Thursday, June 20, 2019

कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या और डॉ. कल्ला के ढोंग

पिछले सप्ताह के अपने शहर प्रवास में बीकानेर पश्चिम विधायक और सूबे की सरकार के वरिष्ठतम मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या के समाधान के लिए उच्चस्तरीय बैठक की। इसमें जिला कलक्टर के अलावा बीकानेर मण्डल के रेल प्रबन्धक भी थे। डॉ. कल्ला उक्त समस्या का कारण शहर के बीच से गुजरने वाली रेलवे लाइन को मानते हैं। अपनी मिल्कीयत की जमीन से रेलगाडिय़ां गुजारने वाली रेलवे की हर संभव यह कोशिश रहती है कि गाडिय़ों के ज्यादा आवागमन से आम शहरियों को तकलीफ ना हो। इसीलिए सूरतगढ़ थर्मल पॉवर को जाने वाली कोयला-गाडिय़ों को शहर के बीच की बजाय रेलवे वाया जोधपुर-फलौदी-लालगढ़ ट्रेक से गुजारता है। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जहां आबादी क्षेत्र के बीच से रेलवे लाइन ना गुजरती हो। इसलिए डॉ. कल्ला को पहले तो यह समझना जरूरी है कि कोटगेट क्षेत्र की समस्या ना रेलवे लाइन से है और ना ही रेलफाटकों की। समस्या है क्षेत्र से गाडिय़ां गुजरने पर रेलवे का अपनी मिल्कीयत की जमीन से गुजरने वाली सड़कों के फाटक बंद कर शहरी यातायात को रोकना और उससे बाधित होकर जाम का लगना। अन्य शहरों के जो सयाने, समझदार और जागरूक थे, उन सबने इसे समझा और अण्डरब्रिज, ओवरब्रिज और एलिवेटेड रोड में से जो भी व्यावहारिक समाधान लगा, उसे अमली जामा पहना कर यातायात की इस समस्या निजात पा ली।
इस समस्या के समाधान के ढोंग के साथ डॉ. कल्ला यहां की जनता को गुमराह करने से भी नहीं चुकते। डॉ. कल्ला ने हाल ही के अपने ताजा बयान में बताया कि रेलवे बायपास के लिए तैयार है। लेकिन डॉ. कल्ला ये छुपा गये कि रेलवे राज्य सरकार के उक्त प्रस्ताव में अपनी आपत्तियों के निराकरण के बाद ही बायपास बनाने को तैयार होगा जिसमें रेलवे की अपनी शर्तें भी शामिल हैं। इसमें रेलवे शहर से गुजरने वाले टे्रक को हटायेगा नहीं और सवारी गाडिय़ों को यहीं से गुजारेगा, बायपास की ओर केवल मालगाडिय़ों को ही डायर्वट करेगा। डॉ. कल्ला के हाल ही के बयान में यह भी बताया गया कि वे जिस प्रस्ताव की बात करते हैं उसमें बायपास गाढ़वाला तक प्रस्तावित है। जबकि राज्य सरकार के 2003 के प्रस्ताव में यह बायपास उदयरामसर तक ही चाहा गया है। जबकि राज्य सरकार के उक्त प्रस्ताव में उदयरामसर से गाढ़वाला के बीच 16 किलोमीटर के फासले पर कोई बात नहीं की गई। रेलवे को यह भी आपत्ति थी बायपास के इस हिस्से के निर्माण का खर्च भी राज्य सरकार को ही उठाना होगा।
लेकिन हमारा शहर अजूबा है और इस शहर के हम बाशिन्दें मासूम। शहर से रेलवे लाइन गुजरने से यातायात समस्या पर 30 वर्षों से उद्वेलित हैं। हम विवेकहीन इस समस्या को कुछ जिदों के चलते भुगत रहे हैं।
जनता परेशान है। शासन-प्रशासन, नेता-विधायक जनाता की इस परेशानी से वाकिफ हैं या नहीं, नहीं पता। प्रजा संतोषी हो तो राज और नेताओं को पोल मिल जाती है, शायद यही हो रहा है यहां।
1998 से 2003 तक डॉ. बीडी कल्ला सूबे की सरकार में मंत्री थे, पता नहीं किन निहित स्वार्थों के चलते उन्होंने रेल बायपास जैसे सर्वथा अव्यावहारिक समाधान का प्रस्ताव रेलवे को भिजवाया। वह अस्वीकार होना था, हुआ भी।
