Thursday, July 18, 2019

केंद्र व राज्य के बजट और बीकानेर

बजट केन्द्र के हों या राज्य के, रस्म अदायगी भर हो कर रह गये हैं। एक समय था जब केन्द्र सरकार के मुख्य और रेल बजट; दोनों की ना केवल उत्सुकता रहती थी बल्कि बजट पूर्व और उसके बाद जागरूक समाज में चर्चा का हेतु बना रहता। 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने, रेल बजट को खत्म ही कर दिया। अरुण जेटली के वित्तमंत्री रहने तक केन्द्रीय बजट का महत्त्व कुछ बना रहा, जनता ने जैसे ही मोदी-शाह को राज दुबारा दिया, लगने लगा केन्द्रीय बजट को भी खत्म करने की ठान ली गई है। बहुत कुछ गोल-मोल करना और बहुत कुछ छिपाना इस नयी सरकार के पहले बजट से शुरू कर दिया गया। मानों, राज की मंशा यही हो कि गुड़ कोथली में फोड़ लिया जाए। कुछ दिखेगा, पता चलेगा तब जनता उम्मीदें करेंगी, उम्मीदें होंगी तो राज कठघरे में और कसौटी पर रहेगा।
मोदी के पिछले राज के बजट में बीकानेर जिले में क्रूड ऑयल रिजर्व का बड़ा एलान किया गया। लूनकरणसर क्षेत्र को चिह्नित भी कर लिया गया। हमारे सांसद, केन्द्र में राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल उस घोषणा को लेकर कुछ दिन तो फूले नहीं समाये। लेकिन थोड़े दिनों बाद अचानक जैसे उन्हें सांप सूंघ गया। बाद में पता लगा कि सांप सच में सूंघ गया था। उस क्रूड ऑयल रिजर्व की योजना को गुजरात भिजवा दिया गया। बहाना बनाया गया आयोजन क्षेत्र का अन्तरराष्ट्रीय सीमा से पर्याप्त दूर ना होना। ऐसा था भी तो लूनकरणसर के अलावा बीकानेर जिले में ही श्रीडूंगरगढ़ तहसील क्षेत्र ऐसा है जो सीमा से पर्याप्त दूर है। चलो, बीकानेर जिला छोड़ देते है राज्य के किसी दूसरे जिले को चुन लेते। लेकिन मुहावरा है ना 'धणी का धणी कौन'। मोदी-शाह के सामने होना और सांप की बांबी में हाथ डालना, एक समान है। इसीलिए ऊपर कहा गया कि अर्जुनराम मेघवाल को सांप सूंघ गया।
बीते पांच वर्षों से बीकानेर की एक और महती जरूरत का भान श्री मेघवाल को है, मेड़ता सिटी-पुष्कर की मात्र 60 किमी की नई रेललाइन डाले जाने से बीकानेर संभाग को ही सर्वाधिक लाभ होना है। पंजाब, जम्मू-कश्मीर से अजमेर, उदयपुर, मध्यप्रदेश-मालवा के उज्जैन, इन्दौर, रतलाम और इससे आगे दक्षिण की ओर जाने वाली संभावित गाडिय़ों का मार्ग खुल जायेगा। ये सभी गाडिय़ा बीकानेर होकर गुजरेंगी। संप्रग-दो सरकार के समय इस मार्ग का सर्वे हो चुका है अब तो केवल लाइन ही डलनी है। अर्जुन मेघवाल कोशिश भी करते होंगे, लेकिन दाल गलती नहीं दीख रही। क्योंकि जिस वर्ग से वे आते हैं उन्हें गंभीरता से लिया जाना आजादी के 70 वर्षों बाद भी जरूरी नहीं बना। यह बात अब पुख्तगी से व ताजा नजीर के हवाले से इसलिए कह सकते हैं कि पूर्व राजघराने की दीयाकुमारी पहली बार सांसद चुनी गईं, मंत्री भी नहीं है। अपने चुनाव क्षेत्र नाथद्वारा को रेललाइन से जुड़वाने के लिए बजट से पूर्व रेलमंत्री से पहली बार मिलीं और उस पहली ही मुलाकात में मावाली-नाथद्वारा की लगभग 30 किमी की रेललाइन के लिए 166 करोड़ रुपये का प्रावधान करवाकर घोषणा भी करवा ली। और अपने राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल बीते पांच वर्षों से या तो हमें बेवकूफ बना रहे हैं या खुद भी बन रहे हैं! ऐसे में बीकानेर उनसे क्या उम्मीदें करे।
