Thursday, November 24, 2016

इतना कुछ कर सकते हैं न्यास के नये अध्यक्ष महावीर रांका

जैसी कि सरकारों की फितरत बन चुकी है, राजनीतिक नियुक्तियां सरकार बनने के दो-दो, तीन-तीन वर्ष तक नहीं की जाती और जब की जाती है तो नियुक्त होने वाले के पास इतना समय ही नहीं बचता कि वह कुछ कर दिखाए। इतने में चुनाव आ लेते हैं, जनता सरकार पलट देती है और नयी सरकार इन राजनीतिक नियुक्तियों को रद्द कर देती है।
बड़ी और लम्बी ऊहा-पोह के बाद बीकानेर नगर विकास न्यास के अध्यक्ष के रूप में युवा भाजपा नेता महावीर रांका को सरकार ने नियुक्त कर दिया। इस नियुक्ति ने कम से कम उन आशंकाओं पर रोक लगा दी कि केवल धनबल के आधार पर कुछ बिल्डर और भू-माफिया बिना लम्बी पार्टी सेवा के इस नियुक्ति की फिराक में हैं। महावीर रांका व्यवसायी भले ही हों लेकिन न केवल लम्बे समय से पार्टी में हैं, बल्कि विभिन्न पदों पर लम्बी सेवाएं भी दे चुके हैं।
रांका चाहें तो कुछ आधारभूत काम करके अपने कार्यकाल को यादगार बना सकते हैं। अगले चुनावों में सरकार बदलती भी है तो इनके पास दो वर्ष से ज्यादा का समय है। अपनी नियुक्ति के बाद जैसा कि रांका ने कहा कि वे खेमेबन्दी से ऊपर उठकर सभी के सहयोग से काम करेंगे। ऐसी मंशा यदि सचमुच है तो उन्हें पार्टी में सभी गुटों को मान देने और इतना ही नहीं, जरूरत पड़े तो विपक्ष के प्रभावी नेताओं का सहयोग-सुझाव हासिल करने में संकोच नहीं करना चाहिए। रांका की नियुक्ति के बाद उनके लिए एक सकारात्मक बात जो सुनने को मिली वह यह कि यह पद उन्होंने धन बनाने की नीयत से तो हासिल नहीं ही किया हैऐसा सुनना आज की व्यावहारिक राजनीति में कम साख की बात नहीं है। नगर विकास न्यास के दफ्तर की जैसी भी साख है, माना यही जाता है कि नगर निगम के दफ्तर से तो बेहतर ही है।
अध्यक्ष के तुच्छ व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं हो और आम जनता के लिए कुछ करने की सदिच्छा हो तो बहुत कुछ करने के रास्ते निकल आते हैं। उम्मीद करते हैं कि रांका चतुराई से उन सभी अबखाइयों को साध लेंगे जो कुछ कर गुजरने में बाधा बन सकती हैं।
महावीर रांका अपने कार्यकाल को यादगार बनाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ ऐसे काम कर दिखाने चाहिए जिससे शहर कुछ राहत महसूस करे। सुन रहे हैं कि सूबे की मुखिया वसुंधरा राजे अपने इस कार्यकाल के तीन वर्ष पूर्ण होने पर अगले माह बीकानेर आ रही हैं। इस अवसर का विशेष लाभ उठाने की चतुराई दिखाने के वास्ते रांका को कुछ विशेष सक्रियता दिखानी होगी ताकि यह शहर तयशुदा से कुछ ज्यादा हासिल कर सके। इसके लिए वे निम्न सुझावों पर विशेष सक्रिय हो सकते हैं।
