Thursday, October 17, 2019

बाजार और सड़कों पर हक केवल समर्थ दूकानदारों का ही नहीं

ये विकास के शहरी मॉडल के दुष्परिणाम हैं या कुछ और कि शासन-प्रशासन तो छोड़ियेआम आदमी भी निष्ठुर हो लिया है। हम स्वार्थ के संकुचित होते वलय में फंसते जा रहे हैं। आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक व्यापार ने जहां रोजगार के अवसर लगातार घटाये हैं, वहीं समर्थ होता प्रत्येक नागरिक निज और अपनों में ही सिमटता जा रहा है।
बीकानेर के सन्दर्भ से बात करे तों स्ट्रीट वेन्डर्स एक्ट 2014 के बावजूद जूनागढ़ के सामने वाले चाट बाजार को पहले अचानक बन्द किया गया। संगठित विरोध हुआ तो इसे अन्यत्र स्थापित कर दिया। इससे पूर्व भी महात्मा गांधी रोड (जिसे केइएम रोड के नाम से भी जाना जाता है) पर महीने के आखिरी रविवार को लगने वाले फुटपाथ बाजार को अव्यवस्था के नाम पर बन्द करवा दिया गया। माह में मात्र एक दिन लगने वाला यह बाजार इतना रोशन हो लिया था कि वह हजारों के रोजगार का ना केवल माध्यम बन गया था बल्कि सुनते यह भी हैं कि कुछ दुकानदारों और पुलिस वालों के लिए भी अतिरिक्त कमाई का माध्यम था। हालांकि सभी दुकानदार ऐसी अनैतिक वसूली नहीं भी करते होंगे। अनैतिक इसलिए कहा कि फुटपाथ और सड़क पर लगने वाले हाट बाजारों से कुछ वसूलने का हक बनता है तो केवल नगर निगम कावह भी तब जब उसकी जाग खुले।
दरअसल व्यापारियों को यह परेशानी तब होने लगी जब उनके स्वार्थ लालच में बदलते गये। श्रम कानून के अनुसार दुकानों के लिए साप्ताहिक अवकाश का प्रावधान है। लेकिन मॉल और 24×7 की नयी आयी व्यापार संस्कृति ने उसमें से इस बिना पर छूट का रास्ता निकाल लिया कि वे बिना व्यवसाय को बन्द किये कार्मिकों को बारी बारी से अलग-अलग दिन अवकाश देंगे और 24 घंटे की पारी व्यवस्था में किसी कर्मचारी से 8 घण्टे से ज्यादा काम नहीं लेंगे। कॉरपोरेट कल्चर ने प्रतिदिन के काम का लक्ष्य तय कर राज की मॉनीटरिंग को ही धता बता दिया। इस सब के चलते हुआ यह कि श्रम विभाग की जरूरत ही खत्म हो गई, श्रम निरीक्षकों की अतिरिक्त कमाई भी।
महात्मा गांधी रोड के मासिक बाजार के बन्द होने की बात करना और बताना जरूरी लगा इसलिए उक्त जानकारी दी है। महात्मा गांधी रोड पर कुछेक दुकानों को छोड़ दशकों से रविवार को ही बाजार बन्द रहता आया था। लालच की लपेट में छूट का दायरा बढ़ता गया। हुआ यह कि तीसों दिन बाजार खुलने लगा। इससे उक्ताए व्यापारियों ने तय किया कि माह में कम से कम एक आखिरी रविवार को पूर्ण बन्द रखेंगे। बेरोजगारों ने इसी एक दिन में अपनी गुंजाइश देखी और आखिरी रविवार को पूरे रोड पर बाजार सजने लगा। ना केवल शहरी बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी खरीददारी के लिए एमजी रोड पर इस दिन जुटने लगे थे। कुछ लोग परसुख में दुखी होते हैं, लालच में दुकानें खुलने लगी तो फुटपाथी वेण्डर्स और दुकानदारों में बोलचाल होने लगी। थड़ी बाजार वालों ने भी आखिरी रविवार को फुटपाथ पर अपना हक मान लिया! पिछले राज तक तो वे हटे नहीं। सूबे में ज्यों ही नई सरकार आयी, प्रशासन ने सख्ती से इन्हें बेदखल कर दिया। सुनते यही हैं कि डॉ. बीडी कल्ला पर दुकानदारों ने दबाव बनाया और उन्होंने प्रशासन पर। इस तरह हजारों को रोजगार से एक झटके में उजाड़ दिया। जूनागढ़ के सामने के चाट बाजार वालों की तरह एमजी रोड के वेण्डर्स भी एका दिखाते तो ना दुकानदारों की चलती और ना ही कल्लाजी की। कल्लाजी इस बात से शायद वाकिफ नहीं हैं कि महात्मा गांधी रोड के आधे से ज्यादा दुकानदार उनके वोटर नहीं हैं। हों और ना हों तो भी उनके क्या फर्क पड़ताउन्हें चुनावी चन्दा तो व्यापारी ही देते हैं।
अव्यवस्था के तर्क में दम इसलिए नहीं है कि फिर पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारियां क्या है? यही ना कि थड़ी बाजार की सीमाएं तय कर उन्हें उसी में रहने को वे पाबन्द करते। देश की राजधानी दिल्ली के व्यस्ततम चांदनी चौक में तथा राजस्थान की राजधानी जयपुर के जौहरी बाजार में भी वर्षों से महीने के तीसों दिन इसी तरह के थड़ी बाजार लग ही रहे हैं।
खैर! आज यह बात कहने की जरूरत इसलिए पड़ी कि कल ही सोशल साइट्स पर किसी ने लिखा है कि कोटगेट, स्टेशन रोड, महात्मा गांधी रोड पर दीपावली के तीन दिनों में सड़कों पर लगने वाले बाजार को इस बार नहीं लगने दिया जायेगा। क्यों भाई? बाजार के फुटपाथ और सड़कों पर हक सभी का और तब और भी ज्यादा जब दीपावली के दिनों में बाजार में दुपहिया वाहनों के आवागमन को भी रोक दिया जाता है। कितने लोग दो पैसे की मजूरी के लिए ऐसे दिनों का इंतजार करते हैं, यहां तक कि दीवाली पर धंधे की गरज से राजस्थान के विभिन्न हिसों के अलावा यूपी, पंजाब, मध्यप्रदेश तक के फेरीवाले बीकानेर पहुंचते हैं और वे दुकान लेकर वहीं तो बैठना चाहेंगे जहां ग्राहक की आमदरफ्त है।
उनकी मजदूरी के यदि सभी रास्ते समर्थों के दबाव में बन्द कर देंगे तो उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए कुछ तो करना होगा। सम्मानजनक नौकरी के अवसर लगातार कम हो रहे हैं। ऐसे में युवा चोरी-चकारी, छीना-झपटी, मारकाट और रंगदारी की ओर प्रवृत्त नहीं होंगे तो जीएंगे कैसे? यह सब कहने का मकसद ऐसी बदमगजियों का समर्थन नहींं। वरन् केवल उदारता से विचारने का निवेदन भर है।
—दीपचन्द सांखला
17 अक्टूबर, 2019

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