उत्तर-पश्चिम रेलवे ने 19.01.2005 को रेलवे बोर्ड को लिखे अपने पत्र क्रमांक NWR/S&C/W.623/BKN Bypass के माध्यम से राजस्थान सरकार के उक्त प्रस्ताव को व्यावहारिक ना मानते हुए 'पिंकबुक' से हटाने की अनुशंसा कर दी। उल्लेखनीय है कि इस कवायद के समय केन्द्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ही थी। इसलिए डॉ. कल्ला यह नहीं कह सकते कि केन्द्र में भाजपानीत सरकार थी इसलिए ऐसा हो गया।
बाद इसके 2006-07 में सूबे की भाजपा सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए एलिवेटेड रोड का प्रस्ताव तैयार करवाया और जनता की स्वीकृति के लिए उसका मॉडल शहर में भी प्रदर्शित किया। राजस्थान पत्रिका के तब के सर्वे में 98 प्रतिशत जनता ने एलिवेटेड रोड के पक्ष में अपनी राय दी। कुछ नासमझ व्यापारियों के विरोध और चुनाव सामने देख तत्कालीन भाजपाई मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनकी सरकार इस योजना पर एकबारगी मौन हो गई।
2008 से 2013 तक केंद्र और राज्य, दोनों जगह कांग्रेसनीत सरकार होने के बावजूद डॉ. कल्ला ने इस समाधान के लिए कुछ किया है तो वे बताएंगे ही, वे चाहते तो उस दौरान सक्रिय हो कर कुछ करवा सकते थे। इस बाबत डॉ. कल्ला ने कोई पत्र भी दोनों सरकारों को लिखा है तो बताएं। इसी से जाहिर होता है कि डॉ. कल्ला को इस शहर से कोई लगाव नहीं, सिवाय राज भोगने के।
2013 में सूबे में फिर वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा सरकार आ गई, एलिवेटेड रोड की कवायद फिर शुरू हुई। लेकिन अब बीकानेर पश्चिम के भाजपा विधायक गोपाल जोशी आडे आ गये, चूंकि यह रोड उनके होटल और दुकान के आगे से गुजरनी थी सो बड़ी चतुराई से इस प्रोजेक्ट को NHAI के सुपुर्द इसलिए करवाया ताकि शहरी सड़क की यह योजना न्यायालय में उलझ कर रह जाय, वही हुआ भी। जनता को बताया जा रहा है कि मामला कोर्ट में उलझा है। असल बात यह है कि कोर्ट को एलिवेटेड रोड से एतराज नहीं है, शहर के बीच से नेशनल हाइवे को गुजारने से एतराज है। राज्य सरकार चाहती तो मात्र 80-100 करोड़ के इस छोटे से प्रोजेक्ट को अपने बजट से किसी लोकल एजेंसी से खुद पूर्ण करवाती, इतने छोटे बजट के लिए क्यों केंद्र की ओर देखा और उलझाया गया। लगता है ऐसा पूर्व विधायक गोपाल जोशी की बात रखने के लिए जान-बूझकर किया गया।
वर्तमान विधायक और राज्य सरकार में मंत्री डॉ. बीडी कल्ला इस समस्या के समाधान को अंधेरी सुरंग में फंसाने को फिर सक्रिय हो गए हैं, 2005 में रेलवे ने अव्यावहारिक मानकर जिस बायपास को पूरी तरह खारिज कर दिया था। डॉ. कल्ला उसका राग फिर अलापने लगे हैं। हो सकता है उन्हें लगता हो कि यह योजना सिरे तो चढ़ेगी नहीं, केंद्र में भाजपा सरकार पर भूंड का ठीकरा फोडऩे का यह अच्छा अवसर है। डॉ. कल्ला के लिए यह एक टिकट में दो मजे जैसा है। बायपास की डॉ. कल्ला की जिद वैसी ही बचकानी है जैसे कोई बच्चा चांद को हासिल करने की जिद करे।
नोट : जो यह कहते रहे हैं कि प्रस्तावित रेल बायपास के इर्द-गिर्द डॉ. बीडी कल्ला के परिजनों की बहुत सारी जमीनें है, डॉ. कल्ला उनका लाभ उठाने के लिए ही बायपास बनवाना चाहते हैं, ऐसे लोग प्रमाणों के साथ ही अपनी बात रखें।
—दीपचन्द सांखला
20 जून, 2019

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