     शहर की सबसे बड़ी समस्या कोटगेट क्षेत्र में रेलफाटकों के चलते बार-बार बाधित होने वाले यातायात की है। इसके समाधान के लिए एलिवेटेड रोड पर शहर में एकराय बनने के बाद राज्य सरकार ने भी कुछ माह पूर्व इसे स्वीकार कर लिया और इस योजना के लिए धन की व्यवस्था भी केन्द्र सरकार ने कर दी थी। सुन रहे हैं कि परियोजना को अमलीजामा पहनाने की प्रक्रिया में अनावश्यक देरी हो रही है। यह काम न्यास को मिले या न मिले, न्यास अध्यक्ष रांका को यह कोशिश जरूर करनी चाहिए कि इसके शिलान्यास की रस्म भी मुख्यमंत्री के हाथों उनकी इसी यात्रा में अदा हो जाए।
     गंगाशहर रोड को जैन पब्लिक स्कूल से मोहता सराय तक जोडऩे वाली सड़क का कार्य पिछले लगभग चार वर्षों से अधर में लटका हुआ है। इसकी बाधाओं को व्यक्तिगत प्रयासों से दूर करवा कर, संभव हो तो इसका उद्घाटन और बीकानेर शहर एवं देहात भाजपा के इसी मार्ग पर बनने वाले पार्टी कार्यालय का शिलान्यास भी मुख्यमंत्री से इसी यात्रा में करवाया जा सकता है। शहर के अन्दरूनी भाग और मोहता सराय क्षेत्र को बीकानेर रेलवे स्टेशन और पीबीएम अस्पताल आदि से जोडऩे वाले इस मार्ग की बहुत जरूरत है।
     चौखूंटी रेल ओवरब्रिज के दोनों ओर की चारों सर्विस रोड बल्कि निगम भण्डार की ओर की दोनों सर्विस रोडें आवागमन योग्य नहीं हैं, इन्हें दुरुस्त करवाना जरूरी है। निगम भण्डार की ओर भण्डार की दीवार को तो पीछे करवाना ही है, कुछ मकानों के कुछेक हिस्सों का अधिग्रहण भी किया जाना है। यह काम इसलिए भी जरूरी है कि इस पुलिया के दोनों ओर कई समाजों के शमशान गृह हैं जिनमें से अधिकांश तक जाने के लिए पुलिया के नीचे से होकर ही जाना होता है। ये काम मूल परियोजना का ही हिस्सा थे लेकिन लगभग तीन वर्ष होने को हैं और वहां के बाशिन्दों को उनकी नियति पर ही छोड़ दिया गया है।
     भुट्टों के चौराहे से लालगढ़ रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाले मार्ग को यातायात के लिए सुगम बनाने के वास्ते पूर्व न्यास अध्यक्ष मकसूद अहमद के समय योजना बनी थी। मकसूद अहमद की नाड़ कमजोर थी जिसके चलते ना केवल पूर्व कलक्टर और पदेन न्यास अध्यक्ष पृथ्वीराज के समय की जैन पब्लिक स्कूल-मोहता सराय वाली उक्त उल्लेखित सड़क को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया बल्कि खुद उनके समय बनी भुट्टों के चौराहे होकर लालगढ़ स्टेशन को जाने वाली सड़क के दुरुस्तीकरण की योजना पर भी मकसूद अहमद को सांप सूंघ गया था। पूर्व योजना अनुसार इस सड़क की चौड़ाई सौ फीट करने पर एतराज कुछ ज्यादा है तो अस्सी फीट पर मुहल्ले वालों को इस बिना पर राजी किया जा सकता है कि इस मार्ग के सुचारु होने से उसके इर्द-गिर्द वाले भवनों-जमीनों की वकत और कीमत कई गुना बढ़ जायेगी। यह मार्ग सुगम होता है तो बीकानेर के मध्य और पश्चिम के बाशिन्दों के लिए लालगढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचने का मार्ग लगभग चार किलोमीटर कम हो जाएगा।
