रानी बाजार से आने वाले यातायात के लिए आयकर कार्यालय के आगे से चढ़ाया जा सकता है। मूल योजना की चौड़ाई में इतना परिवर्तन जरूर किया जा सकता है कि महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड से गुजरने वाली एलिवेटेड रोड को बिना किसी भवन के हिस्से का अधिग्रहण किए सड़क की चौड़ाई यदि बढ़ाई जा सकती है तो बढ़ानी चाहिए। चाहे वह 2-3 फीट ही क्यों ना बढ़े।
अलावा इसके इस योजना के लिए कई नकारात्मक बातें फैलाई जा रही हैं। पहली यह कि इसके निर्माण के बाद सांखला फाटक को दीवार बनाकर हमेशा के लिए रेलवे बंद कर देगा। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि रेलवे ऐसा किस स्थिति में करेगा और किस स्थिति में नहीं। रेलवे का यह कायदा है कि एलिवेटेड रोड या रेलवे ओवरब्रिज, अण्डरब्रिज के निर्माणकार्य में रेललाइन के ऊपर या नीचे के हिस्से का निर्माणकार्य सुरक्षा सावचेती के चलते रेलवे खुद करवाता है। इसमें रेलवे के मानदंड हैं कि स्थानीय प्राधिकरण या राज्य सरकार रेलवे क्षेत्र के उक्त निर्माणकार्य का भुगतान करना स्वीकार कर लेते हैं तो रेलवे उस रेलवे क्रॉसिंग को यथावत रखता है अन्यथा उसे हमेशा के लिए बन्द कर देता है। रेलवे का व्यावहारिक तर्क है कि जब एलिवेटेड रोड या रेलवे ओवरब्रिज के ऊपरी हिस्सों के निर्माण का पैसा विभाग ने लगा दिया तब वह क्यों द्वारपालों की तनख्वाह भुगते और क्यों उस फाटक का मेंटीनेंस भुगते। 2006-07 में बनी योजना अनुसार स्थानीय एलिवटेड रोड लगभग एक किलोमीटर का बनना है जिसका पूरा खर्च राज्य सरकार को ही वहन करना चाहिए-यह कोई बड़ी रकम भी नहीं है, एनएचएआई के अधीन देने से ही यह योजना न्यायिक पेचीदगियों में उलझी है। 
एलिवेटेड रोड योजना से क्षेत्र के व्यापारियों की व्यापार घटने की जो शंका है वह भी निर्मूल इसलिए है कि अभी जो 70 प्रतिशत यातायात महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड को केवल आवागमन के तौर पर उपयोग कर भीड़ बढ़ाता है वह एलिवेटेड रोड से सीधे गुजर जाएगा। ऐसे में इन बाजारों के जो असल खरीददार हैं उन्हें खरीददारी के लिए न केवल पर्याप्त सहूलियत मिलेगी बल्कि उन्हें वाहन पार्किंग का पर्याप्त स्थान भी मिल जायेगा। इसलिए क्षेत्र के व्यापारियों को इस एलिवेटेड रोड योजना पर सकारात्मक रुख अपना लेना चाहिए।
बायपास और एलिवेटेड रोड समाधानों पर अपने-अपने तर्क
बायपास निर्माण में मोटा-मोट 30-32 किमी की नई रेललाइन डलनी है जिस पर नाल और लालगढ़ स्टेशन के बीच एक नया रेलवे स्टेशन भी रेलवे द्वारा प्रस्तावित है। इसमें यह भी कि रेलवे लालगढ़ और बीकानेर के स्टेशनों को यथावत रखना चाहता है और दोनों के बीच की वर्तमान रेललाइन को भी। रेलवे का मानना है कि वह सवारी गाडिय़ों को पुराने मार्ग से ही गुजारेगा, यात्री गाडिय़ों के संचालन समय को कम करने का दबाव रेलवे पर हमेशा रहता है। ऐसे में यात्री रेल गाडिय़ों को बायपास से गुजारने के लिए लगभग एक-डेढ़ घंटे का अतिरिक्त समय रेलवे कैसे वहन करेगा। 
बायपास के बहाने एलिवेटेड रोड का विरोध करने वालों की तरफ से यह भी कहा जा रहा है कि एलिवेटेड रोड बनने से बीकानेर जं. रेललाइन के दोहरीकरण और विद्युतीकरण से वंचित हो जाएगा। एलिवेटेड रोड बनने से विद्युतीकरण के काम पर तो कोई आंच नहीं आनी है, तमाम ओवरब्रिजों और एलिवेटेड रोड के नीचे से रेलवे की विद्युत लाइनें निकलती ही हैं। रही रेल लाइन के दोहरीकरण की बात, तो बीकानेर-लालगढ़ स्टेशन के बीच की रेललाइन लगभग पौने चार किमी की ही है, यदि यह लाइन सिंगल रहकर शेष का दोहरीकरण होता है तो इस छोटे टुकड़े का सिंगल ट्रेक रहने से गाडिय़ों के संचालन में कोई खास बाधा नहीं आनी है।
कल्ला साहब!
अन्त में आपसे यही आग्रह है कि आपके इस कार्यकाल में शहर की इस समस्या का कोई व्यावहारिक हल निकलवा देंगे तो यह शहर आपको हमेशा याद करेगा। जरूरत सिर्फ मन बनाने की है।
—दीपचन्द सांखला
6 फरवरी, 2020

No comments: