Thursday, May 2, 2019

23 मई उपरांत के कुछ अनुमान--कुछ आशंकाएं

मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं लगभग खत्म
लोकसभा चुनाव के कुल 7 चरणों के मतदान के चार चरण पूरे हो चुके हैं। देश के मतदाताओं ने लोकसभा के लगभग 70% सदस्यों को चुन लिया है। 19 मई को मतदान के आखिरी चरण के बाद 23 मई की दोपहर तक नई सरकार का रूप-स्वरूप काफी कुछ तय हो जाना है।
लोकसभा के पिछले चुनाव 2014 में हुए थे। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अनुमान से ज्यादा सीटें जीतीं। 2013 के उत्तरार्द्ध से मोदी की केन्द्र में भूमिका को लेकर जो भी आशंका प्रकट की गईं वे भी अनुमान से ज्यादा बदतर साबित हुईं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कहे का सहारा लें तो मोदी देश के लिए आपदा साबित हुए हैं। वे ना केवल सभी मोर्चों पर असफल साबित हुए बल्कि नोटबंदी जैसे मूर्खतापूर्ण निर्णय और अनाड़ीपने से लागू जीएसटी प्रणाली से देश की अर्थव्यवस्था का ढांचा लगभग चरमरा गया। अलावा इसके मोदी द्वारा घोषित सभी फ्लैगशिप योजनाएं एक-एक कर औंधे मुंह गिर पड़ी हैं।
आरएसएस के लिए मोदी ना निगलते बन रहे हैं और ना उगलते। संघ को शुरू में तो लगा कि मोदी राज में उसके हिन्दुत्वी ऐजेन्डे को गति मिल रही है लेकिन जैसे-जैसे हिन्दुत्वियों में बेधड़कपन बढ़ा, वैसे-वैसे यहां के अल्पसंख्यकों में आशंकाएं पनपने लगी। इन सबके चलते आम भारतीय नाखुश नजर आने लगा। जैसी की मोदी की फितरत है, अपने जोड़ीदार अमित शाह की जुगलबन्दी में उन्होंने ना केवल भाजपा संगठन को ही हाइजेक कर लिया, बल्कि केन्द्र सरकार को भी एक छत्र के नीचे ले आए। यद्यपि संघ इसी तरह के संगठन और शासन प्रणाली का तरफदार है लेकिन अपने एजेण्डे को अचानक मिली अनुकूलताओं और उसकी प्रतिक्रिया में बने प्रतिकूल माहौल से जहां संघ के हाथ-पांव फूल गये वहीं मोदी-शाह की महत्त्वाकांक्षाओं में सिमटते सत्ता केन्द्र के आगे संघ अपने को बेबस भी देखने लगा। नितिन गडकरी के बयानों से संघ की मंशा और मन:स्थिति के अनुमान लगाए जा सकते हैं।
यह तो सब हो चुका, हुए को अनहुआ करने की कोई युक्ति ईजाद नहीं हुई है। वर्तमान संविधान के वशीभूत होकर पांच वर्ष बाद सरकार को फिर जनादेश पाने के लिए जनता के बीच आना पड़ा है। मोदी सरकार ने कुछ किया होता तो उसके नाम पर वोट मांग लेते, नहीं किया तो हिन्दुत्वी ऐजेन्डे को छोड़ फिलहाल वे राष्ट्रवाद के हवाई ऐजेण्डे पर आ लिए हैं। पुलवामा-बालाकोट करवाने के बावजूद माहौल 2014 वाला बन नहीं पा रहा है। वहीं बिखरे होने के बावजूद विपक्ष सावचेत है। सबसे ज्यादा सीटों वाले उत्तरप्रदेश में अधिकतम 40 सीटों के अनुमान के बावजूद भाजपा 175 सीटों का आंकड़ा पार करती लग नहीं रही है। जबकि इस अनुमान के अनुसार महाराष्ट्र में 10, बिहार में 6, कर्नाटक में 13, राजस्थान में 16, गुजरात में 20, मध्यप्रदेश में 16, बंगाल से 10 और ओडिशा में 8 सीटें पाना शामिल है। भाजपा यदि 175 का आंकड़ा पार नहीं करती है तो जदयू, शिवसेना जैसे वर्तमान सहयोगियों और बसपा व टीआरएस जैसे संभावित सहयोगियों के बावजूद उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का आंकड़ा 225 को पार करता नहीं लग रहा है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी का पुन: प्रधानमंत्री बनना लगभग असंभव है। मान लेते हैं यह अनुमान भी धरा रह जाना है, जिसकी उम्मीद कम लगती है। भाजपा अगर 200 के पार निकल जाये और राजग जैसे तैसे सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए तब भी अपनी फितरतों के चलते गठबंधन के साथ राज चलाना मोदी के लिए संभव नहीं लगता। इन्हीं सब आशंकाओं के मद्देनजर और नितिन गडकरी को लेकर संघ की इच्छाओं को धता बताने के लिए मोदी-शाह कंपनी ने जहां खुद अमित शाह को मैदान में उतारा है वहीं नागपुर जैसे लोकसभा क्षेत्र से भी गडकरी को लगभग हरवाने की व्यवस्था की है।