     रानी बाजार क्षेत्र में बंगाली मन्दिर को रानी बाजार पुलिया से जोडऩे वाली सड़क के अतिक्रमण हटाने से यह मार्ग सुगम हो जायेगा और रानी बाजार रेलवे क्रॉसिंग की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर यातायात का भार भी कम होगा। इतना ही नहीं, गोगागेट से रानी बाजार पुलिया की ओर जाने वाले यातायात के समय की बचत भी होगी। वैसे यहां के संस्कृत महाविद्यालय और शर्मा कॉलोनी क्षेत्र को देखने की जरूरत विशेष तौर से है। सर्वाधिक चौड़े मार्गों वाली इस रियासती कॉलोनी के बाशिन्देे अतिक्रमण करने की ऐसी होड़ में लगे हैं कि अपने घर के आगे की सड़क को ज्यादा संकरा कौन करता है और न्यास व निगम दोनों ही इस ओर से आंखें मूंदे हैं।
     गंगाशहर क्षेत्र में बहुत व्यस्थित बसी नई लाइन में अतिक्रमण लगातार हो रहे हैं। खासकर बड़े-बड़े चौकों का विभिन्न तरीकों से अतिक्रमण कर सौन्दर्य नष्ट किया जा रहा है, उन्हें हटाना जरूरी है। वहीं गंगाशहर के मुख्य चौराहे से गुजरना बहुत टेढ़ा काम है। यहां के सब्जी बाजार और टैक्सी स्टेण्ड को पास ही के गांधी चौक और इन्दिरा चौक में स्थानान्तरित किया जा सकता है। इसी तरह पुरानी लाइन, सुजानदेसर, किसमीदेसर और भीनासर में बेतरतीब चौक जैसे भी हैं उनकी पैमाइश कर रिकार्ड बनाना इसलिए जरूरी है कि वहां नए अतिक्रमण ना हो सकें, जो अतिक्रमण हैं उन्हें बिना लिहाज हटाया जाना चाहिए।
     बीकानेर शहर के बीचों बीच आई रेल लाइन को आम शहरी बहुत भुगतता है। इसके लिए महात्मा गांधी रोड पर बनने वाले एलिवेटेड रोड के अलावा भी बहुत कुछ करना जरूरी है। इसमें रानी बाजार रेलवे फाटक पर अण्डरब्रिज बनाने की लम्बे समय से चली आ रही मांग वहां के बाशिन्दों के प्रयासों से कुछ सिरे चढ़ी है। हालांकि यह योजना सार्वजनिक निर्माण विभाग के जिम्मे आनी है लेकिन नवनियुक्त न्यास अध्यक्ष रांका को इसके क्रियान्वयन में रुचि दिखानी चाहिए। अलावा इसके रांका को रेलवे से सामंजस्य बिठा कर अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में ही उन्हें शहरी क्षेत्र में चार अण्डरब्रिज बनाने का बीड़ा उठाना चाहिए। ये अण्डरब्रिज अब कोई बड़ी लागत नहीं खाते हैं और रंग चोखा इसलिए देंगे कि रेलवे लाइन के दोनों ओर रहने वाले लोग उन्हें लम्बे समय तक याद रखेंगे। ये चार अण्डरब्रिज निम्न स्थानों पर बनाए जा सकते हैं 1. लालगढ़ रेलवे हॉस्पिटल के सामने 2. चौखूंटी फाटक के पास लालगढ़ स्टेशन की ओर 3. सुभाष रोड से बड़ी कर्बला की ओर 4. सांखला फाटक पर कोयला गली की ओर केवल पैदल और दुपहिया वाहनों के लिए बनाया जा सकता है। एलिवेटेड रोड के बावजूद यह अण्डर ब्रिज रेल फाटक बन्द होने पर दोनों ओर के बाजार में खरीददारों के आवागम को सुचारु रख सकेगा।
इसी तरह, भले ही काम शुरू ना होदो रेल ओवरब्रिज की योजनाएं बनाकर बजट के लिए न्यास को केन्द्र और राज्य सरकारों को भिजवानी चाहिए जिसमें पहला रेल ओवरब्रिज पवनपुरी शनिश्चर मन्दिर से रानी बाजार-केजी कॉम्पलेक्स तक और दूसरा नागनेची-मन्दिर मरुधर कॉलोनी से रानीबाजार इण्डस्ट्रियल एरिया तक। न्यास अध्यक्ष को ये भी पड़ताल करनी चाहिए कि रामपुरा-लालगढ़ रेलवे क्रॉसिंग पर घोषित रेल ओवरब्रिज कहां अटका है।
