Friday, June 11, 2021

'खलनायक' अशोक गहलोत

भारतीय मन में रचे-बसे दो महाकाव्य रामायण और महाभारत, दोनों अतुलनीय। लोक में इन दोनों के ही सैकड़ों रूप मिलते हैं। जीवन के अनगिनत आयामों को बारीकी से समझाने में सक्षम इन दोनों ही महाकाव्यों के मुख्यपात्रों को आधुनिक सिनेमाई अन्दाज से देखें तो नायक की उपस्थिति इन दोनों में मिलती है। रामायण में नायक के रूप में राम और खलनायक के रूप में रावण हैं तो महाभारत में यह बड़ा गड्ड-मड्ड है―वहां नायक केवल कृष्ण हैं और सभी पात्रों को कहीं न कहीं खलनायकी के कठघरे में खड़ा पाते हैं, कहीं-कहीं कृष्ण को भी।

वर्तमान राजनीति को देखें तो महाभारत की तर्ज पर कोई भी पात्र यहां भी खलनायकी से अछूता नहीं है। चूंकि आज के इस ‘महाभारत’ को रचने वाले ॠषि वेदव्यास नहीं है तो कृष्ण के रूप में कोई नायक भी नहीं है। इसलिए कोई राजनेता अपने को नायक साबित करता तो नहीं दिखता पर अपने बरअक्स अन्य को खलनायक साबित करने की जुगत में जरूर लगा मिलेगा, गोया बरअक्स शख्सियत को खलनायक साबित करना ही अपने को नायक साबित करना है।

हमारे बीकानेर में भी यह प्रपंच बदस्तूर जारी है। यहां यह प्रयास लगातार जारी रहता है कि बीकानेर के विकास में सबसे बड़ी बाधा अशोक गहलोत हैं―इसमें विपक्षियों से ज्यादा कांग्रेसियों की सक्रियता अधिक दिखाई देती है। अशोक गहलोत को खलनायक के तौर पर स्थापित कर देने भर से यहां के राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों की बहुत-सी मुश्किलें आसान हो जाती हैं और उनकी अक्षमताओं को आड़ भी मिल जाती है।

राज्य के इस वर्ष के बजट को ही लें, मुख्यमंत्री ने छः विश्‍वविद्यालयों की घोषणा की है, बीकानेर का नाम उनमें नहीं था। लेकिन जब बीकानेर के लिए वेटेनरी विश्‍वविद्यालय की घोषणा की गई तब किसी अन्य संभाग के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं थी, यह ना तो कांग्रेस के नेता बताते हैं और ना ही मीडिया इसका उल्लेख करता है। हां, मीडिया नागौर के लिए की गई घोषणाओं को जोधपुर के खाते में जरूर डाल देगा, यह बिना जाने कि नागौर, अजमेर संभाग में है। 

केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय का उलाहना मुख्यमंत्री को हमेशा रहेगा―विजयशंकर व्यास कमेटी की सिफारिश के बावजूद उसे अजमेर को दे दिया जाना बीकानेर के साथ अन्याय है। केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय की इस घोषणा में क्या दाबा―चींथी नहीं हुई–इसको इस तरह भी कह सकते हैं कि सचिन पायलट के सामने हमारे दिग्गज बालक हो लिए।

हमारे नेताओं ने कभी इस पर चिन्तन किया कि यहां के इंजीनियरिंग कॉलेज की जिस तरह की प्रतिष्ठा लगभग पांच वर्ष पहले थी, वैसी अब क्यों नहीं है? या यह कि उसका स्तर लगातार क्यों गिरता जा रहा है―इस तरह के कॉलेजों की प्रतिष्ठा प्लेसमेंट के लिए वहां पर आने वाली कम्पनियों और उनके द्वारा दिए जाने वाले मोटे पैकेज से तय होती है। बीकानेर का इंजीनियरिंग कॉलेज किस तरह की राजनीति का शिकार हो रहा है?

गंगासिंह विश्‍वविद्यालय आज भी किस हैसियत में है―यहां के नेताओं ने उसके लिए क्या प्रयास किये। अगर सचमुच किये हैं तो उनका रंग दिखाई क्यों नहीं दे रहा।

सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों के कितने पद खाली हैं, तकनीकी स्टाफ के कितने और अन्य कर्मचारियों के कितने पद भरे नहीं जा रहे हैं। इसकी जवाबदेही अशोक गहलोत से ज्यादा यहां के नेताओं की बनती है, उन्होंने इसके लिए अब तक क्या प्रयास किये हैं।

यहां के सरकारी स्कूलों और सरकारी कॉलेजों में कक्षाएं नियमित नहीं लगती हैं। आज से नहीं पिछले बीसेक वर्षों से स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं। क्या यह स्थानीय नेताओं की जिम्मेदारी में नहीं आता है कि इन स्थितियों को दुरस्त करवाएं। ना पुलिस महकमे में सिपाही पूरे हैं और ना ही ट्रैफिक पुलिस के पास। इन पदों को भरवाना तो दूर, उलटे पुलिस वालों का मनोबल गिराने को ये नेता नाजायज कामों के लिए दिन में कितने फोन करते हैं―इसकी सूचना तो किसी भी अधिकार के तहत हासिल नहीं की जा सकती।

रेल बायपास एक ऐसा मुद्दा है जिससे इस बीकानेर शहर का कोई भला नहीं होने वाला―इसके बावजूद यहां के नेता इस लॉलीपॉप को न छोड़ने की जिद पर अड़े हैं। 
यह भी कि देश में कहीं रेल बायपास इस बिना पर बनने का कोई उदाहरण है कि रेल लाइन शहर के बीच आ गयी है। रेल फाटकों की समस्या का समाधान रेल ओवरब्रिज-रेल अन्डरब्रिज और एलिवेटेड रोड ही हैं–यहां कि नुमाइंदगी करने वालों से विनम्र अनुरोध है कि अपने तुच्छ स्वार्थों को साधने के वास्ते जनता को गुमराह ना करें।

अशोकजी! बीकानेर में लम्बे समय से पुलिस अधीक्षक नहीं है, माध्यमिक शिक्षा आयुक्त नहीं है, पीबीएम अस्पताल में अधीक्षक नहीं है। मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और डूंगर कॉलेज में प्रिंसिपल नहीं है। यह जानते हुए भी कि आपको सात संभागों के तैंतीस जिलों को देखना होता है―लेकिन फिर भी किसी संभाग या जिले पर ध्यान देने का नम्बर कभी तो आना चाहिए! कहा भी गया है कि शासक न्यायप्रिय हो इतना ही काफी नहीं है, न्याय होता दिखना भी चाहिए।
―दीपचंद सांखला
3 अप्रेल, 2012

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