अभी की मोदी सरकार नाममात्र की ही राजग सरकार है। 23 मई के बाद यदि राजग की सरकार अमित शाह के नेतृत्व में बनती है तो एकबारगी तो असल राजग की सरकार होगी लेकिन उसे शाह की सरकार होते देर नहीं लगेगी। यदि ऐसा होगा तो मोदी को थरपने की अनुकूलता बनते ही अमित शाह रामनाथ कोविंंद का राष्ट्रपति पद से ना केवल इस्तीफा दिलवायेंगे बल्कि नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रपति बनाने की कोशिश भी करेंगे, ताकि नरेन्द्र मोदी घूमने-फिरने और खाने-पहनने के अपने बचे-खुचे शौक पूरे कर सकें। ऐसा ही सब हुआ तो देश की स्थितियां ना केवल मोदी राज से बदतर हो जाएंगी बल्कि हो सकता है, भविष्य में चुनाव समय पर ना हों!
भाजपा के 175 सीटों में सिमटने पर कुछ उलट अनुमानों पर चर्चा विपक्षी परिदृश्य के सन्दर्भ से भी कर लेते हैं। विपक्ष में जिनके पास ठीक-ठाक सीटें हो सकती है उनमें या तो वे हैं जो मोदी-शाह के तौर-तरीकों से भयभीत हैं या वे जो इनसे खार खाए हैं। जो अनुमान सामने आ रहे हैं उसके हिसाब से लोकसभा में लगभग 125 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस आती दिख रही है। कांग्रेस यदि 100 के भीतर सिमटती है तो विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए देवेगोड़ा-गुजराल की तरह अचानक नया नाम आयेगा और उस पर सहमति बनेगी। कांग्रेस यदि 125 का आंकड़ा पार कर जाती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व में संप्रग-तीन की सरकार बनेगी। ऐसे में वर्तमान चुनावी-सहयोगी डीएमके, एनसीपी, राजद, जेएमएम और जेडीएस के अलावा टीएमसी, सपा और वामपंथी पार्टियां भी समर्थन देकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को बहुमत तक पहुंचा सकती हैं।
केन्द्र में मोदी-शाह रहित बनने वाली कोई भी सरकार ना केवल वर्तमान मोदी सरकार से बल्कि भारत जैसे विविधताओं वाले लोकतांत्रिक देश के लिए हर तरह से बेहतर होगी। मोदी-शाह के बिना राजग की भी सरकार यदि बनती है, वह भी वर्तमान मोदी सरकार से देश के लिए बेहतर होगी।
जिस तरह एक पार्टी की पूर्ण बहुमत से बनी सरकारों के सभी अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं उसी तरह गठबंधन की सभी सरकारों को भी खराब नहीं कहा जा सकता। भ्रष्टाचार जैसी बुराई को नजरअंदाज कर दें तो अटलबिहारी वाजपेयी और मनमोहनसिंह के नेतृत्व में गठबंधन की सरकारों ने हर मोर्चे पर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली पूर्ण बहुमत की एकदम नाकारा सरकार से बेहतर काम किया। भ्रष्टाचार में तो मोदी सरकार भी आकण्ठ डूबी हुई है, बल्कि मोदी-शाह राज के खत्म होने के बाद इनकी जो करतूतें सामने आएंगी, उनके नीचे पिछली सरकारों के सभी कारनामे दब जाने हैं। गत पांच वर्षों में देश ने अब तक की सबसे निकम्मी और भ्रष्टतम सरकार को भोगा है।
—दीपचंद सांखला
02 मई, 2019

2 comments:

Vivek Ahuja said...

वर्तमान राजनीतिक स्थिति का यथार्थ निचोड़

drtiwari said...

Sounds real.