Thursday, April 21, 2022

बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की राजनीति

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के अन्त में होने हैं और लोकसभा चुनाव 2024 के मध्य में। चूंकि हमारे प्रधानमंत्री बारह महीने सुपर-प्रचारक मोड में ज्यादा रहते हैं, इसलिए कई पार्टियां और नेता समयपूर्व तैयारी में लग गये हैं। बीकानेर जिले में सात विधानसभा क्षेत्र हैं, सातों में दोनों मुख्य पार्टियों—कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों में कोई खास बदलाव नहीं लगता। बीकानेर शहर की दोनों सीटों पर बदलाव की गुंजाइश जरूर लगती है, लेकिन इस पर कोई अनुमान फिलहाल संभव नहीं है। हो सकता है शहर की दोनों सीटों पर दोनों पार्टियां नये उम्मीदवार दें या जो वर्तमान में विधायक हैं, उन्हें रिपीट करें। बात आम आदमी पार्टी की राजस्थान में दस्तक देने की चल रही है। यह गुजरात, हिमाचल प्रदेश के नतीजें पर निर्भर करेगा और ऐसा नहीं भी हो लेकिन राजस्थान में पंजाब वाली स्थिति नहीं है। यहां भाजपा पहले से ही अच्छी स्थिति में है, ऐसे में हो सकता है आम आदमी पार्टी बजाय कांग्रेस के भाजपा को नुकसान पहुंचाए।

बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा की ओर से वर्तमान सांसद और केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल सदन में मेज थप-थपा कर और हंस-हंस कर अपनी उम्मीदवारी पक्की करने में लगातार लगे हुए हैं। यदि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व में परिवर्तन नहीं होगा तो बीकानेर से उम्मीदवारी में भी परिवर्तन नहीं होगा। अर्जुनराम मेघवाल ने जिला मुख्यालय पर अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या (13 अप्रेल) को शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा। इसी के काउण्टर में कांग्रेस के खाजूवाला विधायक और सूबे में केबीनेट मंत्री गोविन्दराम मेघवाल ने 14 अप्रेल को कार्यक्रम रख उतर-पातर कर लिया।

ऐसी रैलियों की कूत अब तक लोगों के शामिल होने की संख्या से की जाती थी, लेकिन भीड़ जब से मैनेज की जाने लगी, तब से विशेषज्ञ-कूत का पैमाना बदल गया है। अब देखा जाता है कि आपकी पार्टी से क्षेत्र के कितने नेता आपके साथ हैं।

बीकानेर क्षेत्र से लोकसभा सीट पर अर्जुनराम मेघवाल के संभावित प्रतिद्वंद्वी गोविन्दराम माने जाते हैं। ऐसे में इन रैलियों का ऑब्जरवेशन ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। अर्जुनराम मेघवाल के साथ जिले के वरिष्ठ भाजपा नेता सामान्यत: नहीं होते हैं, इसलिए अपने आयोजनों में वे केन्द्र के किसी छुटभैये मंत्री को लाकर भरपाई करते रहे हैं, चूंकि इस बार इन्हीं दिनों दिल्ली में बड़े आयोजन थे इसलिए दिल्ली से कोई आये नहीं। 13 अप्रेल की उनकी रैली में राज्यस्तरीय छोड़ जिले से भी कोई वरिष्ठ नेता नहीं थे। मतलब यही कि अर्जुनराम मेघवाल अपनी ब्यूरोक्रेटिक हेकड़ी के चलते चुनावी जीत के लिए केवल मोदी नाम पर निर्भर हैं।

वहीं इसके उलट गोविन्दराम मेघवाल की रैली में जिले के अधिकतर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शामिल हुए जिनमें सूबे के अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को भी ले आये। मतलब यही कि अर्जुनराम मेघवाल जहां पूरी तरह मोदी नाम पर निर्भर हैं वहीं गोविन्दराम मेघवाल क्षेत्र की राजनीति अपने बूते कर रहे हैं।

 दूसरी बात यह कि अर्जुनराम मेघवाल जहां अपने बेटे को राजनीति में लॉन्च करने में अभी तक असफल रहे हैं वहीं गोविंदराम अपने बेटी-बेटे दोनों को राजनीति में अच्छे से स्थापित कर चुके हैं। 

गोविन्दराम को तो बस रामेश्वर डूडी को साधना बाकी है, जिसकी गुंजाइश डूडी की हेकड़ी और बचकानी राजनीति के चलते कम लगती है।

यद्यपि पिछली बार 2019 में भी अपनी पुत्री सरिता चौहान या अपने लिए गोविन्दराम ने कांग्रेस से उम्मीदवारी की कोशिश की थी। लेकिन रामेश्वर डूडी के चलते सफल नहीं हो पाए। रामेश्वर डूडी ने जिन्हें चाहा उनके लिए उम्मीदवारी ले आए, लेकिन जिता नहीं पाये। रामेश्वर डूडी ने उम्मीदवारी दिलाई अर्जुनराम मेघवाल के रिश्ते में भाई पूर्व आईपीएस अधिकारी मदनगोपाल को। पूर्व आईएएस अर्जुनराम की ही तरह मदनगोपाल मेघवाल ने भी राजनीति में आने के लिए समयपूर्व वीआरएस लिया। अन्यथा वे एडीजी के तौर पर सेवानिवृत्त हो सकते थे।

कोशिश 2024 में भी मदनगोपाल कांग्रेस से उम्मीदवारी की करेंगे और गोविन्दराम मेघवाल से खुनस के चलते रामेश्वर डूडी भी सहयोग करेंगे। हो सकता है इस बार भी मदनगोपाल मेघवाल को उम्मीदवारी मिल भी जाए। लेकिन डूडी के बारे में जो आकलन है, और जिसे लिखता भी रहा हूं कि डूडी खुद चुनाव जीत सकते हैं, और किसी अन्य को चुनाव हरा भी सकते हैं, लेकिन किसी को जितवा भी सकते हैं—ऐसी कूवत डूडी में नहीं है, और ये भी कि गोविन्दराम मेघवाल के मुकाबले मदनगोपाल मेघवाल का प्रभाव बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में न के बराबर है। गोविन्दराम जहां एक से अधिक विधानसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके वहीं अन्य विधानसभा क्षेत्रों के विधायकों और पूर्व विधायकों से उनके अच्छे संबंध है। वहीं डूडी जिले के अन्य नेताओं से कभी अच्छे सम्पर्क बनाकर नहीं रख पाए। गोविन्दराम मेघवाल के लिए एक सकारात्मक पक्ष उनकी बेटी का स्त्री उम्मीदवार होना भी हो सकता है। वे अपनी बेटी सरिता चौहान को ही सांसद बनाना चाहते हैं जो एक अरसे से राजनीति में सक्रिय भी है। प्रियंका गांधी के फॉर्मूले को लागू किया गया तो बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से सरिता चौहान से बेहतर उम्मीदवार कांग्रेस के पास फिलहाल नहीं दिख रहा है वहीं गोविन्दराम चुनाव लडऩे-लड़वाने में पारंगत हैं ही।

—दीपचंद सांखला

21 अप्रेल, 2022

No comments: