पिछले सप्ताह सोशल साइट्स पर 2003 में फिल्माया एक वीडियो वायरल हुआ। सनसनी और मारकाट से भरपूर लगभग साढ़े पांच
मिनट के इस वीडियो के ना केवल स्क्रिप्ट राइटर बीकानेर के हैं बल्कि मुख्य किरदार
भी बीकानेर से ही हैं। राजस्थान सरकार के वर्तमान गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया तो
मेहमान कलाकार के तौर पर धक्के धिंगाणिया चढ़ गये। वीडियो फिल्मांकन की लोकेशन
बीकानेर की कोलायत तहसील का प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र परिसर है। कोलायत दबंग
राजनेता देवीसिंह भाटी का 'एरियाÓ माना जाता है। लगभग चालीस वर्षों से क्षेत्र
में देवीसिंह के दबदबे का जिक्र इस तरह किया जाता है कि बगैर उनकी इच्छा के कोई
परिन्दा वहां पर भी नहीं मार सकता। यद्यपि उनकी उम्र के तकाजे और दुर्घटनाओं में
दोनों पुत्रों को खो देने के बाद पिछले कुछ वर्षों में उनके इस दबदबे में कुछ कमी
आ गई। उसी का परिणाम था कि क्षेत्र में अजेय माने जाने वाले देवीसिंह भाटी 2013 का विधानसभा चुनाव भाजपा उम्मीदवार के तौर पर 'मोदी-मोदीÓ माहौल के बावजूद हार गये।
देवीसिंह क्षेत्र की राजनीति में सुर्खियों में 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान आए। तब वे जनता पार्टी उम्मीदवार
चौधरी हरीराम मक्कासर के साथ मानिकचन्द सुराना के कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय
हुए। बाद में भाटी जनता दल से होते हुए भारतीय जनता पार्टी में पहुंच गए। बीच में
तुनककर सामाजिक न्याय मंच नाम से क्षेत्रीय पार्टी भी बनाई—लेकिन फिर भाजपा में लौट गए। उक्त वीडियो का समय देवीसिंह
के उसी तुनककाल का है जब वे सामाजिक न्याय मंच से भाजपा के खिलाफ ताल ठोक चुके थे।
सामाजिक न्याय मंच की स्थापना देवीसिंह ने भाजपा में रहते सामाजिक संगठन के तौर पर
की और पार्टी में रहते हुए वे कोलायत के कपिल सरोवर में उग आयी जलखुंभी की आड़ में
कमल को उखाड़ फेंकने की बात सार्वजनिक मंचों से करने लगे थे। 2003 के विधानसभा चुनावों से पहले अपने सामाजिक
संगठन को राजनीतिक पार्टी में परिवर्तित कर लिया और कोलायत की राजनीतिक बिसात से
कमल को एकबारी तो सचमुच उखाड़ दिया।
'कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना' वाले अपने उस आह्वान के चौदह वर्ष बाद उन्होंने पिछले वर्ष ही सरोवर से असल
कमल बेलों को उखाडऩे की सुध ली। हालांकि पानी आते ही वह जलखुंभी लौट आई है,
भाटी चाहे तो उसे उखाडऩे का द्विअर्थी आह्वान
फिर से कर सकते हैं। लेकिन राज्यसभा में जाने की हाल की उनकी खेचळ ने जाहिर कर
दिया है कि मगरे का शेर अपने को बूढ़ा और असहाय मानने लगा है। मगरा, कोलायत क्षेत्र की भौगोलिक पहचान है।
देवीसिंह के इस व्यक्तित्व बखान का मकसद यही है कि लोक में इस धारणा की पुष्टि
कर सकते हैं कि उस वीडियो की स्क्रिप्ट और निर्देशन देवीसिंह भाटी कैम्प का ही था।
वीडियो में जो चार नाम—नरेन्द्र पाण्डे,
सुरेन्द्रसिंह, विष्णु जोशी और जेठूसिंह के चश्मदीदों द्वारा लिए जा रहे
हैं, ये चारों युवा तब
देवीसिंह कैम्प में ही थे। नरेन्द्र पाण्डे तो उसी दुर्घटना में दिवंगत हुए जिसमें
देवीसिंह भाटी के बड़े बेटे पूर्व सांसद महेन्द्रसिंह हुए। विष्णु जोशी और
जेठूसिंह वहीं रहे हैं जहां देवीसिंह भाटी रहे। एबीवीपी के सुरेन्द्रसिंह शेखावत