     'सरकार आपके द्वार' के समय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गजनेर पैलेस में कुछ संपादकों-पत्रकारों से शहरी विकास के लिए सुझाव चाहे थे। तब अन्य सुझावों के साथ सूरसागर को लेकर दिए गये एक सुझाव पर मुख्यमंत्री सहमत हुईं और बातचीत में उन्हें समझ आ गया था कि सूरसागर को कृत्रिम साधनों से भरे रखना बेहद मुश्किल है और इन आठ वर्षों में सभी प्रयासों के बावजूद इसे पूरा ना भर पाने से इस बात की पुष्टि भी होती है। इसके लिए सुझाव था कि इसे डेजर्ट पार्क (मरुद्यान) के रूप में विकसित किया जाए जिसमें थार रेगिस्तान के पेड़-पौधे और अन्य वनस्पतियों के साथ-साथ वन विभाग जिन जीव-जन्तुओं की छूट दे, उन्हें रखा जाए। लेकिन यह सुझाव उस समय मुख्यमंत्री से अधिकारियों तक पहुंचते-पहुंचते गड़बड़ा गया। डेजर्ट पार्क की घोषणा पहले तो सूरसागर से छिटक कर हुई और फिर कहीं फाइलों में दफन हो गई। इस डेजर्ट पार्क की रूपरेखा पर 'विनायकÓ में पहले भी विस्तार से लिखा जा चुका है। न्यास अध्यक्ष इच्छा शक्ति बनाएं तो नगर विकास न्यास ना केवल इस सफेद हाथी से मुक्त होगा बल्कि डेजर्ट पार्क बनने पर देशी-विदेशी पर्यटकों से अलग-अलग दरों पर मिलने वाले प्रवेश शुल्क के माध्यम से आय का साधन भी बना सकेगा। आय का साधन नहीं भी बने तो इसके रख-रखाव के खर्च जितना तो न्यास प्रवेश शुल्क से अर्जित कर ही लेगा।
     न्यास और नगर निगम भी, जो नई कॉलोनियां काट रहे हैं उनमें कम-से-कम चार आस्था स्थलों और एक विद्युत निगम तथा एक नगर निगम के लिए भूखण्डों का प्रावधान रखा जाना चाहिए। आस्था स्थल का भूखण्ड एक समुदाय के लिए एक ही हो तथा उसे पंजीकृत संचालन ट्रस्ट को ही आरक्षित दर पर आवंटित किया जा सकता है। आवंटन की इसी तरह की व्यवस्था सरकारी उपक्रमों यथा विद्युत निगम और नगम निगम के लिए भी रखी जा सकती है। कॉलोनी यदि ज्यादा बड़ी है तो आस्था स्थलों के लिए भू-खण्डों की संख्या दुगुनी की जा सकती है। ऐसे भूखण्डों का आवंटन ना हो तो उन्हें कॉलोनी विकसित होने तक खाली रखा जाना चाहिए। ऐसा कायदा वैसे तो राज्य सरकार को तय करना चाहिए लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक न्यास और निगम को स्थानीय तौर पर ऐसे प्रावधान रखने चाहिए। ऐसा होने पर पार्कों और खाली स्थानों पर आस्था स्थलों के नाम पर कब्जे होने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा।
इसी तरह न्यास की बसायी कॉलोनियों में हो रहे किसी भी तरह के अतिक्रमणों को समय रहते चिह्नित करवा हटाना जरूरी है।