बात अब इस वर्ष के राजस्थान के पूरक बजट की कर लेते हैं। राज्य में कभी 5 संभागीय मुख्यालय हुआ करते थे अब सात हैं। लेकिन उपेक्षा के मामले में हमेशा से हमारा संभाग पीछे से फस्र्ट आता रहा है। मामला नहर का हो या उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थानों का या फिर शहरी क्षेत्र की बड़ी समस्याएंं क्यूं ना हो, सूबे की सरकारें निष्ठुर ही पेश आती रहीं, वे अपने इस बच्चे को रोने पर भी दूध नहीं पिलाती। इन्दिरा गांधी नहर की ऐसी जर्जर स्थिति है कि कभी भी इसमें पर्याप्त क्षमता में पानी नहीं छोड़ पाते। छोड़ें तो इलाका जलमग्न होते देर नहीं लगे, जबकि इसकी मरम्मत और रखरखाव पर अरबों रुपये सालाना खर्च होते हैं। लगता यही है कि ऊपर से नीचे तक के सरकारी कारकुनों के लिए झोलियां भरने का यह बड़ा साधन है।
बीस वर्षों से 'उतर भीखा म्हारी बारी' की तर्ज पर भाजपा-कांग्रेस की सरकारें बारी-बारी से बनती हैं। एक बार अशोक गहलोत तो एक बार वसुंधरा राजे। ढोंग ही दोनों ऐसा कुछ करते हैं कि बीकानेर से इन्हें बहुत लगाव है, करते-करवाते कुछ नहीं। श्रीगंगानगर की बात करें तो बीते सात वर्षों से वहां का मेडिकल कॉलेज कागजों में पड़ा है, तिलम संघ की फैक्ट्री बंद हो गई, सरकारें गलियांनिकालती रहती हैं। हनुमानगढ़ में तो व्यवस्थित चिकित्सालय तक नहीं है। चूरू में जरूर राजेन्द्र राठौड़ के प्रयास से मेडिकल कॉलेज खुल गया। 
बीकानेर की बात करें तो यहां की सबसे बड़ी समस्या है कोटगेट क्षेत्र से गुजरने वाली रेललाइनों के चलते यातायात की। इस परेशानी का जनता को भान हुए तीस वर्ष हो गये हैं, इसका भान करवाने का श्रेय बेशक पूर्व विधायक रामकृष्णदास गुप्ता को है। लेकिन कहने में संकोच नहीं कि समाधान की एक बाधा अब वे खुद भी हैं, खैर बींद के मुंह लार पड़े तो जानी बेचारो क्या करें, हमारे वे जनप्रतिनिधि, जिन्हें हम चुनकर भेजते हैं, वे ही नाकारा हैं। फिर वे चाहे भाजपा के गोपाल जोशी और सिद्धिकुमारी रहे हों या कांग्रेस के डॉ. बीडी कल्ला। गत विधानसभा चुनावों में डॉ. कल्ला ने शहर की एक चुनावी सभा में अशोक गहलोत को प्रॉम्ट करके कोटगेट क्षेत्र की उक्त समस्या के रेल बायपासी समाधान की घोषणा करवायी थी। अब सरकार बन गई तो गाजे-बाजे कुछ तो सुनाई देने चाहिए थे, लेकिन पूरक बजट में बीकानेर कोटगेट क्षेत्र की इस समस्या का ही नामोनिशान नहीं, समाधान तो दूर की बात है। मुख्यमंत्री गहलोत ने 16 जुलाई को फिर कुछ घोषणाएं की, उसमें भी इसका उल्लेख नहीं। जबकि भाजपा सरकारें 2004 के बाद जब भी आयी है, ना केवल योजना बनवाती है, बल्कि इस समस्या के समाधान के गाजे-बाजे भी लगातार बजवाती है। कांग्रेसराज में तो वैसा श्रवण सुख भी कभी सुनाई नहीं दिया। बीकानेरियों को इसलिए भी अशोक गहलोत से हमेशा शिकायत रही है। 
वर्ष 2005-06 में कोटगेट क्षेत्र की इस यातायात समस्या के समाधान के लिए 60 करोड़ रुपयों की घोषणा करवाई, यह अलग बात है कि उस राशि को बाद में वसुंधरा राजे अपने चुनाव क्षेत्र झालावाड़ ले गईं। वसुंधरा राजे मारे चाहे ना ही, कम से कम मारो-मारो तो करती हैं। खैर स्थानीय लोक में कहावत है, 'सुतोड़ां री भैंस पाडा जणे' हम बीकानेरी सोये हुए हैं या संतोषीभैंस हमारी पाडे ही जणेगी, और पाडों की नियती है बूचडख़ाने।
—दीपचन्द सांखला
18 जुलाई, 2019

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