Wednesday, November 22, 2023

बीकानेर जिले की चुनावी राजनीति और 1957 का आम चुनाव

 1951 के पहले आम चुनाव में बीकानेर-चूरू सिंगल सीट और गंगानगर- झुंझुनूं डबल (एक अनुसूचित जाति तथा दूसरी सामान्य) थी। 1957 में हुए परिसीमन में झुंझुनूं की अलग सीट बना दी गयी और गंगानगर को शामिल कर बीकानेर को बनाया गया। राजस्थान की कुल 18 लोकसभा सीटों में 13 सिंगल (सामान्य) 4 डबल और एक अनुसूचित जनजाति की सीट (बांसवाड़ा) थी।

बीकानेर डबल सीट में सामान्य उम्मीदवार के तौर पर डॉ. करणीसिंह फिर खड़े हुए और जीते। वोट लिए दो लाख अठारह हजार। कांग्रेस से सामान्य सीट पर प्रो. केदार शर्मा उम्मीदवार थे। हां, यह वही केदार शर्मा हैं, जो 1951-52 में गंगानगर-झुंझुनूं डबल की सामान्य सीट पर समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार थे। प्रो. केदार एक लाख उन्तीस हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे। बाद में प्रो. केदार फिर से समाजवादी पार्टी में चले गये और गंगानगर के बहुत लोकप्रिय नेता हुए। दूसरी अनुसूचित जाति की सीट पर पन्नालाल बारूपाल कांग्रेस से उम्मीदवार थे जो 1951 में गंगानगर-झुंझुनूं सीट पर कांग्रेस के सांसद थे। बारूपाल एक लाख इकतालीस हजार वोट लेकर डबल की दूसरी सीट से विजयी घोषित हुए।

बीकानेर जिले की विधानसभा सीटों की बात करें तो 1957 के चुनाव में तीन निवार्चन क्षेत्र थे बीकानेर शहर, लूनकरणसर और नोखा (डबल—दूसरी सीट अनुसूचित जाति की)। इस तरह इस चुनाव में जिले की चार सीटें हुईं। 

बीकानेर शहर सीट से प्रजा समाजवादी पार्टी से मुरलीधर व्यास खड़े हुए। मुरलीधर व्यास 1951-52 के पहले आम चुनाव में बीकानेर शहर विधानसभा सीट से और बीकानेर-चूरू लोकसभा सीट—दोनों से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। व्यास ने विधानसभा सीट पर तो ठीकठाक वोट लिए लेकिन लोकसभा सीट पर उनकी उपस्थिति खास नहीं रही। लेकिन इस पहले आम चुनाव के बाद उन्होंने बीकानेर शहर को अपना सेवा क्षेत्र बना लिया। पांच वर्ष आमजन के काम आये—जनता के मुद्दों पर भिड़ते रहे। 1957 का चुनाव मुरलीधर व्यास ने अपने कामों के आधार पर 12089 वोट लेकर अच्छे-खासे अन्तर से जीता। कांग्रेस से पुन: 1951-52 वाले ही अहमद बख्स सिंधी उम्मीदवार थे। जिन्होंने 5419 वोट लिए। इस चुनाव में जनसंघ से उम्मीदवार थे चांदरतन आचार्य उर्फ शेरे चांदजी, जिन्होंने मात्र 1202 वोट लिए। बीकानेर में जनसंघ की स्थापना का श्रेय आरएसएस के स्वयंसेवक चांदजी को ही था। 1951 में जब जनसंघ की स्थापना के बाद राजस्थान इकाई के गठन के लिए जयपुर में बैठक हुई तो बीकानेर से चांदजी ने ही नुमाइंदगी की थी।

चौथे उम्मीदवार थे डॉ. धनपतराय। 1951-52 के चुनाव में डॉ. धनपतराय नामांकन के बावजूद इसलिए निष्क्रिय हो गये क्योंकि करपात्री महाराज के आग्रह पर अन्तिम समय में उनके भाई पं. दीनानाथ रामराज्य परिषद से उम्मीदवार हो गये थे। पं. दीनानाथ मेजर जनरल जयदेवसिंह के निजी सहायक थे और आजादी बाद बीकानेर में ही रसद अधिकारी के तौर पर सेवाएं दी। इस चुनाव में कमला नाम की महिला भी उम्मीदवार थीं। इस तरह आजादी बाद बीकानेर में किसी महिला के चुनाव लडऩे का बीकानेर में पहला उदाहरण बनीं।

