Thursday, April 8, 2021

पाती अशोक गहलोत के नाम/संदर्भ : दांडी मार्च समापन दिवस संगोष्ठी

 मान्य अशोकजी,

नहीं जानता इस पत्र को भी पढऩे का समय आप निकाल पाएंगे। हो सकता है पिछले पत्र के हश्र को यह पत्र भी हासिल हो लेगा। खैर! मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी करता हूं। इस पत्र की प्रेरणा 6 अप्रेल, 2021 को ऑनलाइन आयोजित दांडी मार्च समापन दिवस कार्यक्रम से मिली, जिसमें बीकानेर से एक प्रतिभागी में भी था। दांडी मार्च की प्रासंगिकता पर आहूत उक्त गोष्ठी में जो सुझाव देना चाहता थावह इस पत्र के माध्यम से साझा कर रहा हूं।

सनातन शब्दावली में बात करें तो गांधी और नेहरू आजाद भारत के पितृ-पुरुष हैं। इन दोनों पितृ-पुरुषों के बारे में जो झूठ और अनर्गलता आजादी बाद से संगठित और व्यवस्थित रूप से फैलाई जा रही है, सोशल मीडिया आने के बाद तो उस झूठ और अनर्गलता को पंख लग गये हैं। इसी पितृ-दोष के चलते ना केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हुआ बल्कि अब तो संवैधानिक संघीय ढांचा भी ताक पर है।

सोशल मीडिया की चपेट में आये युवकों के बीच गांधी और नेहरू को जिस तरह खारिज किया जा रहा है उसके चलते सक्रिय और मुखर आमजनों काविशेष कर नयी पीढ़ी का गांधी और नेहरू द्वारा स्थापित मूल्यों और संस्थानों पर भरोसा खत्म हो गया है। 

झूठ और अनर्गलताओं का प्रतिरोध जिस स्तर पर और जितना व्यवस्थित होना चाहिए वह हो नहीं रहा। इन सबसे चिन्तित कुछ लोग छिटपुट प्रतिरोध और खंडन-मंडन जरूर कर रहे हैं। लेकिन झूठ की गति और ताकत के सामने वह ऊंट के मुंह में जीरा भी साबित नहीं हो पा रहा। उन्हें झूठा साबित करने के लिए उनके फैलाये झूठ के खिलाफ उनसे भी तेज गति से सत्य को प्रचारित और स्थापित करना जरूरी है जो सोशल मीडिया की व्यवस्थित टीम के बिना संभव नहीं लगता।

मुख्यमंत्री के अलावा आप में एक गांधीनिष्ठ की छवि भी देखी जाती है। इसीलिए उम्मीद भी की जाती है कि शासन-प्रशासन से अलग एक व्यवस्थित अभियान की जरूरत आप समझेंगे और ऐसे अभियान के लिए गैर सरकारी स्तर पर गुंजाइश बनायेंगे।

दांडी मार्च समापन कार्यक्रम के अपने उद्बोधन में आपने 'शान्ति और अहिंसा प्रकोष्ठ' के अब तक किये कार्यक्रमों की अच्छी-खासी प्रशंसा की। लेकिन ऐसे कार्यक्रम औपचारिकता भर हैं, उनकी कैसी भी पैठ जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देती ऐसे खानापूर्ति आयोजनों से ना कुछ हासिल हुआ, ना ही होने वाला है। ऐसे आयोजनों की व्यवस्थित फीडबैक ऊपर तक पहुंचाई जाती है, जिससे आभास मात्र होता है कि बहुत कुछ सार्थक हो रहा है।

इस पत्र को लम्बा ना करते हुए 6 अप्रेल के दांडी मार्च समापन दिवस आयोजन के डिजायन की भी बात करना जरूरी लगता है। हनुमानगढ़ मूर्ति अनावरण कार्यक्रम को दांडी मार्च प्रासंगिकता वाली संगोष्ठी के साथ घालमेल नहीं किया जाना चाहिए था। दोनों कार्यक्रमों की प्रकृति भिन्न हैं। जहां मूर्ति अनावरण पब्लिक प्रोग्राम होता है, वहीं संगोष्ठी विशेष, जिसमें किसी विशेष विषय पर विमर्श कर भविष्य की दिशा तय की जाती है। उक्त संयुक्त आयोजन में हुआ यह कि शान्ति धारीवाल को अपनी उपलब्धियां गिनवानी पड़ी वहीं मंत्रीद्वय कल्ला और यादव तथा आरपीएससी के पूर्व चेयरमैन बीएम शर्मा ने भी दांडी मार्च तथा गांधी के इतिहास को बताने में बहुत समय ले लिया। इसकी जानकारी संगोष्ठी के संभागीयों को पहले से थी।

दो कार्यक्रमों के उलझन में हुआ यह कि जिला स्तर पर जुड़े संभागीयों को अपनी बात कहने का अवसर ही नहीं मिला। मिलता तो हो सकता है कुछ सार्थक बात और सुझाव निकल कर आते। इस संगोष्ठी के लिए जयपुर कलेक्ट्रेट से नन्दकिशोर आचार्य जैसे काम की बात करने वाले जुड़े थे, अन्य संभागों से ऐसे ही सुझाव देने वाले विद्वजन जुड़े होंगे।

ऐसे में अब जब आपके इस कार्यकाल का आधा ही समय बचा है, उम्मीद है गांधी और नेहरू के खिलाफ फैलाये जा रहे झूठ और अर्नगलता के बरक्स आप ऐसा कुछ करवा पायेंगे जो सोशल मीडिया पर स्थायी प्रभाव छोड़ सके।

दीपचन्द सांखला

8 अप्रेल, 2021

2 comments:

SHYAM NARAYAN RANGA said...

सही और सटीक बात, जिस उद्देश्य और भाव से गांधी जीवन दर्शन की स्थापना की गई थी वह पूरा होना जरूरी है और गांधी तथा नेहरू की छवि को सही रूप में भावी पीढ़ी के सामने रखना जरूरी है

SHYAM NARAYAN RANGA said...

सही और सटीक बात, जिस उद्देश्य और भाव से गांधी जीवन दर्शन की स्थापना की गई थी वह पूरा होना जरूरी है और गांधी तथा नेहरू की छवि को सही रूप में भावी पीढ़ी के सामने रखना जरूरी है