     न्यास और नगर निगम को अपने-अपने क्षेत्र के रियायशी भूखण्डों पर चलने वाली व्यावसायिक गतिविधियों को सूचीबद्ध करना चाहिए। बाद इसके जिन भूखण्डों का नियमानुसार भू-उपयोग परिवर्तन किया जा सकता है उनको वसूली के नोटिस दिये जाने चाहिए और जिनका व्यावसायिक भू-उपयोग परिवर्तन नहीं हो सकता वहां व्यावसायिक गतिविधियां बन्द करवाई जानी चाहिए। ऐसे प्रकरणों को उनकी बकाया रकम के साथ सूचीबद्ध करवाकर न्यास और निगम कार्यालयों में होर्डिंग लगाकर साया किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए कि न्यास और निगम को अपने बकाया का भान तो रहेयह भान रहेगा तभी वसूली का मानस भी बनेगा। नगर निगम और नगर विकास न्यास, दोनों के मुखिया फिलहाल वणिक समुदाय से हैं इसलिए उम्मीद की जाती है कि वे लेन-देन के तलपट को तो कम-से-कम दुरुस्त करवाएं, वसूली चाहे पूरी फिलहाल ना भी हो।
     एक व्यवस्था संबंधी काम न्यास अध्यक्ष रांका को जरूर करना चाहिए जिसे पहले किसी अध्यक्ष ने करना जरूरी नहीं समझा। न्यास के क्षेत्र में छोटे-मोटे बहुत से प्लॉट और न्यास की कई जमीनें छितराई पड़ी हैं, जिनमें कुछ लावारिस हैं, कुछ पर कब्जें हैं और कुछ कब्जों के प्रकरण न्यायालय के अधीन हैं। ऐसे सभी भूखण्डों को उक्त अनुसार तीन श्रेणियों में ही सूचीबद्ध करवाकर श्वेत पत्र जारी करें और बताएं कि न्यास की कितने मूल्यों की ये जमीनें लावारिस, कब्जों और न्यायिक विवादों में हैं।  इस सूची को स्थाई तौर पर न्यास कार्यालय में होर्डिंग के माध्यम से प्रदर्शित भी किया जाना चाहिए। संभव हो तो ऐसे भूखण्डों को नीलाम किया जाए या उन पर विभिन्न जन सुविधा केन्द्र यथा शौचालय, मूत्रालय, कचरा कलेक्शन सेन्टर, शमशान गृह आदि-आदि बनवाएं जा सकते हैं। महापौर चाहें तो ऐसी ही व्यवस्था निगम की जमीनों के लिए भी कर सकते हैं।
     एक महती काम और किया जा सकता है जिसमें से ना केवल पेड़ बचेंगे बल्कि पर्यावरण, दूषित होने से भी बचेगा। न्यास चाहे तो पहली चार में परदेशियों की बगीची और आइजीएनपी कॉलोनी के पास स्थित श्मशान गृह के प्रबंधकों को सहयोग कर विद्युत शवदाह गृह स्थापित करवा सकता है। ऐसे कार्य भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
     फिलहाल अन्त में इतना ही कि मुख्यमंत्री की यात्रा से पूर्व न्यास अध्यक्ष को इसे पुख्ता कर लेना चाहिए कि रवीन्द्र रंगमंच इस स्थिति में तो आ ही जाए कि उसका उद्घाटन हो सके और यह भी पुख्ता कर लें कि इसी परिसर में बनने वाले मुक्ताकाशी रंगमंच का निर्माण तत्परता से हो।
उक्त सब कामों के लिए न्यास अध्यक्ष महावीर रांका को न केवल अपनी पार्टी के बल्कि विपक्षी पार्टियों के दिग्गजों और प्रभावशाली नेताओं के साथ-साथ संबंधित विभिन्न विभागों के अधिकारियों से सतत सामंजस्य और मेल मुलाकात रखनी होगी। जोधपुर विकास का रहस्य अशोक गहलोत की राजनीतिक शुरुआत के समय से ऐसी ही कुव्वत में छिपा है। जोधपुर के विकास के लिए वे न विपक्षियों से जाकर मिलने में संकोच करते हैं और न ही संबंधित अधिकारियों से मेल-मुलाकात में और यह भी कि जरूरत समझने पर उन्हें भोजन (डिनर डिप्लोमेसी) पर भी बुलाते रहे हैं। उम्मीद करते हैं महावीर रांका इसी तरह प्रयत्नशील रह कर शहर के विकास का नया मार्ग प्रशस्त करेंगे।

24 नवम्बर, 2016

1 comment:

Unknown said...

आपका लेख पढा, बहुत सार्थक है ओर वास्तविकता ुपर आधारित है ।