1951-52 के चुनाव में बीकानेर तहसील नाम वाली सीट 1957 में लूनकरणसर पहचान से अस्तित्व में आयी। लेकिन इस चुनाव की बात करने से पहले-बीकानेर तहसील सीट के 1956 में हुए उपचुनाव की बात करते हैं।

1951-52 के चुनाव में यहां से निर्दलीय जसवंतसिंह दाऊदसर विजयी हुए थे। जो केन्द्र की संसद के ऊपरी सदन-राज्यसभा के गठन के बाद राजस्थान विधानसभा से राज्यसभा के सदस्य के तौर पर निर्वाचित होकर चले गये। इस तरह बीकानेर तहसील की यह सीट खाली हो गयी थी। उप चुनाव हुए—जिसके माध्यम से बीकानेर को मानिकचन्द सुराना जैसा जननेता मिला। सुरानाजी 25 वर्ष के हुए ही थे। सुरानाजी ने बीकानेर तहसील सीट में हो रहे इस उपचुनाव से प्रजा समाजवादी पार्टी से ताल ठोक दी। सामने कांग्रेस से थे रामरतन कोचर। कोचर 1951-52 के चुनाव में नोखा-मगरा से कांग्रेस के उम्मीदवार थे लेकिन हार गये थे। 1956 के इस उपचुनाव में रामरतन कोचर 7181 वोट लेकर विजयी हुए और सुराना को मिले 4469 वोट।

उपचुनाव के एक वर्ष बाद ही 1957 में आम चुनाव होने ही थे। जैसा बताया कि परिसीमन के बाद यह सीट लूनकरणसर नाम से अस्तित्व में आयी। कुल छह उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। जिसमें दल विशेष के केवल एक चौधरी भीमसेन ही कांग्रेस से उम्मीदवार थे, शेष पांच निर्दलीय। चौधरी भीमसेन पेशे से वकील थे और बाद में इसी सीट से विजयी होकर सूबे में राज्यमंत्री रहे वीरेन्द्र बेनीवाल के पिता। चौधरी भीमसेन 4838 वोट लेकर विजयी हुए। दूसरे नम्बर पर 2874 वोट लेकर निर्दलीय उम्मीदवार सोहनलाल रहे।

बीकानेर जिले का तीसरा निर्वाचन क्षेत्र था नोखा, लेकिन सीटें इसकी दो थीं। एक अनारक्षित और दूसरी आरक्षित। मताधिकार का प्रयोग करने वालों को दो-दो वोट देने थे। इस चुनाव में दोनों ही उम्मीदवार निर्दलीय जीते। 

आरक्षित सीट से रूपाराम और अनारक्षित से गिरधारीलाल भोबिया। रूपाराम के पुत्र रेंवतराम पंवार भी बाद में यहीं से दो बार विधायक रहे। क्षेत्र की अनारक्षित सीट पर कांग्रेस से उम्मीदवार थे, कानसिंह रोड़ा जो 1951-52 के चुनाव में यहीं से निर्दलीय विधायक चुने गये थे, लेकिन 1957 के इस चुनाव में अच्छे-खासे अंतर से हारे। 

1956 में बीकानेर तहसील से लडऩे वाले मानिकचन्द सुराना इस चुनाव में नोखा से खड़े हुए लेकिन पेशे से वकील सुराना चुप नहीं बैठे, भोबिया को चुनौती देने का सुराग ढूंढने लगे, मिल भी गया। भोबिया 25 वर्ष के हुए ही नहीं थे। सुराना ने भोबिया के 10वीं के सर्टीफिकेट के साथ उनके निर्वाचन को चुनौती दी और निर्वाचन रद्द करवा दिया। इस तरह जिले में दूसरे उपचुनाव की भूमिका बनी। बाद में भोबिया की पहचान भले राजनेता की बनी और जिले की ग्रामीण राजनीति में उनकी अच्छी पैठ रही।

इस तरह 1951-52 के बाद 1957 के ये चुनाव बीकानेर जिले में राजनीति की जाजम साबित हुए। 

—दीपचन्द सांखला

23 नवम्बर, 2023

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