हैं जो 2003 में एक ही वर्ष भाटी के
साथ सामाजिक न्याय मंच में रहे और भाजपा में लौट आए। शेखावत आज उन बिरले संजीदा
भाजपाई नेताओं में से हैं जो पढऩे-लिखने में विश्वास करते हैं। वीडियो देख जब एक
पत्रकार मित्र से पुष्टि करनी चाही कि ये सुरेन्द्रसिंह कौन से हैं तो उन्होंने इस
क्रेडिट लाइन के साथ पुष्टि की कि यह 'वाल्मीकि' सुरेन्द्रसिंह
शेखावत ही हैं। मतलब दबंगई से राजनीति शुरू करने वाला कोई युवक संजीदा हो ले तो
उन्हें यूं वाल्मीकि भी कहा जा सकता है।
किसी न्यूज चैनल के स्टिंगर द्वारा वीडियो कैमरे से फिल्माए इस वीडियो को अब
पन्द्रह वर्ष बाद वायरल करने का मकसद तो करने वाला ही वही जाने—लेकिन इसकी टाइमिंग के अपने निहितार्थ हैं। हर
तरह से मन से लगभग हार चुके देवीसिंह भाटी के बारे में जो सुनते हैं कि वे पार्टी
उच्च पदस्थों में अपने एक मात्र खैरख्वाह राजनाथसिंह के माध्यम से हाल ही में हुए
राज्यसभा चुनावों में उम्मीदवारी पाकर अपने को सम्मानजनक स्थिति में पुन: पा लेना
चाहते थे। हो सकता है वीडियो वायरल करने वाले का मकसद इसके माध्यम से देवीसिंह
भाटी के लिए बाधा पैदा करना ही हो।
एक बार हार जाने और अजेय की छाप हटने से भाटी को शायद लगता हो कि 2018 के चुनाव में वे फिर हार गये तो दाग इतिहास का
हिस्सा बन जायेगा। पोते अंशुमानसिंह की उम्र चुनाव लडऩे की अभी हुई नहीं सो खुद ना
लडऩे का पुख्ता बहाना भी नहीं है। बीकानेर पूर्व से उनकी दावेदारी सिद्धिकुमारी के
होते पार्टी शायद ही स्वीकारे।
खैर, वीडियो वायरल करने वाले
का मकसद भले ही कुछ भी हो, इस वीडियो को
देखने और गत पन्द्रह वर्षों की स्थानीय राजनीति पर नजर डालने पर यह तो समझ आ ही
रहा है कि ये नेता लोग पार्टियों के नाम पर जनता को सिर्फ मूर्ख बनाते हैं और अपने
स्वार्थ साधते हैं।
देवीसिंह भाटी खुद 2008 में चुनावों से
पहले भाजपा में लौट आए और उक्त घटना के सभी आरोपियों पर से मुकदमें हटवा लिए।
वीडियो में कटारिया की ढाल बने गोपाल गहलोत ने अपनी दबंगई देवीसिंह की छत्रछाया
में शुरू की। संघ के द्वारिकाप्रसाद तिवाड़ी की रहनुमाई में भाजपा में नन्दू
महाराज के साथ राजनीति शुरू की। हित टकराए तो देवीसिंह भाटी से दो-दो हाथ करने से
नहीं चूके और 2013 के पिछले
विधानसभा चुनावों से पूर्व तक 'स्वयंसेवक'
रहे गोपाल गहलोत कांग्रेस में आकर बीकानेर
पूर्व की उम्मीदवारी पा गए। उस वीडियो के दूसरे नायक दीपक अरोड़ा ने गोपाल गहलोत
की रहनुमाई से दबंगई शुरू की और राजनीति करते हुए गहलोत के साथ ही कांग्रेस में आ
लिए। अरोड़ा अब गोपाल गहलोत के समानांतर बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से ही
पंजाबी कोटे से कांग्रेस के टिकट की उम्मीद पाले हुए हैं। वहीं संजीदा हो लिए 'वाल्मीकि' सुरेन्द्रसिंह शेखावत भाजपा में सिद्धिकुमारी के विरुद्ध
उम्मीदवारी की मंशा रखते हैं। वैसे देवीसिंह भाटी चाहें तो सिद्धिकुमारी से अपना
कोई हिसाब चुकता करने के लिए पार्टी में सुरेन्द्रसिंह शेखावत की पैरवी कर सकते
हैं।
जनता को अपनी मासूमियत को भुगतना है सो भुगतती रहे। ये नेतालोग उसे मूर्ख
मानकर अपने-अपने स्वार्थ साधते रहेंगे।
—दीपचन्द सांखला
15 मार्च, 2018
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