'पार्टी विद ए डिफरेंस' का दावा करने
वाली भारतीय जनता पार्टी अपने क्रिया-कलापों और लोक कल्याण के दावों के मामलों में
जहां कांग्रेस से बदतर साबित हुई वहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था की राजनीतिक पार्टी
होते हुए भी सांगठनिक नियुक्तियों के मामले में शाह-मोदी की भाजपाई हाइकमान
कांग्रेस की अब तक की किसी भी हाइकमान से कम अधिनायकवादी नहीं नजर आ रही है। अपवाद
स्वरूप राजस्थान भाजपा की सुप्रीमो वसुंधरा राजे उन्हें आईना दिखाने का चाहे
दुस्साहस कर रही हो, लेकिन उसके अंजाम
का अनुमान अच्छे भले राजनीतिक विश्लेषक भी नहीं लगा पा रहे हैं। हालांकि अब प्रजातांत्रिक
व्यवस्था के इस प्रतिकूल समय में ऊंट का वसुंधरा की करवट में बैठना लोकतांत्रिक
मूल्यों के लिए कुछ तो उम्मीद जगाएगा।
आज बात कांग्रेस की करनी है, वह भी उसके
बीकानेर संगठन के ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति प्रकरण के आधार पर। भारत की
स्वतंत्रता और शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए पिछली सदी की शुरुआत में जिस
कांग्रेस के नेतृत्व में देश ने चालीस से ज्यादा वर्षों तक लम्बी राजनीतिक लड़ाई
लड़ी, उसी कांग्रेस के शासन में
लोकतंत्र का क्या हश्र हुआ है, किसी से छिपा
नहीं है। शासन के प्रशासनिक तौर-तरीकों की बात ना भी करें तो खुद कांग्रेस के
सांगठनिक ढांचे में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अपनाए कई दशक बीत गये हैं। प्रदेश
संगठनों में हुई नियुक्तियों की क्या बात करें जब जिला और ब्लॉक स्तरीय
नियुक्तियों की सूचि भी हाइकमान जारी करता रहा है—बिना किसी चुनावी प्रक्रिया के।
इन पार्टियों की यह नियुक्ति प्रक्रिया जिन्हें 'थोपना' कहना ही ज्यादा
उचित होगा—वह भी इतनी बोझिल और
लम्बी होती है कि उनकी घोषणाओं से कई बार पार्टियों को शर्मिन्दगी का सामना करना
पड़ जाता है। जैसे हाल ही में कांग्रेस पार्टी हाइकमान ने लम्बे समय से प्रतीक्षित
बीकानेर के नये ब्लॉक अध्यक्षों की सूचि जारी की। प्रस्तावों पर निर्णय करने में
पांच-छह महीने लग गये होंगे, तभी तीन माह
पूर्व दिवंगत हुए विजय आचार्य के नाम की घोषणा भी कर दी गई। जिन्होंने इस नाम की
सिफारिश की उन्होंने यह जिम्मेदारी भी नहीं समझी कि जिस व्यक्ति की उन्होंने
सिफारिश की है, उसका देहान्त
होने पर इसकी सूचना हाइकमान को देना जरूरी है। हो सकता है उन्होंने यह मान लिया
होगा कि हमारे चाहने भर से कौनसी नियुक्ति हो जानी है। सुनते हैं, दिवंगत विजय आचार्य का नाम कांग्रेस के बुजुर्ग
दिग्गज मोतीलाल बोहरा की रहनुमाई में बीकानेर के उस गुट की तरफ से दिया गया जिसकी
चौधर बोहरा के दामाद डॉ. राजू व्यास कर रहे हैं। नागौर मूल के बोहरा तो खैर
राष्ट्रीय नेता हैं, क्षेत्र विशेष
में उनकी रुचि हो सकती है, लेकिन मजे की बात
तो यह है कि उनके दामाद डॉ. राजू व्यास जोधपुर के हैं, बीकानेर से बिना किसी लेने-देने के बावजूद अपने ससुर की
हैसियत के चलते यहां पिछले एक दशक से ज्यादा समय से वे यहां अपनी
महत्त्वाकांक्षाओं को हवा-पानी दे रहे हैं।
बीकानेर कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति पर दैनिक भास्कर के विश्लेषण
पर गौर करें तो इनमें जहां रामेश्वर डूडी की पदरपंचाई जम कर चली, वहीं पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष, पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पांच बार विधायक रहे
डॉ. बीडी कल्ला अपनी सामान्य प्रतिष्ठा भी बनाए नहीं रख पाए। बीकानेर शहर और देहात
की कुल चौदह नियुक्तियों में डूडी ने जहां अपने छह आदमी बिठवा लिए वहीं कल्ला खुद
अपने बीकानेर पश्चिम क्षेत्र की दोनों नियुक्तियों में अपने मन की नहीं करवा सके।
कुल हुई चौदह नियुक्तियों में से मात्र एक नियुक्ति कल्ला के हिसाब से हुई है।
उनसे से तो पिछले विधानसभा चुनावों से कुछ पहले भाजपा से कांग्रेस में आए गोपाल गहलोत
भी जीत में रहे, जिन्होंने
बीकानेर पूर्व क्षेत्र की दोनों नियुक्तियां अपने समर्थकों की करवा ली। कल्ला से
ज्यादा पहुंच तो उन डॉ. राजू व्यास ने साबित कर दी, जिनका बीकानेर से कोई खास लेना-देना ही नहीं। इसी बहाने ही
और अपनी उम्र के इस मुकाम पर कल्ला को एक ओर पारी सफलतापूर्वक यदि खेलनी है तो
उन्हें अपनों को परोटने के तौर-तरीकों का गहन विश्लेषण करना चाहिए कि अपने
वरिष्ठों और कनिष्ठों का भरोसा लम्बे समय तक वे क्यूं नहीं सहेज कर रख पाते हैं।
—दीपचन्द सांखला
10 मई, 2018
No comments:
Post a Comment